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अनूपपुर के लखौरा बरटोला में स्कूल भवन नहीं, बच्चों का भविष्य जर्जर

शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है, लेकिन मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के लखौरा बरटोला गांव में यह अधिकार एक जर्जर आंगन में सिमट कर रह गया है. गांव का प्राथमिक विद्यालय, जहां कभी बच्चों की हंसी और किताबों की सरसराहट गूंजती थी, लेकिन अब मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका है. भवन तो तोड़ दिया गया, लेकिन नया निर्माण कब होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

भवन के अभाव में नौनिहालों का भविष्य अंधकार में डूबा है
इस स्कूल में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चे पढ़ते हैं. भवन के अभाव में बच्चों को शिक्षिका लीलावती वनवासी के छोटे से मकान में पढ़ाई करनी पड़ रही है. शिक्षिका के घर में न पर्याप्त जगह है, न बैठने की व्यवस्था. इन मासूमों को खुले आंगन में, धूप और बरसात के बीच, पढ़ना पड़ता है. 
इस उम्र में जब इन मासूमों को पढ़ना चाहिए तब ये खुद के साथ समझौता करना पड़ रहा है.

मध्यान भोजन की व्यवस्था भी चुनौती बन चुकी है. रसोइया मुन्नी बाई वनवासी के सामने यह समस्या है कि भोजन बने तो कहां? बच्चों को दोपहर का खाना किसी पड़ोसी के घर में जाकर खाना पड़ता है.

अभिभावकों की नाराजगी
इस अव्यवस्था को लेकर अभिभावकों और ग्रामीणों में जमकर रोष है. उनका कहना है कि स्कूल भवन गिरा दिया गया, लेकिन बच्चों के भविष्य के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. ऐसे में बच्चों के साथ घोर अन्याय हो रहा है. क्या शासन प्रशासन को ये अव्यवस्थाएं दिखाई नहीं देती, या फिर जानबूझ कर हमारे बच्चों के साथ ऐसा हो रहा है. ऐसा नहीं है कि इस समस्या को लेकर आवाज नहीं उठाई गई, कभी आम जन के द्वारा तो कभी जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधियों के द्वारा, लेकिन यहां की समस्या जस की तस बनी हुई है. पंचायत सचिव दिनेश वनवासी का कहते है कि प्रशासन से कई बार शिकायत की गई, लेकिन हर बार कार्यवाही शून्य होती है.

असल सवाल यह नहीं है कि भवन कब बनेगा. असल सवाल यह है कि इन बच्चों की पढ़ाई और बचपन को कब तक यूं ही टाला जाएगा. सरकार और प्रशासन को तुरंत संज्ञान लेने की आवश्यकता है, ताकि इन नौनिहालों को उनका हक मिल सके, एक सुरक्षित स्कूल, और एक उज्ज्वल भविष्य.


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