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Toggleसोनभद्र खदान त्रासदी: 72 घंटे बाद रेस्क्यू ऑपरेशन स्थगित, मलबे से 7 शवों की बरामदगी
सोनभद्र खदान त्रासदी: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में एक कोयला खदान में हुए भीषण हादसे ने एक बार फिर से खनन क्षेत्र में सुरक्षा मानकों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. हादसे के 72 घंटे से अधिक समय बीत जाने के बाद, बुधवार को बचाव कार्य को आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया गया. इस दौरान, रेस्क्यू टीमों ने मलबे से 7 श्रमिकों के शव बरामद किए हैं, जबकि कई अन्य अब भी लापता हैं.
यह त्रासदी सोमवार सुबह की है, जब जिले के ओबरा इलाके में एक अवैध कोयला खदान में अचानक मिट्टी का बड़ा हिस्सा धंस गया और भारी मलबा ढह गया. इस हादसे में कई मजदूर जो खुदाई का काम कर रहे थे, मलबे में दब गए.
रेस्क्यू ऑपरेशन की चुनौतियाँ
बचाव कार्य लगातार तीन दिनों तक जारी रहा. एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा मोचन बल) और स्थानीय प्रशासन की टीमों ने बड़ी मुश्किल से मलबे को हटाने और किसी जीवन के संकेत को तलाशने की कोशिश की.
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दुर्गम इलाका: हादसे की जगह पहाड़ी और दुर्गम इलाके में होने के कारण बड़ी मशीनों को पहुँचाना मुश्किल था.
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मलबे का ढेर: खदान के ढहने से बहुत अधिक मात्रा में मलबा जमा हो गया था, जिसे सावधानी से हटाया जा रहा था ताकि नीचे फंसे किसी व्यक्ति को और नुकसान न पहुँचे.
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खतरनाक स्थिति: लगातार ढहने का खतरा बना रहने के कारण रेस्क्यू कर्मियों की जान को भी खतरा था.
72 घंटे के निरंतर प्रयासों के बाद, जब कोई जीवित व्यक्ति नहीं मिला और ढांचा अत्यधिक अस्थिर हो गया, तो अधिकारियों ने रेस्क्यू ऑपरेशन को रोकने का मुश्किल फैसला लिया.
क्या है पूरा मामला?
प्रारंभिक जाँच से पता चला है कि यह खदान अवैध रूप से चलाई जा रही थी. सुरक्षा मानकों की पूरी तरह से अनदेखी की गई थी. बिना किसी उचित समर्थन और योजना के की गई खुदाई के कारण ही यह भीषण हादसा हुआ. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह की अवैध खनन गतिविधियाँ इस इलाके में आम हैं, जहाँ गरीब मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर काम करने को मजबूर हैं.
प्रशासन की प्रतिक्रिया और आगे की कार्रवाई
हादसे के बाद प्रशासन ने हलकाना हुआ है. मृतक मजदूरों के परिवारों को मुआवजे की घोषणा की गई है. यूपी सरकार ने इस घटना की उच्च-स्तरीय जाँच के आदेश दिए हैं. एक एसआईटी (विशेष जाँच दल) गठित की गई है जो इस हादसे के हर पहलू और जिम्मेदार लोगों की पहचान करेगी.
हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ जाँच और मुआवजा ही ऐसी त्रासदियों को रोक पाएगा? सोनभद्र जैसे संसाधन-संपन्न इलाकों में अवैध खनन पर अंकुश लगाना और मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.
निष्कर्ष
सोनभद्र की यह घटना केवल एक खबर नहीं, बल्कि एक करारा झटका है. यह हमें याद दिलाती है कि विकास की कीमत इंसानी जिंदगियों पर नहीं चुकाई जा सकती. सात लोगों की मौत सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि सात परिवारों का सहारा टूट गया है. जब तक अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक नहीं लगेगी और खनन कर्मियों के लिए सख्त सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करवाया जाएगा, तब तक ऐसी दुर्घटनाओं का सिलसिला थमने वाला नहीं है.
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