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कोच हरभजन सिंह अटवाल की कहानी, रीवा में रहकर सैकड़ों बच्चों को बना दिया चैंपियन

एचएस अटवाल ने जिन छात्रों को ट्रेनिंग दी उसमें रीवा के शशि भूषण मिश्रा ने 20 किलोमीटर की दौड़ में मध्यप्रदेश का पहला नेशनल गोल्ड मेडल जीता. रीवा के ही रामभूषण मिश्रा 1994 से 2000 तक लगातार 5 किमी, 10 किमी. और हाफ मैराथन में स्टेट गोल्ड मेडलिस्ट रहे.

हरभजन सिंह अटवाल (Harbhajan Singh Atwal) मूल रूप से हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के रहने वाले हैं. लेकिन अपने जीवन के महत्वपूर्ण 30 साल उन्होंने विंध्य के रीवा (Rewa) में बिताए. इस दौरान उनकी गाइडेंस में सैकडों स्टूडेंट ने एथलीट बनकर देश भर में विंध्य का नाम रोशन किया. विंध्य के खिलाड़ियों को नेशनल एथलीट (Athlete) बनाने वाले हिमाचल से आए रीवा आए कोच हरभजन सिंह अटवाल की कहानी बेहद ही दिलचस्प है. बता दें कि एचएस अटवाल साल 1981 में रीवा के APS यूनिवर्सिटी (APS University) में बतौर खेल निर्देशक के रूप में पदस्थ हुए. हरभजन सिंह अटवाल ख़ुद एक नेशनल चैंपियन हैं. साल 1976-77 में 5 किमी, 10 किमी. और हाफ मैराथन में वो नेशनल चैंपियन रहे.

वहीं एचएस अटवाल ने जिन छात्रों को ट्रेनिंग दी उसमें रीवा के शशि भूषण मिश्रा ने 20 किलोमीटर की दौड़ में मध्यप्रदेश का पहला नेशनल गोल्ड मेडल जीता. रीवा के ही रामभूषण मिश्रा 1994 से 2000 तक लगातार 5 किमी, 10 किमी. और हाफ मैराथन में स्टेट गोल्ड मेडलिस्ट रहे. वहीं बाद में सिंगरौली के कृष्णपाल पटेल 5 किमी., 10 किमी. और हाफ मैराथन चैपिंयन स्टेट गोल्ड मेडलिस्ट बने. ऐसे ही एचएस अटवाल के अंडर में रीवा, सीधी, सतना के सैकड़ों खिलाड़ी ऐसे हुए जिन्होंने विंध्य और रीवा का नाम एथलीट के क्षेत्र में पूरे देश में रोशन किया. खास बात यह है कि मध्य प्रदेश में एक समय ऐसा भी था जब यहां के लगभग सभी थानों में रीवा स्टेडियम से निकले स्टूडेंट, थानेदार के तौर पर तैनात थे.

एचएस अटवाल खुद कैसे बने एथलीट
एचएस अटवाल बताते हैं कि हिमाचल के कांगड़ा जिला में मेरा घर है. बाद में मिडल स्टैंडर्ड तक की पढ़ाई पंजाब के अमृतसर में हुई. लेकिन हायर सेकंडरी की पढ़ाई के लिए फिर से हिमाचल आ गए. अमृतसर, पंजाब का प्लेन एरिया है. यहां साइकिल से आदमी आसानी से चला जाता था मगर हिमाचल का एरिया बहुत ही कटा-फटा क्षेत्र है. यहां पहाड़ी, नदियां और नाले पार करके मुझे स्कूल आना-जाना पड़ता था. घर से स्कूल की दूरी भी लगभग 6 किलोमीटर थी. इन परिस्थितियों ने मुझे बहुत स्ट्रांग बनाया. 11वीं कक्षा तक में मैं एक एथलीट बन चुका था. स्कूल से घर दौड़कर आने में अब 6 किलोमीटर कवर करने में 45 से 50 मिनट लगते थे. प्रतिदिन होने वाली इस गतिविधि ने मुझे एथलीट बन गया.

रीवा का सफर कैसे शुरू हुआ
रीवा यूनिवर्सिटी के फिजिकल एजुकेशन में मार्च 1981 में वैकेंसी के लिए मैने अप्लाई किया. 33 साल यहां सर्विस करने के बाद रिटायर हुआ. इस दौरान यूनिवर्सिटी के नजदीक के सभी स्कूलों के स्टूडेंट यहां पर प्रैक्टिस के लिए आते थे.

रीवा स्टेडियम का था बोलबाला
रीवा के जितने भी बड़े स्कूल हैं उनमें फिजिकल एजुकेशन टीचर मेरे स्टूडेंट हैं. ऐसे भी विंध्य के अधिकांश कॉलेजों में मेरे स्टूडेंट ही स्पोर्टस टीचर हैं. यूपी पीएससी और एमपी पीएससी में रिटर्न एग्जाम क्वालीफाई करने वाले स्टूडेंट भी फिजिकल की तैयारी के लिए रीवा स्टेडियम आते थे. एक समय में मध्य प्रदेश का कोई भी थाना ऐसा नहीं था जहां का थानेदार रीवा स्टेडियम से नहीं सीखा हो. आज वो सब डीएसपी से भी ऊपर रंक में अपनी सेवा दे रहे हैं.

कोच हरभजन सिंह अटवाल की पूरी जर्नी जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।