Vindhya First

पद्मश्री जोधइया बाई बैगा की कहानी, पति की मौत, 69 की उम्र में बैगिन पेंटिंग को दुनिया में दिलाई पहचान

पद्मश्री जोधइया बाई विंध्य में उमरिया के लोहरा गांव की रहने वाली थीं. वे बैगिन पेंटिंग को पुनर्जीवित कर रही थीं. बैगाओं के घरों की दीवारों को सुशोभित करने वाले बड़ेदेव और बाघासुर की छवियां कम होते देखकर जोधइया बाई ने आधुनिक रंगों से कैनवास और ड्राइंग शीट पर उसी कला को उकेरना शुरू किया था.

पद्मश्री जोधइया बाई बैगा (Jodhaiya Bai Baiga) उम्दा चित्रकार थीं. जोधइया बाई की बनाई बैगा पेटिंग (Baiga Painting) देश और दुनिया भर में पहचानी जाती है. बैगा आदिवासी कलाकार जोधइया बाई का लंबी बीमारी के बाद 15 दिसंबर 2024 को 86 साल की उम्र में निधन हो गया. कला के क्षेत्र में एक अलग पहचान पाने वाली जोधइया बाई ने पति की मौत के बाद 67 साल की उम्र में चित्रकारी सीखना शुरू किया था. जोधइया बाई, आम कद कांठी की ख़ास व्यक्तित्व वाली महिला थीं. रचनात्मक ऊर्जा से भरी हुई जोधइया की आंखों में एक अलग किस्म की चमक थी. उन्हें बैगा जनजाति के अनुष्ठानों और किंवदंतियों को चित्रित करना पसंद था.

मजदूरी से जोधइया बाई का होता था गुजारा
दुनिया भर में नाम कमाने वाली जोधइया बाई का जीवन दुखों से भरा रहा है.जोधइया बाई का बचपन और जवानी काफी गरीबी में बीता. जोधइया जब 30 साल की थीं, तभी उनके पति का हो निधन गया. 60 के दशक में वह लकड़ी और गोबर बेचकर अपना गुजारा करती थीं. उस दौर तक उनका कला के प्रति कोई झुकाव नहीं था. लेकिन पति की मौत के कई साल बाद उन्होंने कुछ करने की ठानी और कागज़ पर छोटी पेंटिंग से शुरुआत करने से लेकर वह बड़े कैनवस पर आगे बढ़ती चली गईं. यही वह दौर था जब चित्रकला ने जोधइया बाई को परेशानियों का सामना करने और दुनिया में रहने के लिए नए रास्ते खोले. उनकी बनाई पेटिंग में एक प्रभावी नज़रिया देखने को मिलता है.

ये भी पढ़ें – VIFF: विंध्य इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में 23 देशों की फिल्मों की स्क्रीनिंग, अब आदिवासी गांवों का लोक रंग देखेंगे मेहमान

जोधइया बाई बैगा को पद्मश्री पुरस्कार
साल 2023 में जोधइया बाई बैगा को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से नवाज़ा गया. 8 मार्च 2022 को महिला दिवस के पर तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जोधाबाई बैगा को ‘नारी शक्ति सम्मान’ से सम्मानित किया. बता दें कि जोधइया बाई ने आदिवासी बैगा जनजाति की विलुप्त हो रही कलाक्रतियों को दुनिया भर में पहचान दिलाई है.

आशीष स्वामी ने दिखाया रास्ता
बता दें कि जोधइया बाई को बैगा पेंटिंग बनाने की राह उमरिया ज़िले के आशीष स्वामी ने दिखाई. आशीष, शांतिनिकेतन के कला भवन में चित्रकला का अध्ययन करने के बाद कई सालों तक मुंबई में रहे. बाद में जब वह अपने गृहनगर उमरिया लौटे थे तो पास के लोरहा गांव में जंगन तस्वीरखाना के नाम से एक ओपन स्टूडियो खोला. यहां पर कोई भी व्यक्ति कला में अपना हाथ आज़माने के लिए कागज, ब्रश और पेंट का उपयोग मुफ्त में कर सकता था. यहीं पर उनकी पहली बार जोधइया बाई बैगा से मुलाकात हुई थी. जोधइया बाई उस समय 69 साल की थीं.

ये भी पढ़ें – Ken Betwa मिलकर बुझाएंगी बुंदेलखंड की प्यास, अटल जी के सपने को साकार कर रही मोदी सरकार, जानें परियोजना की खास बातें

जोधइया बाई को मिला जुनून
जोधइया बाई ने उस वक्त आशीष स्वामी से कहा, “पेंटिंग मुझे दूसरी दुनिया में ले जाती है जहां मैं एक पक्षी की तरह आज़ाद हूं. जब मुझे हमारे गांव में एक शिक्षक के बारे में पता चला जो मुफ़्त पढ़ाने को तैयार थे, तो मैंने पेंटिंग को आज़माने का फैसला किया, जिसमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी. फिर भी, पहले ही दिन मुझे अपना जुनून मिल गया.”

पद्मश्री जोधइया बाई बैगा की कहानी जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।

Padmashree Jodhaiya Bai, Jodhaiya Bai Baiga, Baiga Painting, Jodhaiya Bai Baiga Death, umaria news, MP News, Jodhaiya Bai Baiga Passes Away, Jodhaiya Bai Baiga Painting