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Toggleकुसमी महाविद्यालय घोटाला: फर्जी डिग्री और घूसखोरी का खुलासा, कार्रवाई क्यों अटकी?
मध्यप्रदेश के सीधी जिले का शासकीय महाविद्यालय कुसमी इन दिनों गंभीर आरोपों को लेकर सुर्खियों में है. यहाँ पदस्थ अतिथि विद्वान ग्रंथपाल ऋषिकेश सोधिया पर छात्रों से पैसों की वसूली, घूसखोरी और फर्जी डिग्री के सहारे नौकरी करने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं.
घूसखोरी का वीडियो वायरल
मामला तब और गर्माया जब एक वायरल वीडियो सामने आया. वीडियो में ऋषिकेश सोधिया कॉलेज के प्राचार्य कक्ष में एक छात्रा से 200 रुपए लेते हुए साफ दिखाई दे रहे हैं. इस वीडियो के बाद जांच हुई, गवाहों ने भी लिखित में रिश्वत लेने की बात स्वीकार की और सबूत भी मिले. लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई.
फर्जी डिग्री का बड़ा खुलासा
सबसे बड़ा विवाद उनकी शैक्षणिक डिग्री को लेकर है. रिकॉर्ड के मुताबिक, उन्होंने जनवरी 2009 में शुरू होने वाला एक वर्षीय M.Phil पाठ्यक्रम 2012 में पूरा किया. और वो भी ऐसे दस्तावेजों से, जिनमें एक ही महीने और एक ही साल की मार्कशीट दिखाई गई. जबकि आयुक्त, उच्च शिक्षा विभाग पहले ही आदेश जारी कर चुके थे कि 2010 के बाद की दूरस्थ शिक्षा डिग्री मान्य नहीं होगी. इसके बावजूद सोधिया को संरक्षण देकर नौकरी पर बनाए रखा गया.
आदिवासी इलाका और गरीब छात्रों पर बोझ
कुसमी एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. यहाँ के छात्र सीमित संसाधनों और आर्थिक कठिनाइयों के बीच उच्च शिक्षा हासिल करने का सपना देखते हैं. लेकिन आरोप है कि छात्रों से असाइनमेंट, सेमिनार और नकल तक के नाम पर पैसे वसूले गए. इससे न केवल बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है बल्कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था की साख भी सवालों के घेरे में है.
जांच रिपोर्ट के बाद भी कार्रवाई क्यों लंबित?
सबसे बड़ा सवाल यही है—जब जांच रिपोर्ट में सबूत और गवाह दोनों मौजूद हैं, तो अब तक कोई कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या शिक्षा विभाग ऐसे मामलों को नजरअंदाज करता रहेगा? क्या कुसमी जैसे पिछड़े इलाकों के छात्रों को न्याय नहीं मिलेगा?
शिक्षा की छवि दांव पर
यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की छवि पर गहरा धब्बा है. जब फर्जी डिग्री और रिश्वतखोरी जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया जाता, तो यह साफ संकेत है कि कहीं न कहीं प्रशासनिक संरक्षण भी शामिल है.
नतीजा?
आज कुसमी महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र और उनके अभिभावक यही पूछ रहे हैं—
“जब सबूत मौजूद हैं, तो कार्रवाई क्यों टाली जा रही है? क्या शिक्षा मंदिर को ऐसे लोग बदनाम करते रहेंगे?”