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मोरवा को सपनों के सौदागर कोयला निकाल कर रहे खोखला, विंध्य के साथ सौतेला व्यवहार का जिम्मेदार कौन?

मोरवा में कोयला निकालने के लिए ब्लॉस्टिंग का सहारा लिया जाता है. स्थानीय लोग इससे काफी परेशान होते हैं. ब्लॉस्टिंग होने से कच्चे घरों के खपड़े और खिड़कियों के कांच टूट जाते हैं.

सिंगरौली (Singrauli) का इलाका विंध्य का एक प्रमुख हिस्सा है. यहां पर मोरवा (Morwa) में कोयला निकालने के लिए स्थानीय लोगों को विस्थापित (Displacement) किया जा रहा है. इतना ही नहीं स्थानीय लोगों को विस्थापन का दंश तो झेलना पड़ रहा है लेकिन मुआवजा नहीं मिल रहा है. ऐसे में अपना घर छोड़ने को मजबूर लोग मुआवजा पाकर अपना छोटा सा घर नई जगह पर बनाना चाहते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी 57 साल के जवाहरलाल पनिकर की है. मोरवा के वार्ड नंबर 10 में रहने वाले जवाहरलाल दूसरों के खेत में खेती कर अपना और अपने परिवार का गुज़ारा करते हैं. बनी मज़दूरी कर पेट पालने वाले जवाहरलाल पनिकर को साल 2022 में NCL ने कोयला खदानों के लिए इनके घर का इन्हें कुछ मुआवजा देकर विस्थापित कर दिया.

गौर करने वाली बात यह है कि इसी जगह पर जवाहरलाल पनिकर का एक घर और है जिसके मुआवजे का इंतजार उन्हें आज भी है. छोटा सा आशियाना बनाकर परिवार के साथ रह रहे जवाहर लाल को यह नहीं पता है कि उन्हें पूरा मुआवजा कब मिलेगा. पूरे मोरवा के विस्थापन की कहानी कागजों में तो लिख ली गई है लेकिन स्थानीय लोगों का पुनर्वास कब होगा कोई नहीं जानता. इसी उम्मीद में लोग ना तो अपने घरों की मरम्मत कर रहे और ना ही पुराने घरों को गिराकर नई जगह पर जाकर स्थाई घर बना रहे हैं. सिंगरौली का मुख्य इलाका मोरवा कोल माइंस के लिए विस्थापन का दंश झेल रहा है. इसकी कई कहानियां हैं. कुछ को उनके घर का मुआवजा मिला तो कुछ की जमीनें बिना कुछ दिए छीन ली गईं.

एनसीएल ने दिया था नौकरी का वादा
सिंगरौली के मोरवा में कोयला उत्खनन के लिए एनसीएल (NCL) आया. कंपनी ने जमीन के बदले मुआवजा और नौकरी (JOB) का वादा किया. साथ ही यहां के स्थानीय लोगों के बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के देखभाल का जिम्मा भी लिया. लेकिन ये सब बातें कोरी साबित हुईं. एनसीएल ने खुद और दूसरी कंपनियों के माध्यम से जमीन को काट कर कोयला तो निकाला लेकिन कंपनी में ना तो किसी को काम दिया और ना ही बच्चों की देखभाल का कोई इंतजाम किया. मजबूरी में लोग अब दूसरे के खेतों में काम करते हैं और बनी मजदूरी करके अपना पेट पाल रहे हैं. जबकि यहां के जितने बड़े-बड़े आदमी हैं उनके घर के चार-पांच आदमियों को काम मिला.

ब्लॉस्टिंग से परेशान हैं लोग
मोरवा में कोयला निकालने के लिए ब्लॉस्टिंग का सहारा लिया जाता है. स्थानीय लोग इससे काफी परेशान होते हैं. ब्लॉस्टिंग होने से कच्चे घरों के खपड़े और खिड़कियों के कांच टूट जाते हैं. वहीं कंपनियां भी इस जगह को छोड़कर दूसरी जगह पर जाकर घर बनाने का दबाव बनाती हैं लेकिन मुआवजा नहीं देती हैं. नौकरी लगवाने के लिए कई दलाल सक्रिय हैं, यह 1 से 2 लाख रुपये की मांग की जाती है.

मोरवा के विस्थापितों की दर्द भरी कहानी जानने के लिए देखिए ये वीडियो.