महिला सशक्तिकरण की बातें और दावे चाहे जितने भी हों लेकिन हर मिडिल क्लास लड़की की हकीकत यही है कि पढ़ने के लिए भी एक जंग लड़नी पड़ती है. सरकारी अफसर बनने का सपना तो कई लड़कियां इस डर से नहीं देखतीं कि अगर परीक्षा में फेल हुए तो प्राइवेट नौकरी करने का मौका भी नहीं मिलेगा, और जल्द ही ब्याह दी जाएंगी. जब दिन-रात एक कर परीक्षा पास करने के बाद भी सरकार की असफलताओं के चलते अगर नियुक्ति न मिले तो क्या हो?
ये कोई काल्पनिक नहीं बल्कि विंध्य के सतना जिले से ताल्लुक रखने वाली अभिव्यक्ति (बदला हुआ नाम) की कहानी है. अभिव्यक्ति बचपन से ही सरकारी अधिकारी बनना चाहती थीं. उनकी प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा सतना से ही हुई. ग्रेजुएशन के बाद अभिव्यक्ति ने एमपीपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.
साल 2018 में डिप्टी कलेक्टर बनने की ख्वाहिश लिए अभिव्यक्ति इंदौर चली गईँ. साल 2019 में एमपीपीएससी प्रीलिम्स 2019 की परीक्षा दी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. कोविड के दौरान अभिव्यक्ति के लिए इंदौर में अपना खर्च उठा पाना भी मुश्किल था. घर लौटने की इच्छा भी हुई लेकिन घरवालों ने कहा कि पता नहीं कोविड कब जाएगा? तुम्हारी शादी कर देते हैं.
ये सुनने के बाद अभिव्यक्ति के कदम घर जाने से रुक गए. किसी भी तरह उन्होंने बड़ी जद्दोजहद से इंदौर में रहने, पढ़ाई और खाने का खर्च निकाला. इन सब के बीच अभिव्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ गया और आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उन्होंने दोस्तों से उधार लेकर अपना इलाज करवाया.
2020 में भी अभिव्यक्ति ने एमपीपीएससी मेन्स की परीक्षा दी लेकिन 2019 में ओबीसी आरक्षण 27 फ़ीसदी मामले में उनका रिजल्ट उलझ कर रह गया. एमपीपीएससी 2019 में परीक्षा के बाद ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर कोर्ट ने फैसला लिया था कि जब तक यह मामला हल नहीं होता तब तक अभ्यर्थियों का रिजल्ट 14 फ़ीसदी आरक्षण पर दिया जाए. इसको देखते हुए सामान्य प्रशासन विभाग ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि, जब तक मामला सुलझ नहीं जाता तब तक 87, 13, 13 फार्मूले के आधार पर रिजल्ट दिया जाए.
2020 में ऐसा ही किया गया हालांकि इस फार्मूले में भी कई अनियमितताएं पाई गई हैं. इसमें 87 फ़ीसदी का रिजल्ट दे दिया गया और आरक्षण संबंधित 13,13 प्रतिशत की लिस्ट अलग निकाली गई.
अब अभिव्यक्ति इस बात की खुशी मनाएं कि उनका लिस्ट में नाम है या इस बात का दुख कि 13 फ़ीसदी का रिजल्ट आएगा या नहीं?
अभिव्यक्ति को परीक्षा की तैयारी करते हुए 5 साल हो चुके हैं और आज भी वह मात्र तैयारी ही कर रही हैं. अब अभिव्यक्ति के ऊपर पारिवारिक और सामाजिक दबाव बनने लगा है. उनका कहना है कि 21 साल की उम्र में तैयारी शुरू की थी, आज 27 साल की हो गई हूं लेकिन नौकरी की कोई उम्मीद दिख नहीं रही है.
लगातार बढ़ रहे तनाव का अभिव्यक्ति पर खासा असर पड़ा है. डिप्रेशन से जूझ रही अभिव्यक्ति को एंजायटी अटैक्स और सुसाइडल थॉट्स आते हैं. अब उनका सीधे तौर पर यही कहना है कि उनकी हालत की जिम्मेदार सरकार है, जिसने उनके जीवन को अधर में लटका रखा है.