सिंधु घाटी की सभ्यता को Harappan Civilization भी कहते हैं. इस सभ्यता की खोज 100 साल पहले 20 सितंबर 1924 को हुई. अभी हाल ही में 20 सितंबर को भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) दोनों ही देशों में सिंधु घाटी (Indus Valley Civilization) सभ्यता के खोज की घोषणा की शताब्दी मनाई गई. इतिहास के पन्नों में कैद यह सभ्यता जिसने मानव इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की. यह एक ऐसी सभ्यता है जिसने शहरीकरण की मिसाल कायम की. सिंधु घाटी सभ्यता की खोज 100 साल पहले पुरातत्वविद् जॉन मार्शल ने 20 सितंबर 1924 को की थी. हालांकि खोज के 100 साल बाद भी यह सभ्यता एक पहेली बन कर रह गयी है. आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम अपने पाठकों को बताएंगे कि सिंधु घाटी (Sindhu Ghati) की सभ्यता क्या है और अपनी खोज के 100 साल भी यह सभ्यता पहेली क्यों बनी है?
बता दें कि 20 सितंबर, 1924 को, द इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज़ में एक आर्टिकल ‘एक लंबे समय से भूली हुई सभ्यता पर पहली रोशनी: एक अज्ञात प्रागैतिहासिक अतीत की नई खोज’ हैडलाइन के नाम से प्रकाशित हुआ. यह आर्टिकल आर्कियोलॉजिस्ट (ARCHAEOLOGIST) जॉन मार्शल ने लिखा था. उस समय जॉन मार्शल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक थे. गौर करने वाली बात यह है कि सिंधु सभ्यता की खोज की शुरुआत 7वीं शताब्दी में हुई. पंजाब प्रांत में पहली बार लोगों ने ईंटों के लिए मिट्टी की खुदाई करना शुरू की. लोगों को जमीन के अंदर बनी बनाई ईंटें मिली जिसे लोगों ने भगवान का चमत्कार समझ कर उनका उपयोग घर बनाने में किया. इसके बाद 1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा.
जिसके बाद कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया और उसी साल कराची से लाहौर के बीच रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान ब्रूटन ब्रदर्स (Burton brothers) ने हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी. तब 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना हुई. 1902 में लार्ड कर्जन ने जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया. इसके बाद सिंधु घाटी सभ्यता की खोज सबसे पहले 1920 के दशक में पुरातत्वविदों जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके और हेरोल्ड हरग्रेव्स ने की. इसके बाद साल 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खुदाई की जिसकी वजह से इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया. इसके अगले साल 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी राखलदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की.
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता एक कांस्य युग की सभ्यता थी. यह आधुनिक उत्तर-पश्चिम भारत और उत्तर-पूर्व पाकिस्तान से लेकर पश्चिमी तिब्बत तक फैली हुई थी. यह प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया के साथ पुरानी दुनिया की तीन प्रारंभिक सभ्यताओं में सबसे व्यापक थी. सिंधु घाटी सभ्यता की समय रेखा लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक मानी जाती है. सभ्यता की समय रेखा को 3 भाग में बांटा जा सकता है.
- सभ्यता का उदय (3300 ईसा पूर्व)
- सभ्यता का विकास और परिपक्वता (2600-1900 ईसा पूर्व)
- सभ्यता का पतन (1900-1300 ईसा पूर्व)
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार लगभग 2500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में था, जो वर्तमान पाकिस्तान और भारत के क्षेत्रों में फैला हुआ था. सभ्यता के प्रमुख शहरों में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गंवईवाला, राखीगढ़ी और धोलावीरा शामिल थे. यह सभ्यता सिंधु और सरस्वती नदियों के तट पर फली-फूली. माना जाता है कि बाद वाली नदी लगभग 1900 ईसा पूर्व में सूख गई थी.
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषता
इतिहासकार बताते हैं की अपनी समृद्धि के चरम पर, यह एक “तकनीकी महाशक्ति” था. प्राचीन सिंधु नदी घाटी के निवासियों ने शिल्प कौशल और धातुकर्म चीजों में आधुनिक रणनीति का आविष्कार किया. सिंधु सभ्यता का समाज मुख्यतः वर्गहीन समाज था. यह सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने-अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊंचाई पर स्थित होते थे. जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे. वहीं इस सभ्यता के अंतर्गत समाज ‘मातृप्रधान’ था.
सिंधु घाटी सभ्यता में पहनावा
सिंधु घाटी की सभ्यता शहर नियोजन, जल संचयन, जलाशयों, स्टेडियम, गोदामों, भूमिगत मलजल प्रणालियों, विशाल किलेबंदी दीवारों और समुद्री नावों के निर्माण, कांस्य और तांबे की कलाकृतियां बनाने, उत्तम चित्रित मिट्टी के बर्तन और टेराकोटा उत्पाद बनाने में उत्कृष्ट था. सिंधु सभ्यता के लोग मुख्यतः कृषि और पशुपालन कर अपना जीवनयापन किया करते थे. बता दें कि सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने ही सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी. सिंधु घाटी सभ्यता के मनुष्य शरीर पर सूती और ऊनी वस्त्र धारण किया करते थे. इतिहासकार बताते है कि इस काल में स्त्रियों और पुरुषों के वस्त्रों में विशेष अंतर नहीं हुआ करता था. सभ्यता में पुरुष अंगूठी, कड़े, कंगन, कंठाहार, कुंडल आदि पहनते थे. वहीं स्त्रियां, चूड़ियां, कर्णफूल, हंसली, भुजबंद, करधनी आदि पहना करती थीं. ये आभूषण सोने, चांदी, हाथी दांत, हीरों आदि से बनाए जाते थे. इसके अलावा निर्धन व्यक्ति तांबे, मिट्टी, सीप आदि के आभूषण पहनते थे. भारतीय संस्कृति की तरह सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भी मूर्ति पूजा और पेड़ पौधों की पूजा किया करते थे. सिंधु घाटी की सभ्यता के जो साक्ष्य मिले उनसे पता चलता है कि यह सभ्यता आज के समय के मुकाबले ज्यादा आधुनिक थी. उस समय की तकनीक, वास्तुकार, भवनों को बनाने का डिजाइन, शहरी योजना, जल प्रबंधन, सड़कें आदि सभी आज के समय से काफी उन्नत थीं.
सिंधु घाटी सभ्यता की लेखन शैली
इस सभ्यता को इसकी भाषा, लेखन शैली और मानकीकृत माप (Standardized Measurements) खास बनाती हैं. आपको जान कर हैरानी होगी कि उस समय के लोगों को बाइनरी डीजिट्स, दशमलव प्रणालि (DECIMALS SYSTEMS), त्रिकोणमिति (TRIGONOMETRY) औक GEOMETRY जैसे गणित का भी ज्ञान था. उस समय की कलाकृतियां आज की कलाकृतियों से कहीं अधिक एडवांस थी. इसमें लैपिडरी कला और माइक्रो-ड्रिलिंग जैसी कलाएं भी शामिल थीं. इतिहासकारों के मुताबिक उनकी लिपि लगभग 4000 प्रतीकों से बनी है. जिनमें से कुछ चित्रलिपि और कुछ ध्वनिलिपि हैं. सिंधु भाषा को द्रविड़ भाषा परिवार से जोड़ा जाता है. इतिहासकारों का मानना है की यह भाषा विश्व की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक हो सकती है. हालांकि यह सभ्यता अभी भी पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के लिए एक रहस्य बना है.
सिंधु घाटी सभ्यता की पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो।।