केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken Betwa River Link Project) की शुरुआत बुंदेलखंड (Bundelkhand) के इलाके में की गई है. इस परियोजना के तहत मध्यप्रदेश (MP) और उत्तरप्रदेश (UP) के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचाना है. बुंदेलखंड के इलाके के ऐसे परिवार जो आजीविका के लिए खेती किसानी पर निर्भर हैं. उनके लिए यह परियोजना वरदान साबित होने वाली है. लेकिन वहीं केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए इस इलाके के कई गांवों को विस्थापित किया जा रहा है. जिससे यहां रहने वाले स्थानीय परिवारों को अपनी जमीन और घर छोड़ने को लिए मजबूर होना पड़ रहा है. बता दें कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत पन्ना टाइगर रिजर्व में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा और 2.13 किलोमीटर लंबा ढोढन बांध बनाया जाएगा.
दरअसल, केन-बेतवा लिंक परियोजना के चलते कई गांव, बांध और जंगल के बीच फंस गए हैं. इन गावों में रहने वाले परिवारों के पास यहां से विस्थापित होने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. यही कारण है कि इस योजना से स्थानीय लोग संतुष्ट नहीं हैं. आज के इस आर्टिकल में हम एक ऐसे ही किसान परिवार की कहानी साझा कर रहे हैं, जो खेती करके अपने परिवार की आजीविका चलाता आ रहा था. सरकार की ओर से यहां के कई स्थानीय परिवारों को मुआवजा देने की बात कही गई है. हालांकि ये परिवार अब कम मुआवजा मिलने के कारण परेशान है. इन परिवारों का कहना है कि इतने कम मुआवजे में नया घर बनाना और भविष्य की जरूरतों को पूरा करना संभव नहीं है.
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स्थानीय निवासियों की समस्या
बता दें कि रमेश तिवारी पन्ना जिले के गहदरा गांव के मूल निवासी हैं. रमेश की उम्र 55 साल है और वह खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं. केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के 22 गांव के हजारों निवासियों की तरह रमेश को भी घर और जमीन छोड़ने के लिए नोटिस जारी किया गया है. इतना ही नहीं जिस जमीन पर वो कई साल से खेती करते आ रहे हैं उसमें भी पाबंदी लगा दी गई है. कहा जा रहा है कि खेत जोतने पर जेल होगी और ट्रैक्टर को जब्त कर लिया जाएगा.
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5 लाख प्रति एकड़ का मुआवजा
रमेश तिवारी के पास करीब 5 एकड़ जमीन है. इस जमीन के अलावा रमेश का अपना घर और कुछ मवेशी भी हैं. इसी घर में रमेश के साथ उनके बेटे-बहू और तीन पोते रहते हैं. बता दें कि हजारों लोगों की तरह रमेश को यहां से जाने के लिए सरकार ने नोटिस जारी किया है. इसके बदले में रमेश को 5 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा देने को कहा है, लेकिन रमेश को उसके घर का उचित मुआवजा देने को प्रशासन तैयार नहीं है. रमेश कहते हैं कि सरकार का यह पैकेज काफी कम है. इस पैसे में ना तो कहीं और जाकर नया घर बनाया जा सकता है और ना ही बच्चों की शादी की जा सकती है. रमेश की बहू कहती है कि जब तक हमारे घर का मुआवजा नहीं मिल जाता है तब तक हम अपना घर छोड़ के कहीं नहीं जाएंगे.
पक्के मकान का कितना मुआवजा
केन-बेतवा लिंक परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले मकानों के लिए भी मुआवजा देने का प्रावधान है. हालांकि स्थानीय लोगों का आरोप है कि काफी कम मुआवजा दिया जा रहा है. वहीं कई परिवारों का कहना है कि सिर्फ कुछ ही लोगों को उनके घरों का मुआवजा दिया जा रहा है. जबकि कई परिवार अभी भी मुआवजा पाने के इंतजार में हैं. इस बारे में रमेश तिवारी की बहू बताती हैं कि उनका दो कमरों का पक्का मकान है. पक्की अटारी के साथ इसमें लेटरिंग और बाथरूम भी है. इतना सब होने के बाद भी घर का मुआवजा सिर्फ 72000 बनाया गया है. कई बार इसकी शिकायत भी की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हैरान करने वाली बात यह है कि इन परिवारों को विस्थापन के बाद कहां बसाया जाएगा यह कोई नहीं जानता.
केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के बारे में पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो।।।
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