दुनियाभर में हर साल डायबिटीज़ से दस लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो रही है. यह बीमारी किसी को भी हो सकती है. यह एक ऐसी बीमारी है जो बेहद तेज़ी से बच्चों से लेकर युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है. लैंसेट द्वारा 13 नवंबर को जारी एक नए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पुरुषों और महिलाओं में डायबिटीज़ की दर 1980 से 2022 की तुलना में 10-12 प्रतिशत तक बढ़ गई है. वर्तमान में, भारत के 21.4% पुरुष और 23.7% महिलाएं डायबिटीज़ से पीड़ित हैं. भारत में डायबिटीज़ के कुल मामलों की संख्या 212 मिलियन है. यह दुनिया में डायबिटीज़ के कुल मामलों का 26% है.
बता दें कि डायबिटीज़, तब होता है जब शरीर के अंदर रक्त में ग्लूकोज या शुगर की मात्रा जमा होने लगती है. इससे पीड़ित लोगों को हार्ट अटैक और हार्ट स्ट्रोक हो सकता है. इसके अलावा डायबिटीज़ से अंधापन, किडनी फेल और पैरों के निष्क्रिय होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. गौर करने वाली बात यह है कि भारत में अधिकांश डायबिटीज़ रोगियों को कोई उपचार नहीं मिल रहा है. लैंसेट के अध्ययन के अनुसार, डायबिटीज़ से पीड़ित महिलाओं के पूरे समूह में से केवल 27.8% मरीजों को ही कोई उपचार मिलता है. इसी तरह, केवल 29.3% पुरुषों को ही इलाज मिलता है.
पहले स्थान पर भारत
भारत में डायबिटीज़ के उपचार और रोकथाम के लिए एक योजना है. 1980 में महिलाओं और पुरुषों के लिए उपचार दर क्रमशः 21.6% और 25.3% था. हालांकि पिछले 44 सालों में डायबिटीज़ के इलाज दर में मामूली सुधार हुआ है. आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में बिना इलाज के डायबिटीज़ के 30% मामले भारत में हैं. यह संख्या 133 मिलियन है जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है.
दूसरे स्थान पर है चीन
बिना इलाज के डायबिटीज़ के मामलों में चीन दूसरे नंबर पर है. यहां 78 मिलियन मामले बिना इलाज के हैं. ऐसे मामलों की सबसे ज़्यादा संख्या वाले देश और दूसरे नंबर पर रहने वाले देश के बीच का अंतर 50% से ज़्यादा है. पाकिस्तान और इंडोनेशिया में क्रमशः 24 मिलियन और 18 मिलियन डायबिटीज़ के मामले हैं, जो किसी भी प्रकार के उपचार की दर में नहीं हैं. वहीं 2022 में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में कहा गया था कि मोटे बच्चों की संख्या के मामले में चीन के बाद भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है.
क्या कहता है लैंसेट का रिसर्च सर्वे
लैंसेट के रिसर्चरों ने पाया कि उपचार में वर्तमान विविधताएं काफी हद तक निदान के तहत डायबिटीज़ की सीमा से संबंधित थीं. जिसका अर्थ है कि मामले का पता लगाने में सुधार उपचार दर को बढ़ाने के लिए एक शर्त है. लैंसेट के आकलन में यह भी कहा गया कि दक्षिण एशिया के देश डायबिटीज़ की प्राइमरी स्टेज को रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं. सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा और प्राथमिक देखभाल तक अच्छी पहुंच वाले देशों में, डायबिटीज़ के रेड अलर्ट वाले लोगों की भी समय रहते पहचान की जा सकती है. उन्हें डायबिटीज़ की शुरुआत को रोकने या देरी करने के लिए खान-पान, दिनचर्या में बदलाव और दवाओं के संयोजन का उपयोग करने की सलाह दी जा सकती है.
