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जनगणना में देरी से 12 करोड़ लोग सस्ते अनाज से वंचित, बढ़ रहा कुपोषण

भारत में हर 10 साल में जनगणना होती है, लेकिन वो भी अब चार साल से लटकी हुई है. जिसका सबसे बड़ा असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है, इसके बिना 12 करोड़ से ज्यादा लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी PDS के तहत सस्ता अनाज पाने से वंचित हैं. क्योंकि आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी. कोविड-19 के कारण 2021 की जनगणना टाल दी गई और अब 2025 में भी इसके शुरू होने की कोई तय तारीख नहीं है. इस देरी का सबसे बड़ा असर पड़ा है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) पर, जिसके तहत सस्ता अनाज बांटा जाता है.

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NFSA के तहत ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% लोगों को PDS यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ मिलना चाहिए. लेकिन जनगणना के बिना नई आबादी का आकलन नहीं हो पा रहा है, और 2011 के पुराने आंकड़ों के आधार पर ही योजना चलाई जा रही है. इसका नतीजा यह है कि 12 करोड़ से ज्यादा पात्र लोग इस योजना से बाहर हैं.

नेशनल कमीशन ऑन पॉपुलेशन के अनुसार, 2025 तक 92 करोड़ लोगों को NFSA के तहत आना चाहिए, लेकिन अभी केवल 80.6 करोड़ लोग ही कवर हैं. इससे सबसे अधिक असर बच्चों पर पड़ रहा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2019-21) बताता है कि हर तीन में से एक बच्चा स्टंटिंग का शिकार है.

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एक रिपोर्ट के अनुसार, PDS के विस्तार से 18 लाख बच्चों को स्टंटिंग से बचाया गया था। लेकिन जनगणना की देरी अब इस प्रभाव को कम कर रही है. विश्व बैंक का मानना है कि स्टंटिंग के कारण बच्चों की भविष्य की कमाई 20% तक कम हो सकती है.

सरकार ने 2025 के लिए जनगणना बजट में 50% की कटौती की है, जिससे इसके जल्द होने की संभावना और कम हो गई है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि जब तक जनगणना नहीं होती, तब तक अनुमानित जनसंख्या के आधार पर NFSA का विस्तार किया जाए या यूनिवर्सल PDS लागू किया जाए, जिससे गरीब और प्रवासी आबादी को राहत मिल सके.

खाद्य सुरक्षा एक बुनियादी हक है और इसकी अनदेखी भारत की आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित कर सकती है.



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