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आपका हक, आपकी आवाज: पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?

आपका हक, आपकी आवाज: पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?

आपका हक, आपकी आवाज: पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?

आपका हक, आपकी आवाज: न्याय की राह पर पहला कदम, फर्स्ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट (FIR), अक्सर पीड़ितों के लिए एक बाधा बन जाती है. कई बार, विभिन्न कारणों से पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार कर देती है, जिससे न्याय की उम्मीद धूमिल होने लगती है. लेकिन कानून आपको निराश नहीं होने देता. हर नागरिक को अपने अधिकारों के बारे में जानना जरूरी है, खासकर तब जब पुलिस अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटती दिखे. आइए, ‘जानें अपने अधिकार’ कॉलम में आज इसी महत्वपूर्ण विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं.

पुलिस FIR दर्ज करने से क्यों कतराती है?

यह एक कड़वी सच्चाई है कि भारतीय कानून के तहत अपराध की सूचना मिलने पर FIR दर्ज करना पुलिस का कर्तव्य होने के बावजूद, कई बार ऐसा नहीं होता. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. कुछ मामलों में, राजनीतिक या प्रभावशाली व्यक्तियों का दबाव पुलिस को FIR दर्ज करने से रोक सकता है. वहीं, कई बार पुलिस लापरवाही बरतती है या मामले की गंभीरता को कम आंकती है, जिससे FIR दर्ज नहीं की जाती. संसाधनों की कमी या अत्यधिक कार्यभार भी पुलिस के इनकार का एक कारण हो सकता है. कुछ मामलों में, पुलिस कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलता से बचने के लिए भी FIR दर्ज करने से हिचकिचाती है.

क्या FIR सिर्फ पीड़ित ही दर्ज करा सकता है?

यह सवाल आम है कि क्या FIR केवल अपराध भुक्तभोगी ही दर्ज करा सकता है. इसका स्पष्ट उत्तर नकारात्मक है. कानून किसी भी ऐसे व्यक्ति को FIR दर्ज करने का हक प्रदान करता है, जिसके पास किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की सूचना हो. तात्पर्य यह है कि यदि आप किसी ऐसे अपराध को घटित होते हुए देखते हैं, अथवा आपको ऐसी विश्वसनीय सूचना प्राप्त होती है, जिसमें पुलिस बिना न्यायालयी आदेश के गिरफ्तारी कर सकती है, तो आप उस घटना की सूचना पुलिस को दे सकते हैं. स्वयं पीड़ित, घटना के चश्मदीद गवाह, या कोई भी जिम्मेदार नागरिक FIR दर्ज करवा सकता है.

आपका हक, आपकी आवाज: पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?
आपका हक, आपकी आवाज: पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?

पुलिस FIR दर्ज न करे तो आपके कानूनी अधिकार

अगर दुर्भाग्य से पुलिस आपकी शिकायत पर FIR दर्ज करने से इनकार कर देती है, तो आपको निराश होने की आवश्यकता नहीं है. कानून आपको कई विकल्प प्रदान करता है जिनके माध्यम से आप न्याय की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं:

  • वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से संपर्क करें: यदि स्थानीय पुलिस स्टेशन FIR दर्ज नहीं करता है, तो आप तुरंत अपने क्षेत्र के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, जैसे पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police – SP) या पुलिस उपायुक्त (Deputy Commissioner of Police – DCP) से मिलकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. आप उन्हें लिखित में अपनी शिकायत दे सकते हैं और उनसे FIR दर्ज करने का अनुरोध कर सकते हैं.
  • मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करें: यदि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होता है, तो कानून आपको मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी व्यथा दर्ज कराने का हक प्रदान करता है. दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 156(3) आपको यह अनुमति देती है कि आप संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक अर्जी प्रस्तुत करें, जिसमें पुलिस को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने और मामले की पड़ताल करने का निर्देश देने की प्रार्थना की जा सकती है. मजिस्ट्रेट आपकी अर्जी पर सुनवाई कर सकते हैं, और यदि उन्हें प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि किसी संज्ञेय अपराध का मामला बनता है, तो वे पुलिस को FIR दर्ज करने का आदेश जारी कर सकते हैं. 
  • ऑनलाइन FIR दर्ज करें: आजकल कई राज्यों की पुलिस ने ऑनलाइन FIR दर्ज करने की सुविधा भी शुरू कर दी है. यदि आपके मामले में ऑनलाइन FIR दर्ज करने का प्रावधान है, तो आप घर बैठे ही अपनी शिकायत ऑनलाइन दर्ज करा सकते हैं.
  • मानवाधिकार आयोग में शिकायत करें: यदि पुलिस आपकी FIR दर्ज करने से इनकार करती है और आपको यह महसूस होता है कि इस वजह से आपके मानवाधिकारों का हनन हुआ है, तो आपके पास राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) अथवा राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) में अपनी शिकायत दर्ज कराने का विकल्प मौजूद है.
  • अदालत में रिट याचिका दायर करें: यह एक अंतिम उपाय है, लेकिन यदि अन्य सभी रास्ते विफल हो जाते हैं, तो आप उच्च न्यायालय (High Court) में रिट याचिका (Writ Petition) दायर कर सकते हैं जिसमें पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की जा सकती है.

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FIR और शिकायत में क्या है बुनियादी अंतर?

अक्सर लोग FIR और शिकायत को एक ही समझते हैं, लेकिन अधिवक्ता सरोज कुमार सिंह के अनुसार, ये दोनों कानूनी रूप से भिन्न हैं. सामान्य तौर पर, चोरी, लड़ाई-झगड़ा या धमकी जैसे अपराधों के मामलों में पहले शिकायत दर्ज की जाती है. इस शिकायत के आधार पर पुलिस प्रारंभिक जांच करती है. यदि जांच में तथ्य सही पाए जाते हैं और संज्ञेय अपराध का मामला बनता है, तो पुलिस FIR दर्ज करती है. पुलिस के पास यह अधिकार होता है कि वह शिकायत को अपने स्तर पर जांच कर बंद कर दे, यदि कोई अपराध नहीं पाया जाता है.

इसके विपरीत, एक बार जब FIR दर्ज हो जाती है, तो पुलिस को उस मामले की पूरी जांच करनी होती है और चार्जशीट दाखिल करनी होती है. FIR दर्ज होने के बाद मामला सीधे अदालत में जाता है और उसका विधिवत ट्रायल चलता है. इसलिए, जब भी आप किसी मामले को पुलिस के पास लेकर जाएं, तो यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि पुलिस ने आपकी शिकायत दर्ज की है या FIR. FIR दर्ज होने का मतलब है कि पुलिस ने औपचारिक रूप से एक आपराधिक मामला दर्ज कर लिया है और अब वह इसकी जांच करने के लिए बाध्य है.

न्याय हर नागरिक का अधिकार है, और FIR उस अधिकार को प्राप्त करने की पहली महत्वपूर्ण सीढ़ी है. यदि पुलिस FIR दर्ज करने में आनाकानी करती है, तो अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक रहें और न्याय के लिए उपलब्ध विकल्पों का उपयोग करने में संकोच न करें. आपकी आवाज अनसुनी नहीं रहनी चाहिए.

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