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फक्कड़ अंदाज के राजकुमार शास्त्री का फसाना

राजकुमार शास्त्री के सिलेंडर सस्ता कई दे गाने के बारे में और उसके पीछे का पूरा किस्सा हम जान चुके हैं.इस आर्टिकल में हम जिक्र करेंगे की किस तरह से राजकुमार शास्त्री ने अपने संघर्ष के दिनों को काटा. राजकुमार शास्त्री बताते हैं कि संघर्ष के दिनों में वो शुरू में जीप चलाया करते थे. जीप चलाने से उन्हें 200-400 रुपए मिल जाया करते थे. वो बताते हैं कि उस समय पैसे भले ही कम मिलते थे लेकिन किसी भी तरह का मानसिक प्रेशर उन्हें नहीं झेलना पड़ता था.बेहद मस्ती में वह अपना काम करते थे.

फक्कड़ अंदाज के राजकुमार शास्त्री बताते हैं कि वो अपनी सवारी के बीच अपने संगीत के लिए इतने मशहूर हो गए थे कि लोग ढूंढते थे कि वो दाढ़ी वाला बाबा कहां है क्योंकि उनके गाने की वजह से सवारी का रास्ता आसानी से कट जाता था. राजकुमार शास्त्री संघर्ष को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं. उनका सफर लंबा रहा है और उन्हें पहली बार सफलता का स्वाद श्रीनिवास तिवारी के सानिध्य में रहते हुए मिला. तब उन्होंने उनके लिए गाना गाया था.वो उनके साथ अलग-अलग मंचों पर जाया करते थे लेकिन फिर एक मोड़ आया और उन्हें ऐसा लगा कि शायद राजनीति उनके लिए नहीं सही है और इस तरह से उनका रुख हुआ संगीत की ओर.संगीत की तरफ अपने रुझान को बढ़ाते हुए वो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय चले गए लेकिन वहां भी कुछ समय ही टिक पाए और वहां संतों के सानिध्य में हो गए.


अपने संघर्ष के दोनों को याद करते हुए वो ये गाना सुनाते हैं-

मनचाहा यार ना मिला
शहर शहर कटी जिंदगी
मनचाहा गांव न मिला
शहर शहर कटी जिंदगी
मनचाहा गांव न मिला
शहर शहर कटी जिंदगी
तट को ही खोजता रहा
लहर लहर कटी जिंदगी
मनचाहा गांव न मिला
शहर शहर कटी जिंदगी.