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बहिनी दरबार: वंचितों का संगठन, बघेली मासिक पत्रिका

रीवा ज़िले के डभौरा अंबेडकर नगर में 2008 से जारी एक अनूठी पहल—बहिनी दरबार—आज हजारों महिलाओं की आवाज़ बन चुकी है. यह सिर्फ़ एक संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जहां महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ती हैं और अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाती हैं. गांवों की गलियों में एक गहरी पीड़ा छुपी होती है, और इसी दर्द को सुनने के लिए बहिनी दरबार की महिलाएं निकलती हैं. वे निडर हैं, अडिग हैं, और बदलाव की चाहत लिए हर गली, हर चौपाल तक पहुंचती हैं.

तस्वीर: आकाश पाण्डेय (विंध्य फर्स्ट)

एक बूढ़ी अम्मा, अपनी तकलीफ सुनाते हुए फूट-फूटकर रो पड़ती हैं. उनके आंसू सिर्फ़ दर्द नहीं, बल्कि उम्मीद भी हैं—कि शायद कोई उनकी बात सुनेगा, कोई उनकी समस्या को समझेगा, और कोई उन्हें न्याय दिलाएगा.

तस्वीर: आकाश पाण्डेय (विंध्य फर्स्ट)

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दरबार तक पहुंचती है हर आवाज़
बहिनी दरबार की महिलाएं सिर्फ़ समस्याएं सुनती नहीं, बल्कि उन्हें दरबार में लेकर आती हैं, जहां हर शिकायत दर्ज की जाती है. यहां सिर्फ़ कान नहीं, बल्कि दिल भी लगाए जाते हैं. महिलाओं के संघर्ष की कहानियां हाथ से लिखी जाती हैं, और न्याय की राह दिखाने के लिए एक विशेष माध्यम तैयार किया जाता है—बहिनी दरबार की मासिक पत्रिका.

तस्वीर: आकाश पाण्डेय (विंध्य फर्स्ट)

बघेली में प्रकाशित होती है संघर्ष की कहानियां
आवाज़ जितनी ऊंची होगी, न्याय उतना ही जल्दी मिलेगा. इसी सोच के साथ बहिनी दरबार मासिक बघेली पत्रिका प्रकाशित करता है. यह पत्रिका सिर्फ़ शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि उन पीड़ित महिलाओं की पुकार है, जो न्याय की तलाश में भटक रही हैं.
बहिनी दरबार की यह पत्रिका 20 रुपए में 10 पन्नों की होती है, जिसे गांवों, पंचायतों, आंगनवाड़ियों, और 3000 से अधिक महिलाओं तक पहुंचाया जाता है. यह पत्रिका पुलिस स्टेशनों तक भी भेजी जाती है, ताकि उन अन्यायों पर ध्यान दिया जा सके, जिन्हें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.
इसके अलावा, इस पत्रिका में बघेली भाषा के लोकशब्दों, संविधान में महिलाओं के अधिकारों, और सामाजिक न्याय से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी को भी शामिल किया जाता है।

तस्वीर: आकाश पाण्डेय (विंध्य फर्स्ट)

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कैलशिया की कहानी: जब एक अन्याय ने क्रांति को जन्म दिया
इस दरबार की शुरुआत एक पीड़ादायक घटना से हुई. कैलशिया, एक दलित महिला, को सिर्फ़ उसकी जाति के कारण सार्वजनिक नल से पानी भरने से रोक दिया गया था। यह अन्याय उस समाज में हुआ, जो समानता और अधिकारों की बात करता है. कैलशिया की यह कहानी बहिनी दरबार के गठन की वजह बनी और एक नई क्रांति का आरंभ हुआ.

तस्वीर: आकाश पाण्डेय (विंध्य फर्स्ट)

बहिनी दरबार: न्याय का मंच, संघर्ष की शक्ति
बहिनी दरबार उन तमाम महिलाओं की ताकत है, जो अपनी लड़ाई खुद लड़ना चाहती हैं. यहां हर शिकायत सुनी जाती है और हर अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाई जाती है. यह सिर्फ़ पत्रकारिता नहीं, संघर्ष का दस्तावेज़ है. दस महिलाएं, दस कलमें, और एक ही मकसद—वंचितों की आवाज़ बनना. यह दरबार उन महिलाओं का है, जिनकी तकलीफें अब सिर्फ़ कागज़ पर नहीं, बल्कि समाज में बदलाव के रूप में दर्ज हो रही हैं.