सिंगरौली (Singrauli) के मोरवा (Morwa) में कोल माइंस (Coal mining) है. यह सिंगरौली का मुख्य इलाका है यहां पर सबसे अधिक कोयला क्षेत्र मौजूद है. लेकिन यही मोरवा, मध्य प्रदेश में हरसूद के बाद दूसरा सबसे बड़ा विस्थापन (Displacement) झेल रहा है. 30 जून 2004 यानी 20 साल पहले हरसूद के करीब 245 गांवों के लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया गया था. वहीं अब 11 वार्डों के मोरवा में दो लाख की आबादी वाले 30 से 35 हजार परिवारों को विस्थापित किया जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यहां के लोग विस्थापन की मार झेल पाने में सक्षम हैं.
यहां के स्थानीय निवासी का कहना है कि साल 2006 में बड़ी कठिनाइयों के साथ मोरवा में पांच डिसमिल जमीन खरीदी. अपनी मेहनत के पैसे से उसमें धीरे-धीरे करके कई वर्षों में मकान बनाया. मकान बनाने के बाद में हम ठीक से उस मकान में रह भी नहीं पाए थे कि एनसीएल (NCL) ने 2017 में सेक्शन सात लगाया और फिर यहां रजिस्ट्री और जितनी भी गवर्नमेंट सुविधा या विकास के कार्य थे, सब कुछ बंद कर दिया गया.
NCL के धमाकों से परेशान है जनता
स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ समय के लिए इस धारा को खत्म कर दिया गया और कहा गया कि अब सिंगरौली का विस्थापन नहीं होगा. लेकिन इसके बाद अचानक इन्होंने फिर से धारा 4, धारा 7 और फिर अचानक धारा 9 लगा दिया. इसके बाद से यहां लोगों की परेशानी बढ़ गई. एनसीएल आए दिन हैवी ब्लास्टिंग करता है. हमारे मकान के सेफ्टी टैंक क्षतिग्रस्त हो रहे हैं. बोर प्रभावित हो रहे हैं. इस बारे में हमने कई बार पुलिस, प्रशासन, कलेक्टर महोदय के यहां आवेदन किया लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई.
एनसीएल पर गद्दारी का आरोप
बता दें कि मोरवा के चलते सिंगरौली का नाम बड़े शहरों में गिना जाता है. यहां विकास भले ही बैढ़न का हो रहा हो लेकिन मोरवा आर्थिक आमदनी देने के मामले में सबसे आगे है. मोरवा के नाम पर रेलवे स्टेशन भी है. इसके बावजूद विस्थापितों के साथ में एनसीएल गद्दारी कर रहा है. सर्वे का वादा और नुकसान की भरपाई करने का वादा करने वाला एनसीएल कुछ भी नहीं कर रहा है. यहां तक की गर्मियों में पानी का टैंकर तक एनसीएल द्वारा उपलब्ध नहीं करवाया जाता है. विस्थापन के चलते यहां लोगों के पास काम नहीं है. वर्तमान में यहां का मार्केट जीरो हो चुका है.
नहीं मिला पुनर्वास का लाभ
कोयला उत्पादन के लिए एनसीएल अपने मुख्यालय और आवासी कॉलोनी सहित बसे बसाए शहर का विस्थापन कर रहा है. जब भी विस्थापन होता है तो पुनर्वास की योजना मुहैया कराई जाती है लेकिन मोरवा के विस्थापन में पुनर्वास एक बड़ी चुनौती है. जिनका विस्थापन हो रहा है उसके विषय में कोई चर्चा नहीं कर रहा है. असली विस्थापन तो उन लोगों का हो रहा है जो बेचारे मध्यम और गरीब वर्ग के लोग हैं.
रोजगार का संकट
ऐसे परिवार जो 60 वर्षों से यहां बसे हैं और एनसीएल के अधिकारियों के यहां झाडू पोंछा करते हैं. या फिर ड्राइविंग या मजदूरी करके अपना परिवार चला रहा थे. उन सभी के सामने अब रोजगार का संकट हो रहा है. अगर मुआवजा इन परिवारों को मिला भी तो मुश्किल से दो से चार लाख ही इनके नसीब में आएगा. इनके बारे में सोचने वाला कोई नहीं है. विस्थापन का असली संकट इन परिवारों के साथ ही होने वाला है.
पुनर्वास की शर्तें
मोरवा के लोगों ने पुनर्वास के लिए एनसीएल के सामने कुछ शर्तें रखी हैं. इसमें सेक्शन 91 के तहत मिलने वाली सभी जमीन नगर निगम क्षेत्र में होनी चाहिए, क्योंकि मोरवा की जिन जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है वह सभी नगर निगम में हैं. वहीं जो लोग नगर निगम क्षेत्र के बाहर जमीन लेने को तैयार हैं उन्हें नियमानुसार मुआवजा मिलना चाहिए. मोरवा ने पहले भी विस्थापन का दंश झेला है इसलिए जिस वार्ड का बाजार मूल्य सबसे से अधिक है. उसी आधार पर पुनर्वास के इलाके का बाजार मूल्य तय होना चाहिए. विस्थापितों को कोल इंडिया लिमिटेड और चल रही पॉलिसी के अंतर्गत डिसेंडिंग ऑर्डर के तहत नौकरी दी जाए. विस्थापित परिवार के हर व्यक्ति को नौकरी जैसी कुल 24 शर्तें रखी गई हैं.
उर्जाचंल में बिजली उत्पादन का हाल
विंध्य में कोयले से 10550 मेगावॉट बिजली बनती है. भारत का सबसे बड़ा 4760 मेगावॉट बिजली की उत्पादन क्षमता वाला थर्मल पॉवर स्टेशन भी सिंगरौली में है इसीलिए इसे उर्जाचंल कहते हैं. लोगों का घर गिराकर, उनकी जमीन काटकर कोयला निकालने का काम शुरू हो चुका है. ऐसे में स्थानीय लोगों की मांग है कि एनसीएल सबसे पहले निर्धारित करे कि विस्थापन कहां कर रही है. उसकी क्या प्रक्रिया है. नगर निगम में रहने वाले लोगों का विस्थापन पंचायत में करना उचित नहीं है.
मोरवा के विस्थापितों की क्या मांगे हैं जानने के लिए देखिए पूरा वीडियो।।