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Toggleकोटा में स्टूडेंट्स सुसाइड: सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से पूछा- कोटा में ही क्यों हो रही हैं इतनी मौतें
कोटा में स्टूडेंट्स सुसाइड: शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने छात्र आत्महत्या मामलों की सुनवाई करते हुए कोटा में हो रही छात्रों की आत्महत्याओं को एक गंभीर मुद्दा बताया. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने राजस्थान सरकार को कड़ी फटकार लगाई और पूछा, ‘कोटा में इस साल अब तक 14 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. एक राज्य के तौर पर आप इसे लेकर क्या कर रहे हैं? छात्र कोटा में आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? क्या आपने एक राज्य के तौर पर इस पर कोई विचार नहीं किया.’ यह टिप्पणी कोटा में एक छात्रा का शव मिलने और आईआईटी खड़गपुर के छात्र की आत्महत्या के मामले की सुनवाई के दौरान की गई. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है. अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी.
मामले की पृष्ठभूमि
4 मई को नीट परीक्षा से कुछ ही घंटे पहले कोटा के एक हॉस्टल में 17 साल की छात्रा का शव मिला था. उसी दिन आईआईटी खड़गपुर में पढ़ने वाले 22 साल के एक छात्र ने अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगा ली थी. इन्हीं दोनों मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को स्वतः संज्ञान लिया था.
आईआईटी खड़गपुर में छात्र की आत्महत्या के मामले में, 14 मई को कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए मामले का संज्ञान लिया था कि क्या प्रशासन ने ‘अमित कुमार और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य’ मामले में दिए गए निर्देशों के अनुसार एफआईआर दर्ज की है. दूसरी ओर, कोटा में हुई आत्महत्या के संबंध में कोर्ट ने एफआईआर दर्ज न होने का कारण पूछा था.

सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान सरकार के बीच हुई बहस
सुप्रीम कोर्ट: आप क्या कर रहे हैं? ये बच्चे कोटा में ही क्यों आत्महत्या कर रहे हैं? आपने एक राज्य के तौर पर इसे लेकर कुछ नहीं सोचा क्या?
वकील (राजस्थान सरकार): इस तरह के आत्महत्या के मामलों के लिए एक एसआईटी का गठन किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट: छात्रा के आत्महत्या करने के बाद एफआईआर क्यों नहीं लिखी गई?
वकील (राजस्थान सरकार): मामले की जांच की जा रही है और एसआईटी को आत्महत्याओं के सभी मामलों के बारे में पता है.
सुप्रीम कोर्ट: अभी तक कोटा में कितने छात्र आत्महत्या कर चुके हैं?
वकील (राजस्थान सरकार): 14.
सुप्रीम कोर्ट: ये छात्र आत्महत्या क्यों कर रहे हैं?
वकील (राजस्थान सरकार): सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई टास्क फोर्स को रिपोर्ट तैयार करने के लिए थोड़ा समय चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट: आपने कोर्ट के जजमेंट की अवमानना की है. आपने अभी तक एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? छात्रा कोचिंग द्वारा दिए गए आवास में नहीं रह रही थी. नवंबर 2024 में ही उसने हॉस्टल छोड़ दिया था और अपने माता-पिता के साथ रह रही थी. लेकिन पुलिस की यह ड्यूटी थी कि वह इस मामले में एफआईआर दर्ज करे और जांच की जाए. संबंधित पुलिस स्टेशन के अधिकारी अपनी ड्यूटी पर खरे नहीं उतरे हैं. उन्होंने कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया है.

नेशनल टास्क फोर्स (NTF) के गठन का आदेश
आईआईटी दिल्ली के दो छात्रों की आत्महत्या के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टास्क फोर्स बनाने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पूर्व जज जस्टिस एस रविंद्र भट एनटीएफ के चेयरपर्सन होंगे. इसके अलावा साइकेट्रिस्ट डॉ आलोक सरीन और अन्य विशेषज्ञों को भी इसमें शामिल किया गया था. कोर्ट ने सरकार को दो हफ्तों के भीतर एनटीएफ के शुरुआती संचालन के लिए ₹20 लाख जमा करने के निर्देश दिए थे.
राजस्थान हाईकोर्ट ने भी जताई चिंता
19 मई को कोटा में हो रहे छात्रों की आत्महत्याओं के मामलों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने भी चिंता जताई थी. न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि 2016 से लंबित जनहित याचिका के बावजूद, इस मुद्दे पर अभी तक कोई कानून नहीं बन पाया है. चीफ जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस मुकेश राजपुरोहित की बेंच ने कहा कि कोर्ट के बार-बार निर्देश के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. इस मामले में दो हफ्तों बाद अगली सुनवाई होगी.
कोटा में आत्महत्याओं के आंकड़े
विगत वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2024 में कोटा में 17 छात्रों ने अपनी जान ले ली. पिछले साल की बात करें तो जनवरी में 2 और फरवरी में 3 छात्रों ने आत्महत्या की थी. वहीं, 2023 में कोटा से कुल 26 छात्र आत्महत्या के मामले सामने आए थे.

