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फर्जी डॉक्टर, नकली पहचान और सात मौतें, ‘डॉ. एन जॉन कैम’ की हैरान कर देने वाली सच्चाई

कल्पना कीजिए — आप एक बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होते हैं, आपके सामने जो व्यक्ति सफेद कोट पहनकर खड़ा है, वो आत्मविश्वास से बात करता है और मेडिकल टर्म्स इस्तेमाल करता है, खुद को लंदन के सेंट जॉर्ज अस्पताल का विशेषज्ञ बताता है… लेकिन वो असल में डॉक्टर है ही नहीं. यह कोई फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि एक हकीकत है. भारत में मेडिकल फर्जीवाड़े का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने हेल्थकेयर सिस्टम की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव, 53 वर्षीय एक ठग, जिसने करीब 20 वर्षों तक खुद को “डॉ. एन जॉन कैम” बताकर देशभर में कार्डियोलॉजिस्ट के रूप में पेश किया. उसने सोशल मीडिया, वेबसाइट और दस्तावेज़ों के ज़रिए वह खुद को यूके के सेंट जॉर्ज अस्पताल में काम करने वाला विशेषज्ञ बताता था. यहां तक कि उसने राजस्थान में एक 5,000 बेड वाले “जॉन कैम इंस्टीट्यूट” की घोषणा तक कर दी थी.

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लेकिन उसका सच सामने तब आया जब मध्य प्रदेश के दमोह जिले के मिशन अस्पताल में यादव द्वारा की गई सर्जरी के बाद सात मरीजों की मौत हो गई. जांच में पाया गया कि वह न तो डॉक्टर था, न कार्डियोलॉजिस्ट, और न ही उसके पास कोई मान्य मेडिकल डिग्री थी. इस फर्जीवाड़े ने स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की ढिलाई और डॉक्टर्स की पहचान जांचने की कमजोर प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

यादव की गिरफ्तारी प्रयागराज से हुई, लेकिन उससे पहले ही उसने कई लोगों को 50 मिलियन रुपये का लीगल नोटिस भी भेजा था, यह कहकर कि उन्होंने उसकी “पहचान चुराई” है. यह मामला सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं है — यह एक चेतावनी है. यदि एक व्यक्ति सालों तक सिस्टम को धोखा दे सकता है, तो यह दर्शाता है कि हमें डॉक्टर्स की जांच, प्रमाणन और मरीजों की सुरक्षा के लिए और सख्त नियमों की ज़रूरत है. अब सवाल ये है – क्या इस घटना से हम सबक लेंगे या अगला फर्जी डॉक्टर फिर किसी मासूम की जान लेगा?