भारत के मुख्य न्यायाधीश ने हाल ही में पतंजलि और बाबा रामदेव पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा – “पतंजलि ने झूठ बोला है… बार-बार बोला है… और सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर बोला है. ये माफ़ करने लायक नहीं है.” ये बयान सिर्फ एक कंपनी नहीं, बल्कि एक पूरे ब्रांड और उसकी नैतिक साख पर सीधा वार है.
झूठे दावे और कोर्ट की फटकार
एक ताज़ा रिपोर्ट में पतंजलि से जुड़ी कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. कोविड काल में ‘कोरोनिल’ को WHO सर्टिफाइड बताकर बेचना एक बड़ा झूठ निकला. दिल्ली हाई कोर्ट और ASCI जैसी संस्थाओं ने दर्जनों बार पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों को गलत ठहराया. आयुर्वेद के नाम पर विज्ञान को नकारा गया, और देशभक्ति के आवरण में झूठे दावे किए गए. विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) ने 2021 तक पतंजलि के 40 से अधिक विज्ञापनों को भ्रामक पाया. कई विज्ञापनों में एलोपैथी को बदनाम कर, आयुर्वेद को ‘सर्वश्रेष्ठ समाधान’ के रूप में बेचा गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह लोगों की ज़िंदगी से धोखा है, न कि विज्ञापन.”
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Toggleरियायती ज़मीनें और सत्ता की मिलीभगत
उत्तराखंड, यूपी, हरियाणा, राजस्थान सहित कई राज्यों में पतंजलि को ज़मीनें बेहद कम दामों पर दी गईं. हरियाणा के साम्भलखा में 53 एकड़ ज़मीन ₹57 लाख में दी गई, जबकि बाज़ार कीमत ₹16 करोड़ थी. कुछ ज़मीनें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित थीं, जिन्हें नियमों की अनदेखी करके ट्रांसफर किया गया.
NGO की आड़ में व्यापार और टैक्स छूट
2010 से 2017 के बीच पतंजलि से जुड़ी संस्थाओं ने ₹10,000 करोड़ से अधिक का व्यापार किया. ‘चैरिटेबल ट्रस्ट’ का दर्जा होने के कारण इन्हें करोड़ों की टैक्स छूट मिली, जबकि धन का इस्तेमाल निजी निर्माण, रियल एस्टेट और फार्मा ट्रेडिंग में किया गया.
स्वदेशी के नाम पर विदेशी निवेश
‘स्वदेशी’ के झंडाबरदार बाबा रामदेव की कंपनी Ruchi Soya में विदेशी निवेश पाया गया. SEBI ने इस पर जांच भी शुरू की, और शेयर बाज़ार में हेराफेरी के आरोप सामने आए.
दोहरे मापदंड और नैतिक गिरावट
जहां एक ओर बाबा शराब और मांस का विरोध करते हैं, वहीं हरकारा की जांच में सामने आया कि उनके कुछ सप्लायर्स इन उत्पादों से भी जुड़े हैं. यही दोहरापन अब उनकी साख को लगातार चोट पहुंचा रहा है.