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भारत में IIT- IIM से ड्रापआउट होते छात्रों की पूरी कहानी

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भारत में उच्च शिक्षा के लिए छात्रों का रुझान केंद्र की ओर अधिक संख्या में देखा जाता रहा है. सरकार भी केंद्र से जुड़ी संस्थानों में वो तमाम सुविधाएं मुहैया कराती है, जिससे छात्रों का भविष्य बने देश में जब शिक्षा संस्थानों की बात की जाती है, तब सबसे पहले IITS, IIMS की तस्वीर सामने आती है, आज हर माँ बाप की ख्वाहिश है कि उनके बच्चे वहां पढ़ें और उनका भविष्य बने. लेकिन इतनी कड़ी मेहनत से छात्र IIT, IIM में जाने के बाद पढ़ाई बीच में छोड़ रहे हैं.ये आंकड़े कुछ ऐसे हैं कि, पिछले पांच सालों में SC,ST, OBC वर्ग के 13000 से ज्यादा छात्रों ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी, यानी ड्रॉपआउट कर लिया.सबसे पहले आपको बता दें पिछले पांच सालों में 13626 छात्रों ने IIT, IIM से पढ़ाई छोड़ दी ये सभी OBC, SC, ST वर्ग से आते हैं.

सरकार ने खुद बताए आकड़े

4 दिसंबर 2023 को ये जानकारी शिक्षा मंत्री सुभाष सरकार ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में दिया है.
लोकसभा में बसपा सदस्य रितेश पांडे ने सवाल पूछा था कि, क्या सरकार ने इन उच्च संस्थानों में SC, ST और OBC के छात्रों के बीच हुई ड्रॉपआउट रेट के कारणों को समझने के लिए क्या कोई अध्ययन किया गया है?
इसके जवाब में शिक्षा मंत्री सुभाष सरकार ने कहा, उच्च शिक्षा में छात्रों के पास कई विकल्प होते हैं. वे अकसर अलग अलग संस्थानों या फिर एक ही संस्थान के अलग अलग कोर्स के बीच ट्रांसफर होते रहते हैं.
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, ड्रॉपआउट रेट के लिए सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को पढ़ाई के लिए कई तरह से मदद पहुंचाई जा रही है.
इन प्रयासों में फीस को कम करना, अधिक संस्थानों की स्थापना करना, छात्रवृत्ति जैसी चीजें शामिल की गयी हैं.

SC, ST और OBC वर्ग के छात्रों का ड्रॉपआउट रेट

सरकार द्वारा जो डेटा पेश किया गया है उसमे पता चलता है कि, पिछले 5 सालों में 2424 SC, 4596 OBC और 2622 ST छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय से बाहर हो गए हैं. इसी समय में IIT से 2066 OBC, 1068 SC और 408 ST छात्र बाहर हो गए हैं.
वहीँ IIM से 163 OBC, 188 SC और 91 ST छात्र बाहर हो गए. साथ ही NIT से 875 SC, 486 ST और 1329 OBC छात्र बाहर हुए हैं.
2019 से 2023 तक केंद्र से जुड़े सभी संस्थाओं से 33,979 छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी है. अब इनमें से ड्रॉप आउट की सबसे अधिक संख्या यानी 17,454 छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय से जिनमें 4596 छात्र ओबीसी के थे, इसके बाद 8139 छात्रों के साथ आईआईटी का नाम है, जिनमें 2066 छात्र ओबीसी के हैं और NIT के 5623 छात्र है जिनमें से 1329 छात्र ओबीसी हैं.
यानी 2019 के बाद से 8602 ओबीसी छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी और SC में यह संख्या 4823 है.
अब केंद्रीय विश्वविद्यालय में दूसरे संस्थानों की तुलना में ज्यादा छात्रों का नामांकन हुआ था इसलिए ड्रॉपआउट भी यहीं से ज्यादा है

संस्थानों से ड्रॉपआउट की वजह

आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी जैसी केंद्र की संस्थाओं में हायर एजुकेशन में स्टूडेंट के ड्रॉप आउट रेट को लेकर ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के एक्स चेयरमैन एसएस मंथा और भारत सरकार के एक्स एजुकेशन सेक्रेट्री अशोक ठाकुर ने 12 अप्रैल 2023 को द इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा था.

मंथा और ठाकुर ने वर्तमान शिक्षा पद्धति को तनाव से भरा बताते हुए लिखा है कि, कॉलेज और विश्वविद्यालय अपनी सक्सेसे रेट को बढ़ाने के लिए बच्चों पर प्लेसमेंट लेने और सफलता पाने का दबाव बनाते हैं, जिससे ड्रॉप आउट रेट भी तेजी से बढ़ता है.

  • पढ़ाई छोड़ना एक व्यक्तिगत मुद्दा भी हो सकता है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का पढ़ाई छोड़ना व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, और इसके कारणों की समीक्षा होनी ही चाहिए.
  • ड्रॉपआउट रोकने के लिए शिक्षा की नीतियों का बदलाव करना होगा. साथ ही संस्थाओं और विश्वविद्यालय को भी निरीक्षण करना होगा कि आखिर उनसे कमी कहां हो रही है.
  • उच्च संस्थानों में कंपटीशन के कारण छात्र अकेले हो जाते हैं. छात्र को जोड़े रखने के लिए विश्वविद्यालय की मैनेजमेंट फैकेल्टी को आपस में राय मशवरा करना चाहिए.
  • सबसे ज्यादा छात्रों को फर्स्ट ईयर में कॉलेज के अनुरूप ढलने के लिए समय की जरूरत होती है, लेकिन जब तक वह अपनी मिली आजादी को समझ सकें, कैंपस की पॉसिबिलिटीज को समझें इससे पहले वह पढ़ाई छोड़ देते हैं.

हायर एजुकेशन पर रिसर्च ने कई कारणों का खुलासा किया

उच्च संस्थानों में सिर्फ 50 फ़ीसदी छात्र ही बैकलॉग के बिना ग्रेजुएशन कर पाते हैं.
रिसर्च यह भी कहती है कि, ज्यादातर ड्रॉप आउट उन परिवारों में होते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं. ऐसे छात्र खर्चा चलाने के लिए पढ़ाई के साथ छोटी-मोटी नौकरी करने लगते हैं और पढ़ाई, नौकरी और अपनी जिंदगी के बीच बैलेंस नहीं बना पाते.शायद यही वजह है कि एससी एसटी और ओबीसी वर्ग के ड्रॉप आउट छात्रों की संख्या ज्यादा है.
रिसर्च बताती है की पढ़ाई छोड़ने वाले हर तीन में से एक छात्र को अपनी या अपने परिवार की जिम्मेदारी उठानी ही पड़ती है. यदि संस्थान और सरकार छात्रों की परेशानी समझें और मदद का हाथ आगे बढ़ाए तो ड्रॉपआउट रेट कम और एजुकेशन रेट तेजी से बढ़ सकता है.

यदि समाधान और निरीक्षण पर काम किया जाए तो, छात्रों के हाथों में किताबों को रोका जा सकता है.
समाज में रहने वाला प्रत्येक समुदाय और उससे जुड़े हुए छात्र किसी न किसी रूप से समाज से ताल्लुक रखता है, जब वह मायूस होता है तब वह अपने जीवन के उन मसलों से खुद को आजाद कर लेता है.