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भारत का सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2021: जन्म और मृत्यु पंजीकरण की व्याख्या

भारत का सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2021: जन्म और मृत्यु पंजीकरण की व्याख्या

भारत का सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2021: जन्म और मृत्यु पंजीकरण की व्याख्या

भारत का सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2021: भारत का सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) जन्म और मृत्यु के आंकड़ों को व्यवस्थित रूप से दर्ज करने का एक महत्वपूर्ण ढांचा है. यह प्रणाली व्यक्तियों की पहचान, उम्र और नागरिकता को कानूनी मान्यता प्रदान करती है, साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं तक पहुंच को सुगम बनाती है.

सीआरएस की 2021 की रिपोर्ट के आधार पर, यह लेख जन्म और मृत्यु पंजीकरण के आंकड़ों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करता है, ताकि इनके महत्व और चुनौतियों को समझा जा सके.

मृत्यु पंजीकरण: वृद्धि और चुनौतियां

2021 में भारत में 1.02 करोड़ मृत्यु पंजीकरण दर्ज किए गए, जो 2019 के 76 लाख की तुलना में 33% अधिक है. हालांकि, चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मृत्युओं का अनुपात केवल 21% से बढ़कर 23% हुआ. 2019 में 15.7 लाख मृत्यु चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित थीं, जो 2021 में बढ़कर 23.9 लाख हो गईं.

विशेषज्ञों के अनुसार, मृत्यु के कारणों का सटीक डेटा न होने से स्वास्थ्य सेवाओं की योजना बनाने और चिकित्सा अनुसंधान में सुधार लाने में कठिनाइयां आ रही हैं. यह जानकारी महामारी के बाद स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है.

जन्म पंजीकरण: प्रगति और स्थिरता

2021 में भारत में 2.42 करोड़ जन्म पंजीकृत हुए, जो 2015 के 2.31 करोड़ की तुलना में 4.6% अधिक है. फिर भी, 2019 के 2.48 करोड़ की तुलना में 2021 में जन्म पंजीकरण में 2.5% की कमी देखी गई.

1990 में केवल 1.16 करोड़ जन्म पंजीकृत हुए थे, लेकिन 2019 में यह आंकड़ा अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचा. कोविड-19 महामारी के दौरान 2020 और 2021 में जन्म पंजीकरण 2.42 करोड़ पर स्थिर रहा. कई राज्यों में जन्म के 21 दिनों के भीतर पंजीकरण की कमी एक बड़ी चुनौती है, जो समय पर दस्तावेजीकरण को प्रभावित करती है.

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राज्यवार मृत्यु पंजीकरण: क्षेत्रीय विविधता

2021 में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 13.5 लाख मृत्यु पंजीकृत हुईं, जो 2019 की तुलना में दोगुनी हैं. महाराष्ट्र में 10.09 लाख और तमिलनाडु में भी मृत्यु पंजीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई.

मध्य प्रदेश (7.02 लाख), गुजरात और कर्नाटक में भी 2019 से 2021 के बीच मृत्यु पंजीकरण बढ़ा. छोटे राज्यों जैसे सिक्किम, नगालैंड और मिजोरम में मृत्यु की संख्या कम रही, लेकिन कोविड-19 के कारण इनमें भी वृद्धि हुई. यह विविधता क्षेत्रीय स्वास्थ्य और प्रशासनिक क्षमताओं को दर्शाती है.

भारत का सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2021: जन्म और मृत्यु पंजीकरण की व्याख्या
भारत का सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2021: जन्म और मृत्यु पंजीकरण की व्याख्या

चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मृत्यु: राज्यवार आंकड़े

चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मृत्यु के मामले में तमिलनाडु अग्रणी रहा, जहां 2,66,610 मृत्यु दर्ज हुईं. इसके बाद महाराष्ट्र (2,61,420), गुजरात (2,25,077), कर्नाटक (92,212), उत्तर प्रदेश (80,213), आंध्र प्रदेश (74,709), पश्चिम बंगाल (71,458), राजस्थान (66,451), दिल्ली (64,541) और तेलंगाना (48,490) का स्थान रहा.

छोटे राज्यों में यह संख्या कम थी, जैसे असम (14,225), गोवा (10,816) और जम्मू-कश्मीर (77). यह आंकड़े राज्यों में चिकित्सा सुविधाओं और पंजीकरण प्रणालियों के अंतर को उजागर करते हैं.

मृत्यु के कारण: स्वास्थ्य चुनौतियों का विश्लेषण

2021 में मृत्यु के प्रमुख कारणों में संचार प्रणाली की बीमारियां, जैसे हृदय रोग और स्ट्रोक, 30% मृत्युओं के लिए जिम्मेदार थीं, जो 2020 के 32% से कम हैं. कोविड-19 से 17% मृत्यु हुईं, जो 2020 के 9% से अधिक है. श्वसन रोगों से 13% मृत्यु दर्ज की गईं. ये आंकड़े स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने और बीमारियों के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं.

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भौगोलिक और लैंगिक असमानताएं

मृत्यु पंजीकरण में भौगोलिक और लैंगिक असमानताएं स्पष्ट हैं. शिशु मृत्यु पंजीकरण में 77.7% शहरी और 22.3% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर अधिक है. चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मृत्यु में शहरी क्षेत्रों का योगदान 54.7% है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों का 45% से कम है, हालांकि देश की 65% आबादी ग्रामीण है.

लैंगिक अंतर के मामले में, 23.9 लाख प्रमाणित मृत्युओं में 62.4% पुरुष और 37.6% महिलाएं थीं. उत्तर प्रदेश में 9.02 लाख पुरुष बनाम 4.49 लाख महिला, महाराष्ट्र में 6.06 लाख पुरुष बनाम 4.02 लाख महिला, और मध्य प्रदेश में 4.31 लाख पुरुष बनाम 2.71 लाख महिला मृत्यु दर्ज हुईं.

विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को अंतिम समय में अस्पताल ले जाने की प्रवृत्ति कम है, जिससे चिकित्सकीय प्रमाणन प्रभावित होता है.

प्रगति और भविष्य की चुनौतियां

1990 से 2021 तक जन्म और मृत्यु पंजीकरण में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. 2015 से 2021 के बीच मृत्यु पंजीकरण में 63% से अधिक की वृद्धि हुई, जबकि जन्म पंजीकरण में 4.7% की वृद्धि दर्ज की गई.

2000 के दशक में संस्थागत प्रसव और प्रशासनिक सुधारों ने इस प्रगति में योगदान दिया. हालांकि, असम, मणिपुर और नगालैंड जैसे राज्यों में जन्म के 21 दिनों के भीतर 31% से कम पंजीकरण समय पर दस्तावेजीकरण को प्रभावित करता है.

सीआरएस 2021 की रिपोर्ट भारत में जन्म और मृत्यु पंजीकरण में प्रगति को दर्शाती है, लेकिन भौगोलिक और लैंगिक असमानताएं, साथ ही चिकित्सकीय प्रमाणन की कमी, महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं. ये आंकड़े स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक नीतियों को बेहतर बनाने में सहायक हो सकते हैं. इस विषय पर आपकी क्या राय है? अपनी प्रतिक्रिया हमारे साथ साझा करें.