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रीवा के सिरमौर में रहस्यमयी शैलचित्र, भीमबेटका से होती है तुलना, जानिए 10 हजार साल पुराना इतिहास

रीवा (Rewa) जिले से 45 किलोमीटर दूर सिरमौर (Sirmaur) में घने जंगल (Forest) हैं. यहां पर सदियों पुरानी कई दुर्लभ कलाकृतियां, रहस्यमयी शैलचित्र (Rock Paintings) और सुंदर वॉटर फॉल स्थित हैं. सिरमौर के पहाड़ी इलाके में घनी झाड़ियों और विशाल चट्टानों के बीच कई ऐसी दुर्लभ रॉक पेंटिंग हैं, जिनकी तुलना यूनेक्सो द्वारा विश्वधरोहर घोषित मध्य प्रदेश के भीमबेटका से होती है. ये शैलचित्र, इतिहास के गहरे गर्त में समाएं हुए हैं, जो मानव सभ्यता के प्रारंभिक जीवन के बेस कीमती प्रमाण हैं. माना जाता है कि सिरमौर के जंगलों में पाने जाने वाले ये शैलचित्र करीबन 10 हजार साल पुराने हैं.

बता दें कि ये शैलचित्र हमारे पूर्वजों की कला और संस्कृति का जीता-जागता उदाहरण पेश करते हैं. इन शैलचित्रों का रंग गेरुआ है. इसमें हाथियों की सवारी, जंगली जानवरों का शिकार और नृत्य करते हुए आदिमानवों के शैलचित्र चट्टानों में उकेर गए हैं. अफसोस कि बात है कि इस प्राचीन धरोहर को बचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा अब तक कोई पहल नहीं की गई है. ऐसे में लगातार मानव जानजाति के द्वारा छेड़छाड़ होने से इनका अस्तित्व खत्म हो रहा है.

संरक्षण की है जरूरत
सिरमौर के जंगलों में पाए जाने वाले शैलचित्रों को संरक्षण की बहुत जरूरत है. एक तरफ प्राचीन धरोहरों को संजोए रखने के लिए सरकार बड़े-बड़े वादे करती है, लेकिन वहीं दूसरी ओर सिरमौर के ये बेस कीमती शैलचित्र सरकार के सभी वादों की पोल खोल रहे हैं. दरअसल, जिस तरह भीमबेटका को तवज्जो दी गई है, ठीक उसी संरक्षण और टूरिस्म के हक़दार सिरमौर के जंगलों में व्याप्त ये शैलचित्र भी हैं.

रॉक पेंटिंग में क्या है
ऐसा बताया जाता है कि यह रॉक पेंटिंग मौसम के साथ परिवर्तित होती हैं. बरसात के समय में इनका रंग थोड़ा डल हो जाता है. जबकि बाकी सीजन में यह ज्यादा उभर कर आती हैं. यहां पर कई सारे जानवरों और मनुष्यों के चिन्ह बनाए गए हैं. इसमें हाथियों की सवारी, जंगली जानवरों का शिकार और नृत्य करते हुए आदि मानवों के शैल चित्र चट्टानों में उकेरे हुए हैं. हालांकि रॉक पेंटिंग्स संरक्षण के अभाव में खराब हो रही हैं. इसके अलावा गिट्टी तोड़ने वाले लोगों ने भी बड़ी-बड़ी चट्टानों को तोड़ के गिट्टी और पत्थर में तब्दील कर दिया है.

जागरूकता का अभाव
माना जाता है कि स्थानीय लोगों में जागरूकता का अभाव है. जिसके कारण सिरमौर की रॉक पेंटिग, अपनी पहचान के लिए मोहताज हैं. वहीं आज पूरी दुनिया के लोग भीम बैठका को देखने के लिए जाते हैं. इस बारे में इतिहासकारों का कहना है कि हमारे यहां रॉक पेंटिंग की कमी नहीं है. हालांकि फिलहाल इसे धार्मिक स्थल बनाने की तैयारी चल रही है. इसके लिए रंग रोगन का कार्य किया जा रहा है.

गुफाओं में दिखे लेपर्ड
कई इतिहासकारों ने दिलचस्पी होने के कारण सिरमौर के जंगलों का भ्रमण किया. इस दौरान कई बार जंगलों में रॉक पेंटिंग की खोज में लेपर्ड दिखाई दिए. तत्कालीन सीसीएफ थेरीवा एल के चौधरी ने पूरे बघेलखंड का सर्वे किया और उनकी आर्कियोलॉजी में बड़ी दिलचस्पी थी. इसी कारण से उन्होंने सिरमौर के जंगलों में जाकर वहां पर सर्वे किया और कई जगहों पर नंबर भी डाल दिया. इतना ही नहीं वहां पहुंचने का रास्ता भी उन्होंने बना दिया.

रीवा के सिरमौर की रॉक पेंटिंग की पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो.