नशे की आदत को लेकर क्या कहते हैं दिमाग के डॉक्टर. एक मनोचिकित्सक शराब के नशे और कफ़ सिरप के नशे में कैसे अंतर करता है. इलाज क्या है? इन सभी बिन्दुओं पर और कफ़ सिरप के नशे पर हमारे मनोचिकित्सक का क्या कहना है? पढ़िए.
मनोचिकित्सक डॉ. धीरेन्द्र मिश्रा कहते हैं- नशीले पदार्थ हमारे दिमाग को एक तरीके से हाइजैक कर लेते हैं. दिमाग में एक एरिया रहता है जिसे, न्यूक्लियस अंबेशन कहते हैं. जब हम कोई काम हम करते हैं तो अगर आनंद की प्राप्ति होती है. न्यूक्लियस अंबेशन का एरिया नशा करना चालू करता है तो उस चीज को दोबारा करने की इच्छा पैदा हो जाती है. इससे दिमाग या शरीर पर परिवर्तन होने लगते हैं. हमें नींद नहीं आती है. बेचैनी होती है. घबराहट होती है.
कफ़ सिरप का नशा शराब से अलग
डॉ. धीरेन्द्र मिश्रा कहते हैं- कफ़ सिरप या दवाइयों का नशा अभी अपने समाज में बहुत तेजी से बढ़ा है. उसका मुख्य कारण है कि, इन दवाइयों में केमिकल प्योर फॉर्म में होता है जो कि, बहुत ही स्ट्रांग फार्म में दिमाग पर असर करते हैं. अगर आप शराब का सेवन लगातार करते हैं तो, कई महीनों, कई वर्षों
के बाद उसकी लत लगती है. परंतु कोरेक्स जैसे पदार्थों का नशा मुश्किल से हफ्ते भर भी पी लिया तो इनसे छुटकारा पाना बहुत ही कठिन हो जाता है. जैसे ही आप इनको बंद करेंगे वैसे ही आपको शरीर में कष्ट होने लगेगा, तो आपको मजबूरी में पीना हो पड़ेगा.
सब्सटेंस डिपेंडेंस और सब्सटेंस एब्यूज
जो लोग नशा करते हैं. या ये कहें जिनमें नशा करने की आदत है. उन्हें हम बोलते हैं सब्सटेंस एब्यूज. एब्यूज का मतलब है, नशा करने की आदत. सब्सटेंस डिपेंडेंस का मतलब है, नशा करने की लत. आदत में आप अपने आप को कुछ हद तक रोक भी पाते हैं. या काउंसलिंग से नशे के दुष्परिणाम को बता के बहुत हद तक नियंत्रित कर सकते हैं. लेकिन अगर किसी व्यक्ति में नशे की आदत से बढ़कर नशे की लत हो जाती है तो ऐसे मरीजों में सर्किट काम करता है. न्यूरोल सर्किट से वो डिस्टर्ब हो जाते हैं तो वो ऐसी स्थिति में बिना नशे के रह ही नहीं सकता है.
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