55% भारतीयों को नहीं मिलता स्वस्थ आहार
लैंसेट की रिपोर्ट में लोगों की वित्तीय पहुंच बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है. जिससे वे फल और सब्जियां जैसे स्वस्थ भोजन खरीद सकें. यह भारत जैसे देशों के लिए महत्वपूर्ण है. लैंसेट की पिछली रिपोर्ट ‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति’ में कहा गया था कि आधे से ज़्यादा भारतीय यानी 55% स्वस्थ आहार खरीदने में सक्षम नहीं हैं. लेखकों का कहना है, “स्वस्थ भोजन और खेलों की क्षमता में सुधार लाना गरीब परिवारों और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए ख़ास तौर पर महत्वपूर्ण है.
डायबिटीज़ क्या होती है
भोजन करने पर हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट तोड़कर ग्लूकोज़ में बदलता है. इस प्रक्रिया में पैंक्रियाज़ से इंसुलिन नामक हार्मोन निकलता है, जिसकी मदद से हमारे शरीर की कोशिकाएं शुगर को सोख कर ऊर्जा बनाती हैं. जब हमारे शरीर में इंसुलिन का बनना कम हो जाता है या वह ठीक से काम नहीं करता है तो कोशिकाएं ख़ून में मौजूद शुगर की मात्रा को सोखना कम कर देती हैं या फिर बंद कर देती हैं. यह स्थिति डायबिटीज़ को जन्म देती है.
डायबिटीज़ के लक्षण
- प्यास ज़्यादा लगना
- रात में ज़्यादा पेशाब लगना
- अधिक थकान महसूस होना
- अचानक से वज़न कम होना
- मुंह में अक्सर छाले होना
- आंखों की रोशनी कम होना
- घाव भरने में समय लगना
किस उम्र में दिखते हैं डायबिटीज़ के लक्षण
ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक़, टाइप 1 डायबिटीज़ के लक्षण काफ़ी कम उम्र में ही दिखना शुरू हो जाते हैं. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज़ अधेड़ उम्र के लोगों (दक्षिण एशियाई लोगों के लिए 25 वर्ष की आयु) परिवार के किसी सदस्य के डायबिटीज़ से पीड़ित होने पर और दक्षिण एशियाई देशों, चीन, एफ्रो-कैरिबियन, अफ्रीका से आने वाले अश्वेतों को ये बीमारी होने का ख़तरा ज़्यादा होता है.
डायबिटीज़ से कैसे बचें
डायबिटीज़ आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों पर आधारित होती है. आप अपने खून में ग्लूकोज़ की मात्रा को नियंत्रित करके खुद को डायबिटीज़ से बचा सकते हैं. संतुलित डाइट और व्यायाम करने से ऐसा किया जा सकता है. प्रोसेस्ड फूड और ड्रिंक्स के इस्तेमाल बंद करना इस दिशा में पहला क़दम हो सकता है. इसके स्थान पर आप अपनी रोज़ाना की डाइट में सब्जियां, फल, फलियां और साबुत अनाज शामिल कर सकते हैं. इसके साथ सेहतमंद तेल, बादाम, सालमन और मेकेरल जैसी मछलियों को भी अपने आहार में शामिल कर सकते हैं. इनमें ओमेगा 3 तेल की मात्रा बहुत अधिक होती है. इसमें नियमित अंतराल पर भोजन करना ज़रूरी होता है. विभिन्न रिपोर्ट के मुताबिक विकसित देशों में डायबिटीज़, गरीब और सस्ता खाना खाने के लिए विवश वर्ग को अपना निशाना बनाता है.
