हाल के दशकों में भारत में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. खेती के बढ़ते क्षेत्र और बेहतर पैदावार के कारण इस प्रगति ने प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता को बढ़ाया है. इसी अवधि में, खाद्य उपभोग पैटर्न ने प्रमुख अनाजों की प्रति व्यक्ति खपत में गिरावट दिखाई है. यह स्थिति एक दिलचस्प सवाल खड़ा करती है कि उत्पादन बढ़ने के बावजूद लोग उतना क्यों नहीं खा रहे हैं.

खाद्य अनाज उत्पादन में वृद्धि
भारत में खाद्य अनाज का उत्पादन पिछले कुछ दशकों में बहुत बढ़ा है. कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि खेती का रकबा 1993-94 से 2023-24 के बीच, खाद्य अनाज का कुल उत्पादन 184.3 मिलियन टन से बढ़कर 332.3 मिलियन टन हो गया. यह वृद्धि मुख्य रूप से भूमि क्षेत्र में मामूली विस्तार और पैदावार में सुधार के कारण हुई है. अगर हम आंकड़ों को देखें, तो 1993-94 में खाद्य अनाज का औसत उत्पादकता 1501 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जो अब 2023-24 में बढ़कर 2515 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है. यही नहीं खाद्य अनाज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता भी बढ़ी है. 1993 में यह 14.1 किलोग्राम थी, जो 2023 में बढ़कर 17.3 किलोग्राम हो गई. हालांकि, अगर हम अलग-अलग प्रकार के अनाज की बात करें, तो अनाजों में, खास तौर पर दलहनों की उपलब्धता में उतार-चढ़ाव रहा है.
खपत में गिरावट
यह ध्यान देने योग्य है कि अनाज की उपलब्धता बढ़ी है, लेकिन इसके बावजूद, खपत में कमी आई है, खासकर अनाज के मामले में. खासकर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में. उदाहरण के लिए, ग्रामीण भारत में 1993-94 में प्रति व्यक्ति औसत अनाज खपत 13.4 किलोग्राम प्रति माह थी, जो 2022-23 में घटकर 9.4 किलोग्राम रह गई है. और शहरी भारत में यह खपत 10.6 किलोग्राम से घटकर 8 किलोग्राम प्रति माह हो गई है. यह गिरावट सभी प्रमुख अनाजों जैसे चावल, गेहूं और अन्य अनाजों में देखी जा रही है.

आहार में बदलाव और खर्च की आदतें
इन आंकड़ों से यह साफ है कि हमारा आहार बदल रहा है. रूरल और अर्बन दोनों क्षेत्रों में खाद्य खर्च का हिस्सा घट रहा है. 1993-94 में खाद्य खर्च का हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में 63.2% था, जो 2022-23 में घटकर 46.4% हो गया. वहीं शहरी क्षेत्रों में यह हिस्से 54.7% से घटकर 39.2% हो गया है. सिर्फ अनाज ही नहीं, अब लोग मीट, डेयरी उत्पादों, और प्रोसेस्ड फूड्स पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं. यह बदलाव एंगेल और बेनेट के नियम के अनुरूप है, जिसमें कहा गया है कि जैसे-जैसे आय बढ़ती है, लोग स्टेपल फूड्स जैसे अनाज पर कम खर्च करते हैं और विविध आहारों पर ज्यादा खर्च करते हैं, भले ही भोजन पर खर्च की गई कुल राशि बढ़ सकती है.
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दालों की खपत में स्थिरता
1993-94 और 2023-24 के बीच दालों की खपत स्थिर रही है. जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में दालों की प्रति व्यक्ति मासिक खपत 1993-94 में 760 ग्राम और 2023-24 में 742 ग्राम थी, शहरी क्षेत्रों में दालों की खपत 1993-94 में 860 ग्राम और 2023-24 में 801 ग्राम थी. कुल मासिक व्यय में खाद्यान्न की हिस्सेदारी भी कम हुई, जो व्यापक आहार बदलावों को दर्शाती है, अनाज पर खर्च में तेजी से गिरावट आई, पेय पदार्थों और पशु-आधारित उत्पादों पर खर्च बढ़ा. ग्रामीण क्षेत्रों में अनाज पर व्यय का हिस्सा 1993-94 में 24.2 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में मात्र 5% रह गया और शहरी क्षेत्रों में 14% से घटकर 3.8 प्रतिशत रह गया.
क्षेत्रीय भिन्नताएं
भारत में विभिन्न राज्यों में भी अनाज की खपत में भिन्नताएं देखने को मिलती हैं. उदाहरण के तौर पर, पूर्वी राज्य जैसे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, और झारखंड में अनाज की खपत अधिक है, जबकि पंजाब, हरियाणा, केरल, और दिल्ली में खपत कम है. वहीं, दालों की खपत शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों से ज्यादा है. उत्तर-पूर्वी राज्यों में दालों की खपत सबसे कम है, जबकि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में यह खपत दोनों क्षेत्रों में सबसे अधिक है.
आय वर्ग के अनुसार खपत में अंतर
ग्रामीण क्षेत्रों में, जो लोग सबसे कम आय वर्ग में आते हैं, उनकी अनाज खपत में गिरावट आई है. 1993-94 में, आबादी के सबसे निचले 10% आय वर्ग के लोग प्रति माह 10.5 किलो अनाज खा रहे थे, जो अब 2023-24 में घटकर 8.6 किलो रह गया है. हालांकि, शहरी क्षेत्रों में यह स्थिति उलट है. यहां उच्च आय वर्ग के लोग कम अनाज खा रहे हैं. उदाहरण के लिए, 2023-24 में, शहरी क्षेत्रों में सबसे निचले 10% लोग प्रति माह 8 किलो अनाज खा रहे हैं, जबकि उच्च आय वर्ग के लोग 7.2 किलो खा रहे हैं.
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खाद्य सुरक्षा और पोषण
भारत का खाद्य अनाज परिदृश्य यह दर्शाता है कि उत्पादन में वृद्धि तो हुई है, लेकिन आहार में जो बदलाव हो रहे हैं, वे भारत की खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति को चुनौती दे रहे हैं. खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ संतुलित पोषण सुनिश्चित करने के लिए हमें अधिक ध्यान देने की जरूरत है. इसके अलावा, कृषि में विविधता का भी ध्यान रखना चाहिए, ताकि हम केवल अनाज तक सीमित न रहें. दलहन, तिलहन, और उच्च मूल्य वाले फसलों की तरफ ध्यान देना किसानों के लिए भी लाभकारी हो सकता है और इससे स्थिर कृषि प्रथाओं को बढ़ावा मिलेगा.
इन सभी बदलावों के बीच, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि खाद्य सुरक्षा और पोषण का संतुलन बना रहे, ताकि हमारी बढ़ती और विविध होती आबादी को सही पोषण मिल सके.