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Toggleजामा मस्जिद बंद: ईद-उल-अजहा पर श्रीनगर में क्यों लगा ताला?
जामा मस्जिद बंद: आज पूरे भारत में ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, बड़े उत्साह के साथ मनाई जा रही है. जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बावजूद, लोगों ने मस्जिदों में नमाज अदा की और इस पर्व को शांतिपूर्ण ढंग से मनाया. हालांकि, श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद में लगातार सातवें साल ईद-उल-अजहा के मौके पर नमाज नहीं हो सकी, क्योंकि मस्जिद बंद रही.
जामा मस्जिद का बंद रहना
श्रीनगर के नौहट्टा में स्थित जामा मस्जिद, जो जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी मस्जिद है, को 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से सुरक्षा कारणों से बंद रखा गया है. इसे शुक्रवार मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है. 2018 में कुछ नकाबपोश युवकों द्वारा मस्जिद पर ISIS का झंडा लगाए जाने की घटना के बाद से यह मस्जिद विवादों में रही है. उस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित हुआ था, जिसकी कड़ी निंदा की गई थी. इसके बाद, 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 हटने के साथ ही मस्जिद में नमाज पर रोक लगा दी गई. सरकार ने कोविड-19 महामारी को भी मस्जिद बंद करने का एक कारण बताया था.
ईद-उल-अजहा के अवसर पर जम्मू-कश्मीर में नमाज की कुछ तस्वीरें….






नेताओं की प्रतिक्रिया
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जामा मस्जिद को बंद रखने के फैसले पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि इस फैसले का कोई स्पष्ट आधार नहीं है और सरकार को स्थानीय लोगों पर भरोसा करना चाहिए, जिन्होंने पहलगाम हमले का विरोध किया था. उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि ऐतिहासिक जामा मस्जिद में नमाज की अनुमति दी जाए.
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी इस मुद्दे पर सख्त प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि ईद जैसे पवित्र दिन पर मस्जिद को बंद करना धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को नजरबंद किया गया है, और यदि सब कुछ सामान्य है तो ऐसे कदम क्यों उठाए जा रहे हैं.
जामा मस्जिद का ऐतिहासिक महत्व
जामा मस्जिद का निर्माण सुल्तान सिकंदर शाहमीरी ने 1394 में शुरू करवाया था, और यह 1404 में बनकर तैयार हुई थी. यह मस्जिद कई बार विवादों और क्षति का शिकार हुई, लेकिन हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया. अंतिम बार महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में इसका जीर्णोद्धार हुआ, और तब से यह अच्छी स्थिति में है. यह स्थान 1820 से 1846 तक महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान बंद रहा था. 2018 में, लगभग 250 साल बाद, इसकी व्यापक मरम्मत की गई थी.
मस्जिद की वास्तुकला
जामा मस्जिद की वास्तुकला इंडो-सारासेनिक शैली में है, जिसे ब्रिटिश वास्तुकारों ने डिजाइन किया था. यह भारतीय और मुगल कला का एक अनूठा संगम है. मस्जिद का प्रार्थना हॉल 370 देवदार के मोटे खंभों पर टिका हुआ है, और इसमें एक साथ 33,333 लोग नमाज अदा कर सकते हैं. यह मस्जिद न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है.
आर्टिकल 370 का हटना
5 अगस्त 2019 को केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटा दिया था, जिसके तहत राज्य को विशेष दर्जा प्राप्त था. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में विभाजित कर दिया गया. इस फैसले के बाद से क्षेत्र में कई बदलाव देखने को मिले, जिनमें जामा मस्जिद का बंद रहना भी शामिल है.
जम्मू-कश्मीर में बकरीद का पर्व भले ही उत्साह के साथ मनाया गया, लेकिन जामा मस्जिद का बंद रहना एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है. यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल है, बल्कि स्थानीय लोगों के विश्वास और क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहर को भी प्रभावित करता है. नेताओं की आपत्तियों और जनता की भावनाओं को देखते हुए, केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इस तरह के विवादों से बचा जा सके.