आधुनिक भारत जब विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है, उस दौर में मध्य प्रदेश का पड़रिया गांव उन जगहों में शामिल है जहां ये विकास सिर्फ फाइलों और घोषणाओं तक सीमित रह गया है. अनूपपुर जिले के जैतहरी ब्लॉक का पड़रिया गांव विकसित भारत में अंधेरे में जीने को मजबूर है. बिजली की मौजूदगी सिर्फ रिकॉर्ड में है, ज़मीनी हकीकत बेहद निराशाजनक है.
बिजली है, पर सिर्फ नाम की
पिछले दो दशकों से पड़रिया गांव के लोग लो-वोल्टेज की झिलमिलाहट में जिंदगी काट रहे हैं. बिजली का वोल्टेज इतना कम होता है कि बल्ब जल जाए, तो लोग चौंक जाते हैं. पंखे नहीं चलते, फ्रिज बंद है, और बच्चों की पढ़ाई अब भी दिया-बत्ती के सहारे होती है. बिजली के बिल नियमित आते हैं, लेकिन बिजली नहीं.
बरसात में गांव बन जाता है कीचड़ का समंदर
जैसे ही बरसात आती है, गांव पूरी तरह दुनिया से कट जाता है. सड़कों की जगह कीचड़ और फिसलन ले लेती है. सांप और बिच्छू जैसे खतरों के बीच लोगों को जीवन यापन करना पड़ता है. ज़रा सी तबियत बिगड़े तो अस्पताल पहुंचना मानो जंग लड़ने जैसा है.
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सामाजिक संकट में बदली अव्यवस्था
यह केवल आधारभूत सुविधाओं की समस्या नहीं रही, अब यह सामाजिक चिंता बन चुकी है. लोग यहां बेटियों की शादी करने से कतराते हैं. जिनकी शादी पहले हो चुकी है, वे भी परेशान हैं क्योंकि बिजली से चलने वाले उपकरण बस शोपीस बन चुके हैं.
कब मिलेगा इस अंधेरे से निजात?
गांव वालों ने कई बार प्रशासन और नेताओं से गुहार लगाई है, लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. 21वीं सदी के भारत में पड़रिया गांव एक ऐसा सवाल बनकर खड़ा है जो बार-बार पूछता है- क्या हमें इस अंधेरे से निकलने के लिए और कई दशक इंतजार करना होगा?
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