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पीएम आवास योजना या धोखे का सपना? हापुड़ में 40 दलित परिवारों को उजाड़ने की तैयारी

आप कल्पना कीजिए, सरकार खुद आपको एक योजना के तहत घर बनाने के लिए जमीन और पैसे देती है. फिर कुछ सालों बाद वही सरकार कहती है कि आप इस जमीन पर अवैध रूप से रह रहे हैं. यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के हापुड़ ज़िले के इंद्रा नगर मोहल्ले की कड़वी सच्चाई है. जहां 40 दलित परिवार, जिन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत अपने सपनों का घर बनाया था, अब उन्हें बेदखल करने की तैयारी की जा रही है. सवाल यह नहीं है कि ज़मीन क्या थी, सवाल यह है कि अगर सरकार ने खुद इन्हें बसाया, तो अब इन्हें उजाड़ कौन रहा है? और क्यों? वहीं प्रशासन का तर्क है कि यह ज़मीन कभी ‘सरकारी तालाब’ थी, जबकि इन परिवारों को 1986 में प्रशासन ने खुद पुनर्वास के तहत बसाया था.

 शब्द से भरा नोटिस, इंसाफ की जगह अपमान
9 अप्रैल 2025 को 58 वर्षीय गंगाराम समेत 40 परिवारों को नोटिस मिला, जिसमें कहा गया,  आप नगर पालिका की ज़मीन पर अवैध रूप से कब्जा किए हुए हैं और अपनी हेकड़ी पर टिके हुए हैं.  यह भाषा न केवल अपमानजनक है, बल्कि सरकारी संवेदनशीलता पर भी सवाल खड़े करती है.

सरकार से मिले पैसे, फिर भी घर अवैध’?
गंगाराम बताते हैं कि उन्हें पीएम आवास योजना के तहत ₹2 लाख की सहायता मिली थी. इसी तरह, कमला देवी को ₹2.5 लाख की सरकारी मदद और ₹80,000 अपनी जमा पूंजी से जोड़कर घर बनाना पड़ा. क्या यह योजना के नाम पर गरीबों के साथ छल नहीं है?

प्रशासन की चुप्पी और कोर्ट का रास्ता
जिलाधिकारी प्रेरणा शर्मा ने माना कि मामला अब उनके संज्ञान में आया है और जांच की जाएगी. लेकिन जब उनसे नोटिस की भाषा पर सवाल किया गया, तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. पीड़ितों को केवल कोर्ट जाने की सलाह दी जा रही है – लेकिन एक गरीब कोर्ट कैसे लड़ पाएगा?

सिर्फ हापुड़ नहीं, पूरे सिस्टम पर सवाल
यह मामला अकेले इंद्रा नगर का नहीं है, बल्कि उन तमाम गरीब और दलित परिवारों की कहानी है, जिन्हें योजनाओं के नाम पर पहले उम्मीदें दी जाती हैं और फिर बेदखल कर दिया जाता है. सवाल ये है कि क्या सरकारी योजनाएं अब गरीबी हटाने का जरिया हैं या गरीबी बढ़ाने का?



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