संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन (COP29) इस बार अजरबैजान (Azerbaijan) की राजधानी बाकू (Baku) में आयोजित किया जा रहा है. COP29 में दुनियाभर के नेता जलवायु संकट के खिलाफ कदम उठाने पर चर्चा करने के लिए जमा हैं. इस सम्मेलन के एजेंडा में सबसे ऊपर ‘क्लाइमेट फाइनैंस’ को रखा गया है. दरअसल, दुनिया भर में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. आज के परिवेश में लगभग सभी देशों के सामने जलवायु परिवर्तन की बड़ी समस्या है. वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि, वर्षा, मौसम पैटर्न में बदलाव, ग्लोबल वार्मिंग और जल संकट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. इसे लेकर दुनिया भर के देश काफी परेशान है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कई उपाय लगाए जा रहे हैं. जिनमें से कार्बन क्रेडिट एक प्रमुख उपाय है.कार्बन क्रेडिट एक प्रकार का सर्टिफिकेट है जो किसी धारक को एक निश्चित समय में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीन हाउस गैसों को उत्सर्जित करने का अधिकार देता है.
बता दें कि कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट उन कंपनियों या देशों को दिया जाता है जो ऊर्जा की बचत, अक्षय ऊर्जा स्रोतों (Renewable Energy Sources) का उपयोग, वनस्पतिवृक्षों की कटाई रोकने और अन्य तरीकों से ग्रीनहाउस गैसेज़ के उत्सर्जन को कम करते हैं. गौर करने वाली बात यह है कि जैसे आप अपने घर में कचरा फैलाते हैं तो आपको खुद से सफाई भी करनी पड़ती है. ठीक उसी तरह अगर आप कार्बन का उत्सर्जन ज्यादा करते हैं तो आपको उतना ही उत्सर्जन कम करने के लिए प्रयास करना होगा.
कार्बन उत्सर्जन कम होने से बचेंगे पैसे
इसके लिए ज्यादा से ज्यादा वनस्पति वृक्षों को लगा कर या अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में इन्वेस्ट कर के कार्बन उत्सर्जन कम करने का प्रयास किया जा सकता है. आसान शब्दों में आप जितना कार्बन उत्सर्जन करेंगे आपको उतनी ही राशि उत्सर्जन को कम करने में लगानी होगी. इस तरह आप जितना कार्बन का कम उत्सर्जन करेंगे, उतने अधिक आपके पैसे बचेंगे. वहीं आप जितना अधिक कार्बन का उत्सर्जन करेंगे उतना ही ज्यादा आपको इन्वेस्ट करना होगा. इस तरह आपकी कार्बन क्रेडिट आपके कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करती है.
जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए परियोजनाएं
इस तरह किसी भी देश या कंपनी द्वार कार्बन क्रेडिट में दिए गए पैसों से अलग-अलग जगहों पर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए परियोजनाएं चलायी जाती है. अमेरिका, कनाडा या पश्चिम यूरोपीय जैसे विकसित देश कार्बन क्रेडिट के हकदार तभी होते हैं जब उनके द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा स्वच्छ विकास तंत्र किसी विकासशील देश को दुरुस्त प्रौद्योगिकी तक पहुंच उपलब्ध कराते हों तथा सतत विकास को बढ़ावा देने में सहायक हों. क्योटो प्रोटोकॉल के मुताबिक प्रति मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कम कर 1 कार्बन क्रेडिट प्राप्त किया जा सकता है.
क्योटो प्रोटोकॉल क्या है?
क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वैश्विक स्तर पर कार्रवाई करने के लिए बनाया गया था. यह समझौता 1997 में जापान के क्योटो शहर में हुआ था और 2005 में इसे लागू किया गया था. इसका मुख्य उदेश्य: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करना और विकसित देशों को ग्रीनहाउस गैसेज़ के उत्सर्जन में कमी करने के लिए प्रतिबद्ध करना हैं. कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही क्योटो प्रोटोकाल का प्रावधान किया गया था.
कार्बन क्रेडिट की चर्चा
यूएन का वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप29) अज़रबैजान की राजधानी बाकू में हो रहा है. यहां सभी देश मिलकर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कई कदम उठाने वाले हैं. इस एजेंडे में सबसे ऊपर क्लाइमेट फाइनेंस को ही रखा गया है. हालांकि इस बात पर पर गहरी असहमति है कि क्लाइमेट फाइनेंस यानी जलवायु वित्तीय सहायता के लिए आखिर कितनी राशि चाहिए, यह रकम कौन देगा और इसमें क्या-क्या खर्च शामिल है. दरअसल, क्लाइमेट फाइनेंस जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने के लिए वित्तीय संसाधनों का उपयोग है. यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए वित्तीय समर्थन प्रदान करता है.
क्लाइमेट फाइनेंस
आसान भाषा में कहे तो क्लाइमेट फाइनेंस का तात्पर्य “ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को काम करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए खर्च किए जाने वाले रकम से है. क्लाइमेट फाइनेंस में सरकारी, निजी, और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भागीदारी होती है. क्लाइमेट फाइनेंस के उदाहरण में ग्रीन बॉन्ड, जलवायु परिवर्तन के लिए विशेष फंड और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए वित्तीय सहायता शामिल है. वहीं क्लाइमेट फाइनेंस में कार्बन क्रेडिट एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने में मदद करता है. कार्बन क्रेडिट, कंपनियों और देशों को अपने ग्रीनहाउस गैसेज़ उत्सर्जन में कमी करने के लिए प्रेरित करता है. कार्बन क्रेडिट का उपयोग कार्बन ट्रेडिंग में किया जाता है, जहां कंपनियां अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्बन क्रेडिट खरीद और बेच सकती हैं.
अमीर देश नहीं निभा रहे अपनी जिम्मेदारी
क्लाइमेट फाइनेंस मुख्यतः उन विकसित देशों द्वारा दिया जाता है जो काफी ज्यादा मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन करते है. यह राशि विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाती है. जिससे वो कार्बन के उत्सर्जन से होने वाले क्लाइमेट चेंज को रोक सकें. साथ ही विकसित देशों को इससे कार्बन उत्सर्जन करने का परमिट भी मिलता है. 1992 में हुई संयुक्त राष्ट्र की एक संधि के तहत, ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार मुट्ठीभर अमीर देश थे, जो यह पैसा देने के लिए बाध्य थे. साल 2009 में अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया 2020 तक सालाना 100 अरब डॉलर देने को राजी हो गए थे, लेकिन यह पहली बार सिर्फ 2022 में हो पाया. इस देरी ने भरोसे को कमजोर किया और इन आरोपों को जन्म दिया कि अमीर देश अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे हैं.
कॉप29 से हैं उम्मीदें
खास बात यह है कि कॉप29 में करीब 200 देश शामिल हो रहे हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि साल 2025 के आगे के वर्षों के लिए एक नए वित्तीय लक्ष्य पर यह सभी देश सहमत हो जाएंगे. भारत ने हर साल 1,000 अरब डॉलर की मांग की है. वहीं कुछ और प्रस्तावों ने इससे भी ज्यादा धनराशि की बात की है, लेकिन जिन देशों से धनराशि देने की उम्मीद की जा रही है वो चाह रहे हैं कि दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भी पैसे दें.
वार्षिक जलवायु सम्मेलन (COP29) के बारे में पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो।।