शरीर को कितने व्यायाम की जरूरत
शारीरिक व्यायाम से भी ब्लड शुगर लेवल को कम किया जा सकता है. ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सिस्टम के मुताबिक़, लोगों को एक हफ़्ते में लगभग ढाई घंटे एरोबिक्स एक्सरसाइज़ करनी चाहिए जिसमें तेज गति से टहलना और सीढ़ियां चढ़ना शामिल है. अगर आपके शरीर का वज़न नियंत्रण में है तो आप ब्लड शुगर लेवल को आसानी से कम कर सकते हैं. अगर आप वज़न कम कर रहे हैं तो एक हफ़्ते में 0.5 किलोग्राम से 1 किलोग्राम के बीच ही कम करें. ध्रूमपान ना करें और दिल की बीमारी से बचने के लिए कोलेस्ट्रॉल लेवल की जांच कराते रहें.
डायबिटीज़ से क्या हो सकता है
अगर आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल की अधिकता है तो इससे आपके ख़ून की नसों को नुक़सान पहुंच सकता है. अगर आपके शरीर में ख़ून सही ढंग से प्रवाहित नहीं होगा तो ये शरीर के उन हिस्सों में नहीं पहुंचेगा जहां इसकी ज़रूरत है. ऐसे में ख़ून की नसों को नुकसान हो सकता है और आपको दर्द महसूस होना बंद हो सकता है. इसके साथ ही आंखों की रोशनी कम होने से पैरों में इन्फेक्शन हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अंधेपन, किडनी फेल होने, हार्ट अटैक, हार्ट स्ट्रोक और पैरों के काम नहीं करने की सबसे बड़ी वजह डायबिटीज़ है. साल 2016 में, लगभग 16 लाख लोगों की मौत डायबिटीज़ की वजह से हुई थी.
डायबिटीज़ के प्रकार
डायबिटीज़ के कई प्रकार होते हैं. इसमें टाइप 1, टाइप 2 और गेस्टेशनल डायबिटीज़ से जुड़े मामले अधिक पाए जाते हैं. टाइप 1 डायबिटीज़ में आपके पेंक्रियाज़ में हार्मोन इंसुलिन बनना बंद हो जाता है. इससे हमारे ख़ून में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ने लगती है. अब तक वैज्ञानिक ये पता लगाने में सफल नहीं हुए हैं कि ऐसा क्यों होता है. लेकिन इसे आनुवंशिकता और वायरल इन्फेक्शन से जोड़कर देखा जाता है. पीड़ित लोगों में हर दस में एक शख़्स टाइप 1 डाटबिटीज़ से पीड़ित होते हैं.
टाइप 2 डायबिटीज़
टाइप 2 डायबिटीज़ में पेंक्रियाज़ में ज़रूरत के हिसाब से इंसुलिन नहीं बनता है या हार्मोन ठीक से काम नहीं करता है. टाइप 2 डायबिटीज़ अधेड़ और वृद्ध लोगों, मोटे और शारीरिक श्रम न करने वाले युवा, दक्षिण एशियाई देशों में रहने वाले लोगों में अधिक होता है. वहीं, कुछ गर्भवती महिलाएं जेस्टेशनल डायबिटीज़ से भी पीड़ित हो सकती हैं. इसमें महिलाओं का शरीर उनके और उनके बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाना बंद कर देता है. अलग-अलग मानदंडों के आधार पर किए गए अध्ययनों में सामने आया है कि छह से 16 प्रतिशत महिलाओं के जेस्टेशनल डायबिटीज़ से पीड़ित होने की संभावना होती है. गर्भवती महिलाओं को इससे बचने के लिए अपनी डायट को नियंत्रण में रखकर शुगर लेवल को नियंत्रित रखना चाहिए. इसके साथ ही इंसुलिन के प्रयोग से इसे टाइप 2 डायबिटीज़ में बदलने से रोका जा सकता है. कुछ लोग प्री-डायबिटीज़ से भी पीड़ित हो सकते हैं, ख़ून में ग्लूकोज़ की अधिक मात्रा आगे चलकर डायबिटीज़ में बदल सकती है.
डायबिटीज़ से जुड़ी सभी जानकारियों के लिए देखिए ये वीडियो.