आत्महत्या के कारण और विशेषज्ञों की राय
एमपी सुसाइड प्रिवेंशन टास्क फोर्स के सदस्य और साइकेट्रिस्ट डॉ सत्यकांत त्रिवेदी ने कोटा में हो रहे छात्र आत्महत्याओं को लेकर कहा, ‘किसी भी आत्महत्या का कोई एक कारण नहीं होता. वही एग्जाम सभी बच्चे दे रहे होते हैं. ऐसे में आत्महत्या के लिए मिले-जुले फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं. इसमें जेनेटिक्स कारण, सामाजिक कारण, पीयर प्रेशर, माता-पिता की अपेक्षाएं, शिक्षा तंत्र सब शामिल है.’
डॉ. त्रिवेदी के अनुसार, हम बच्चों को तनाव, अस्वीकृति या असफलता का सामना करना सिखाने में कहीं न कहीं विफल हो रहे हैं. आज बच्चा यह मानने लगा है कि उसका एकेडमिक अचीवमेंट उसके अस्तित्व से भी बड़ा है. बच्चा तैयारी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, जीवन छोड़ने के लिए तैयार है.
प्रतियोगी परीक्षाओं को समाज में इतना महत्व दिया गया है कि बच्चों के मन में यह धारणा बन गई है कि वे तभी सफल हो पाएंगे जब वे कोई बड़ी परीक्षा पास कर लेंगे. हालांकि, लाखों छात्र इन परीक्षाओं में बैठते हैं, लेकिन सीटें केवल कुछ हज़ार ही होती हैं, जिसका मतलब है कि अधिकांश छात्रों को सफलता नहीं मिल पाती.
लेकिन फेलियर से डील करने के लिए बच्चों को कोई तैयार करता ही नहीं है. बाल सभा में मोटिवेशन लेक्चर लगा देने से, काउंसलर लगा देने से, कोई मूवी दिखा देने से कुछ नहीं होगा. पूरे सिस्टम पर काम करना होगा.
छात्र आत्महत्या की रोकथाम के लिए सरकार के नियम
छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों, कोचिंग सेंटर्स में आग की घटनाओं और कोचिंग सेंटर्स में सुविधाओं की कमी को देखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के लिए गाइडलाइंस जारी की थी. भारत में छात्र आत्महत्या की रोकथाम के लिए सरकार ने ये नियम बनाए हैं:
- मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017: इस एक्ट के अनुसार मानसिक विकारों से पीड़ित व्यक्ति को इसके लिए ट्रीटमेंट लेने और गरिमा के साथ जीवन जीने का पूरा हक है.
- एंटी रैगिंग मेजर्स: सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, रैगिंग की शिकायत आने पर सभी एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स को पुलिस के पास एफआईआर दर्ज करानी होगी. साल 2009 में हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स में रैगिंग की घटनाओं की रोकथाम के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन यानी यूजीसी ने रेगुलेशन जारी की थी.
- स्टूडेंट काउंसलिंग सिस्टम: स्टूडेंट्स की एंजाइटी, स्ट्रेस, होमसिकनेस, फेल होने के डर जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए यूजीसी ने 2016 में यूनिवर्सिटीज को स्टूडेंट्स काउंसलिंग सिस्टम सेट-अप करने को कहा था.
- गेटकीपर्स ट्रेनिंग फॉर सुसाइड प्रिवेंशन बॉय NIMHANS, SPIF: NIMHANS यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस और SPIF यानी सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन इस ट्रेनिंग को कराते हैं. इसके जरिए गेटकीपर्स का एक नेटवर्क तैयार किया जाता है जो सुसाइडल लोगों की पहचान कर सके.
- एनईपी 2020: टीचर्स स्टूडेंट्स की सोशियो-इमोशनल लर्निंग और स्कूल सिस्टम में कम्यूनिटी इन्वॉल्वमेंट पर ध्यान दें. साथ ही स्कूलों में सोशल वर्कर्स और काउंसलर्स भी होने चाहिए.