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मध्य प्रदेश में ज़िला बदर कानून का हो रहा दुरुपयोग, आदिवासी कार्यकर्ता अंतराम आवासे के केस से खुलासा

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के एक छोटे से गांव सिवाल में एक दृश्य सामने आया, जो न केवल आदिवासी समुदाय, बल्कि पूरे राज्य के नागरिक अधिकारों और कानून के दुरुपयोग पर सवाल उठाता है. 35 वर्षीय आदिवासी कार्यकर्ता अंतराम आवासे ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया. लेकिन उनकी यह पहल, जो आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील की प्रतिमा के पास आयोजित की गई, कुछ शक्तिशाली लोगों को पसंद नहीं आई. परिणामस्वरूप, उन्हें ‘सार्वजनिक शांति के लिए खतरा’ बताते हुए बुरहानपुर जिले से बाहर कर दिया गया, यह आदेश बाहिष्करण कानून (Externment Law) के तहत दिया गया. इस घटना ने मध्य प्रदेश में बढ़ते ज़िला बदर के मामलों और उनके दुरुपयोग को उजागर किया है.

ज़िला बदर (Externment) कानून क्या है?
ज़िला बदर, जिसे बाहिष्करण कानून भी कहा जाता है, एक निवारक कानून है जिसका उद्देश्य उन लोगों को किसी जिले या क्षेत्र से बाहर करना है, जिनकी गतिविधियां सार्वजनिक शांति के लिए खतरा हो सकती हैं. यह कानून अपराधियों के खिलाफ तो एक आवश्यक उपाय हो सकता है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल विरोधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, या सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों पर किया जाता है, तो यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में गंभीर सवाल उठाता है.

अंतराम आवासे का मामला
अंतराम आवासे, जो आदिवासी अधिकारों के लिए लंबे समय से काम कर रहे हैं, उन पर आरोप था कि वे जन आंदोलन भड़काते हैं, वन भूमि पर अतिक्रमण को बढ़ावा देते हैं और कानून-व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं. उनके खिलाफ वन विभाग द्वारा 11 शिकायतें दर्ज की गईं और दो एफआईआर भी 2019 और 2022 में हुईं. हालांकि, अदालत में पेश किए गए सबूतों से यह साबित हुआ कि आवासे के खिलाफ किसी भी आरोप में ठोस गवाही नहीं थी और उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया था. इसके बावजूद, जिला कलेक्टर ने उन्हें बुरहानपुर जिले से बाहर कर दिया.

आवासे ने इस आदेश को 2024 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी, और दो महीने तक मुकदमा लड़ा. अंततः, हाई कोर्ट ने यह आदेश अवैध करार दिया और जिला कलेक्टर पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया. अदालत ने इस आदेश को “अधिकारों का अतिरेक” बताते हुए कहा कि प्रशासन को राजनीतिक दबाव में इस प्रकार के आदेश नहीं देने चाहिए.

ज़िला बदर मामलों की बढ़ती संख्या
मध्य प्रदेश में ज़िला बदर के मामलों में 2016 से 2023 के बीच तीन गुना वृद्धि देखी गई है. आंकड़ों के अनुसार, 31,843 व्यक्तियों को जिला बदर किया गया, जो चुनावी सालों में और अधिक बढ़ी है. 2018 में जब विधानसभा चुनाव होने वाले थे, 4,719 निष्कासन आदेश जारी किए गए, और 2023 में यह संख्या बढ़कर 7,319 हो गई. यह बढ़ती संख्या और खासकर चुनावी वर्षों में इसके इस्तेमाल ने इस बात को मजबूती दी है कि यह कानून विरोधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को चुप कराने के लिए इस्तेमाल हो रहा है.

क्या यह कानून राजनीतिक उत्पीड़न का उपकरण बन चुका है?
मीडिया रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों के मुताबिक, ज़िला बदर कानून का इस्तेमाल अब केवल अपराधियों के खिलाफ नहीं, बल्कि राजनीतिक विरोधियों और समाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी किया जा रहा है. क्रिमिनल लॉयर निकिता सोनवणे के अनुसार, इस कानून का दुरुपयोग सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है, जो लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है.

क्या यह कानून संशोधन की मांग करता है?
ज़िला बदर कानून का दुरुपयोग लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है. यह कानून यदि अपराधियों के खिलाफ सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो यह समाज के लिए लाभकारी हो सकता है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल समाज सुधारक, विरोधी कार्यकर्ताओं और जन आंदोलनों के खिलाफ किया जाए, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन बनता है. ऐसे में इस कानून में संशोधन की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके और लोगों के अधिकारों की रक्षा की जा सके.

आंतराम आवासे का मामला इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे ज़िला बदर कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है, और यह लोकतांत्रिक अधिकारों पर गंभीर हमला करता है. हालांकि आवासे को न्याय मिला, लेकिन कई अन्य कार्यकर्ताओं को भी इसी कानून के तहत बिना ठोस आधार के निष्कासित किया गया है. यह सवाल उठता है कि क्या इस कानून को अब पुनः परिभाषित और संशोधित करने की जरूरत है, ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके और वास्तविक अपराधियों के खिलाफ इसे सही तरीके से लागू किया जा सके.