Vindhya First

Search

Maihar Band: बाबा अलाउद्दीन का ज़िंदा वारिस है मैहर बैंड, 106 साल पुरानी संगीत की विरासत अब कैसे बढ़ेगी आगे

साल 1918 में प्लेग की महामारी पूरी दुनिया में फैली थी. इससे मैहर में भी हजारों लोगों की जानें चली गई और कई बच्चे अनाथ भी हो गए. बाबा अलाउद्दीन खां उन अनाथ बच्चों को अपने घर लाए और उन्हे संगीत की शिक्षा दी. मैहर महराजा बृजनाथ सिंह को जब बाबा की इस योजना के बारे में पता चला तो इन बच्चों की मदद के लिए उन्होंने 12 रु. प्रतिमाह भत्ता देना शुरू किया. साथ ही बाबा को एक संगीत समूह बनाने को कहा. इसके बाद बाबा अलाउद्दीन खां ने भारतीय वाद्ययंत्रों के साथ एक ऑर्केस्ट्रा बनाया और इसका नाम रखा मैहर बैंड. इस प्रकार प्लेग के कारण अनाथ हुए 12 लड़के और 5 लड़कियों के साथ बैंड की शुरुआत हुई. 

बाबा अलाउद्दीन खां का जन्म 1862 में इस समय के बांग्लादेश के ब्राह्मणबरिया जिले के शिबपुर गांव में हुआ था. यहां से बाबा कोलकाता आए और फिर उत्तर प्रदेश के रामपुर के सेनिया घराना आए थे. इस घराने का ताल्लुक तानसेन से है. रामपुर से मैहर आने के बाद बाबा ने मैहर बैंड की नींव रखी. बता दें कि मैहर बैंड को ब्रास बैंड और स्ट्रिंग बैंड के नाम से भी लोग जानते हैं. यह जानना दिलचस्प है कि इस बैंड को बनाने का ख्याल कैसे आया.

इतिहास के पन्नों पर नजर दौड़ाने पर पता चला कि मैहर महाराजा बृजनाथ सिंह जब विदेश दौरे पर थे तब उन्होने भोज के दौरान विदेशी ब्रास बैंड बजते देखा. ब्रास बैंड ज्यादातर विदेशों में बजाया जाता था. इसे 4 लोग मिलकर बजाया करते थे. तब महाराजा बृजनाथ सिंह को विचार आया कि ऐसा बैंड हम क्या मैहर में भी बना सकते हैं. इस प्रकार बाबा अलाउद्दीन ने मैहर महाराजा की इच्छा पर एक स्ट्रिंग बैंड बनाया. यह स्ट्रिंग बैंड आमतौर पर अतिथियों के स्वागत में बजाया जाता था.

बाबा और बैंड पर बन चुकी है फिल्म
बाबा अलाउद्दीन और उनके बैंड पर फिल्म भी बनाई जा चुकी है. इसका निर्माण ऋत्विज घटक ने किया था. आपको देखने में यह फिल्म थोड़ी धुंधली लग सकती है लेकिन आप स्पष्ट तौर पर इसमें बाबा अलाउद्दीन को बीच में खड़े होकर वायलिन बजाते देख सकते हैं. बैंड के बाक़ी लोग उन्हें घेर कर खड़े हुए दिखाई देंगे.

नाल तरंग कैसे बनाया जाता है
नाल तरंग की तरह बजने वाला यह उपकरण मन को मोहने वाला है. दरअसल यह बंदूकों की नलियों को काट कर बनाया जाता है, जिसे अब मैहर बैंड में सौरभ चौरसिया और ज्योति चौधरी बजाते हैं. बता दें कि नाल तरंग तो बाबा ने बनाई थी. पर उनके बाद भी लोग मैहर में संगीत उपकरणों को अपने हिसाब से बनाने और ढालने का काम कर रहे हैं. खास बात यह है कि मैहर घराना बाबा अलाउद्दीन खां के शिष्यों और वारिसों के कारण दुनिया भर में जाना जाता है. इसमें उनके बेटे अली अकबर खान, उनके ख़ास शिष्य रविशंकर और बेटी अन्नपूर्णा देवी का भी काफी योगदान है.

सौ साल बाद भी प्रासंगिक है मैहर बैंड
मैहर बैंड आज सौ साल बाद भी प्रासंगिक है. यह भी एक तरह से बाबा अलाउद्दीन खां का वारिस है. हालांकि 106 साल बीत जाने के बाद भी कई चुनौतियां हैं. बाबा का परिवार आज भी इस विरासत को संभाले हुए है. बाबा के पोते आशीष अली खां और सिराज अली खां आज भी मैहर बैंड से जुडे हुए हैं और इस संगीत की विरासत को आगे बढ़ाने में हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.

शिवराज सरकार की घोषणा कब पूरी होगी
साल 2023 में शिवराज सरकार ने मैहर बैंड गुरुकुल स्थापित करने की घोषणा की थी. यह आज तक पूरी नहीं हुई. एक तरफ़ संगीत डिजीटल हो गया है. शोर बढ़ गया है. अच्छा संगीत आकर सुनने वाले गुणी ‘कानसेन’ कम हो रहे हैं. ऐसे में मैहर बैंड का भविष्य धुंधला दिखाई दे रहा है. फिर भी 106 साल बाद भी मैहर बैंड को कई जगहों पर बुलाया जाता है.

मैहर बैंड की पूरी जानकारी के लिए देखिए ये खास वीडियो।।