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Toggleइजरायल-ईरान तनाव: भारत पर कच्चे तेल की कीमतों का बड़ा खतरा!
इजरायल-ईरान तनाव: इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ रहा है, जो न केवल पश्चिम एशिया बल्कि भारत जैसे देशों के लिए भी बड़ी चिंता का विषय बन रहा है. खास तौर पर, इस तनाव का असर कच्चे तेल की कीमतों और सप्लाई चेन पर पड़ रहा है, जो भारत की अर्थव्यवस्था और आम जनता के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर सकता है.
इजरायल-ईरान तनाव और ग्लोबल चिंता
पश्चिम एशिया में इजरायल और ईरान के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है. मिसाइल हमले और जवाबी कार्रवाइयों ने इस क्षेत्र को बारूद के ढेर पर ला खड़ा किया है. इस तनाव की सबसे बड़ी वजह है होर्मुज जलडमरूमध्य. यह जलमार्ग दुनिया का सबसे व्यस्त तेल मार्ग है, जहां से वैश्विक स्तर पर लगभग एक तिहाई कच्चा तेल गुजरता है. भारत के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत अपने कच्चे तेल के दो तिहाई से अधिक हिस्से का आयात इसी जलमार्ग के जरिए करते हैं.
अगर होर्मुज जलडमरूमध्य में किसी भी तरह की रुकावट आती है, तो यह भारत के तेल आयात के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है. हालांकि, डिफेंस और इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि ईरान के लिए इस जलमार्ग को पूरी तरह बंद करना लगभग असंभव है. फिर भी, तनाव की वजह से तेल की सप्लाई में बाधा और कीमतों में उछाल की आशंका बढ़ गई है.
कच्चे तेल की कीमतों में उछाल कैसे आएगा?
इजरायल-ईरान तनाव का सीधा असर कच्चे तेल की कीमतों पर दिख रहा है. खबर लिखे जाने तक ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई थी, जबकि WTI क्रूड ऑयल का जुलाई future रेट 73.99 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह तनाव और बढ़ता है, तो कीमतें और उछाल मार सकती हैं. लेकिन जेपी मॉर्गन ने चेतावनी दी है कि अगर इजरायल-ईरान संघर्ष और गहराता है, तो कच्चे तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं. यह भारत जैसे तेल आयातक देश के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है. ऊंची कीमतों का असर न केवल पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ेगा, बल्कि यह महंगाई और चालू खाता घाटे को भी बढ़ा सकता है.
भारत पर कच्चे तेल की कीमतों का असर?
भारत अपनी जरूरत का 80% से अधिक कच्चा तेल आयात करता है. रोजाना करीब 37 लाख बैरल कच्चे तेल की खपत होती है. ऐसे में, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और सप्लाई में रुकावट भारत के लिए कई तरह की मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं.
आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
इसका सबसे पहला असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा है. अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी होती है, तो भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 50 से 60 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है. इसका मतलब है कि अगर तेल की कीमतें 75 डॉलर से 120 डॉलर तक पहुंचती हैं, तो पेट्रोल-डीजल के दाम में भारी उछाल देखने को मिल सकता है.
पेट्रोल और डीजल की कीमतें कई कारकों पर निर्भर करती हैं, जैसे:
- अंतरराष्ट्रीय क्रूड ऑयल की कीमत
- उत्पाद शुल्क यानि (एक्साइज ड्यूटी)
- राज्यों द्वारा लगाया जाने वाला वैट
- रिफाइनरी कॉस्ट और डीलर कमीशन
हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि क्रूड ऑयल सस्ता होने पर पेट्रोल-डीजल के दाम कम हों. लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी का असर ज्यादातर मामलों में देखने को मिलता है.महंगाई का जोखिम- पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट बढ़ेगी. इसका असर जरूरी सामानों, जैसे खाद्य पदार्थों, दवाइयों और अन्य वस्तुओं की कीमतों पर पड़ेगा. इससे महंगाई बढ़ने का खतरा है, जो आम जनता की जेब पर भारी पड़ सकता है.
शिपिंग और सप्लाई चेन पर असर- अगर होर्मुज जलडमरूमध्य में रुकावट आती है, तो शिपिंग कंपनियों को वैकल्पिक रास्ते अपनाने पड़ सकते हैं. ये रास्ते लंबे और महंगे होंगे, जिससे माल ढुलाई की लागत और डिलीवरी का समय बढ़ेगा. जूलियस बेयर के अर्थशास्त्री नॉर्बर्ट रुकर के मुताबिक, भू-राजनीतिक तनाव के कारण तेल की सप्लाई को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. यह स्थिति अभी अस्थिर है, और आने वाले दिन और हफ्ते बताएंगे कि यह तनाव कितना गहरा सकता है.
भारत की निर्भरता और चुनौतियां
भारत की कच्चे तेल की आपूर्ति में होर्मुज जलडमरूमध्य की भूमिका बेहद अहम है. अगर इस जलमार्ग में कोई रुकावट आती है, तो:
- तेल की सप्लाई बाधित हो सकती है.
- आयात लागत बढ़ेगी, क्योंकि वैकल्पिक मार्गों का इस्तेमाल करना पड़ेगा.
भारत की ऑयल मार्केटिंग कंपनियां (जैसे IOCL, BPCL, HPCL) क्रूड ऑयल की कीमत, रिफाइनरी कॉस्ट, एक्साइज ड्यूटी, वैट और डीलर कमीशन के आधार पर पेट्रोल-डीजल के दाम तय करती हैं. अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो इसका असर इन सभी लागतों पर पड़ता है, जो अंततः उपभोक्ताओं तक पहुंचता है.
अब जानते हैं इसका समाधान क्या हो सकता है?
इस स्थिति से निपटने के लिए भारत को कुछ कदम उठाने होंगे:
-तेल आयात में विविधता: भारत को अपने तेल आयात के स्रोतों को बढ़ाना होगा, ताकि किसी एक क्षेत्र (जैसे पश्चिम एशिया) पर निर्भरता कम हो. - वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत: सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर जोर देकर तेल की निर्भरता को कम किया जा सकता है.
-रणनीतिक तेल भंडार: भारत के पास रणनीतिक तेल भंडार हैं, जिनका इस्तेमाल आपातकाल में किया जा सकता है. - कूटनीतिक प्रयास: भारत को वैश्विक मंचों पर सक्रिय रहकर पश्चिम एशिया में शांति स्थापित करने की दिशा में काम करना होगा.