राजनीति के मामले में विंध्य मध्यप्रदेश के बाकि हिस्सो के मुकाबले पिछड़ता नजर आ रहा है. प्रदेश की सरकार बनाने में हर बार विंध्य का बड़ा योगदान रहा है, फिर भी सरकार के लिए हर मामले में विंध्य सौतेला है. न तो यहां कि जनता का की मूलभूत जरूरतें पूरी हो पा रही हैं और न ही यहां के विधायकों को मंत्री मंडल में हिस्सा मिलता है.
पिछले चुनाव में विंध्य की 30 विधानसभाओं में से 24 सत्तारूढ़ पार्टी के हैं. यानी विंध्य का 80% का शक्तिशाली प्रदर्शन रहा. जबकि मालवा-निमाण में 66 सीटों में से 29 पर बीजेपी है यानी 43.9%. मध्य भारत में 36 सीटों में से 23 सीटें बीजेपी की यानी 63.8%. ग्वालियर चम्बल इलाक़े में 34 सीटों में से 7 सीटें बीजेपी की हैं यानी 20.5%. महाकौशल की 38 सीटों में से 13 सीटें बीजेपी की यानी 34.2%. बुन्देलखंड में 26 सीटों में से 14 पर बीजेपी है यानी 53.8%.
विंध्य के 24 विधायक में से केवल चार मंत्री
साल 2018 में 24 विधायक के भारी समर्थन के बाद विंध्य के 4 मंत्री हैं और विधानसभा के स्पीकर का पद मिला है. राजेंद्र शुक्ला को भी उस वक्त मंत्री बनाया गया जब चुनाव नजदीक आ गए. वहीं मध्यप्रदेश के दूसरे हिस्सो में ऐसा नहीं हैं. मध्यभारत के 23 बीजेपी विधायकों में से 6 को मंत्री बनाया गया. मालवा-निमाड़ के 29 बीजेपी विधायकों में से 10 को मंत्री बनाया गया. ग्वालियर-चंबल के 7 बीजेपी विधायकों में से 7 मंत्री, बुंदेलखंड के 14 बीजेपी विधायकों में से 4 और महाकौशल के 13 बीजेपी विधायकों में से 2 को मंत्री बनाया गया.
2013 में विंध्य के केवल 2 विधायक ही मंत्री बने थे
साल 2013 में भी विंध्य के हालत ऐसे ही थे. 2013 में शिवराज सिंह ने तीसरी बार मध्यप्रदेश में सरकार बनाई थी. विंध्य से बीजेपी के 16 विधायकों को जीत मिली थी, जिनमें से मात्र 2 विधायक को मंत्री बनाया गया. वहीं, चंबल के 20 विधायकों में से 7, मध्यभारत के 29 विधायकों में से 8, मालवा के 56 विधायकों में से 6, महाकौशल में 24 में से 5, बुंदेलखंड में 20 में से 4 को मंत्री बनाया गया था.