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Farmers Protest: किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की हालत नाजुक, जानिए किसान आंदोलन की इनसाइड स्टोरी

भारत सरकार साल 2020-21 में कृषि कानून लेकर आई. जगजीत सिंह ने इन कानूनों के खिलाफ किसानों का नेतृत्व किया था. एक बार फिर किसानों की मांग को लेकर 70 वर्षीय जगजीत सिंह काफी समय से भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं. जगजीत सिंह कैंसर से पीड़ित हैं जिसके कारण उनकी हालत गंभीर होती जा रही है.

किसान आंदोलन (Farmers Protest) को लेकर पंजाब-हरियाणा सीमा पर हजारों की संख्या में किसान बैठे हैं. जहां इस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक, किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल (Jagjit Singh Dallewal) की तबीयत बिगड़ने से स्थिति गंभीर हो गई है.  पंजाब-हरियाणा के बॉर्डर पर खनौरी में डल्लेवाल की तबीयत खराब होने पर डॉक्टरों ने उन्हें आईसीयू में भर्ती करने की सलाह दी है. जगजीत सिंह एक महीने से लगातार भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं.

बता दें कि किसान आंदोलन के समर्थन में कई नेता, गायक, और सामाजिक कार्यकर्ता भी जुटे थे. तभी अचानक से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की तबीयत बिगड़ गई. डॉक्टरों ने मुताबिक लगातार भूखे रहने से उनकी किडनी और लीवर पर इसका असर पड़ रहा है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो गई है. डॉक्टरों ने यह भी बताया कि उनका वजन घट रहा है, जो उनकी सेहत के लिए खतरनाक है. हालांकि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गंभीर हालत देखते हुए पंजाब सरकार को उनका इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती कराने का आदेश दिया है.

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जगजीत सिंह डल्लेवाल कौन हैं?
जगजीत सिंह डल्लेवाल पंजाब और हरियाणा के कृषि आंदोलनों के एक प्रमुख किसान नेता हैं. उनका जन्म फ़रीदकोट जिले के डल्लेवाल गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई फ़रीदकोट से की और फिर पंजाब यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में मास्टर की डिग्री हासिल की. जगजीत सिंह के बड़े भाई भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल गुट के ब्लॉक कोषाध्यक्ष थे. यहीं से जगजीत सिंह अपने भाई की मदद करते हुए खुद भी किसानों के संघर्ष में शामिल होने लगे. वर्तमान में जगजीत सिंह डल्लेवाल भारतीय किसान यूनियन के सदस्य और एक प्रमुख नेता के रूप में जाने जाते हैं.

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कृषि कानून की खिलाफत
बता दें कि भारत सरकार साल 2020-21 में कृषि कानूनों को लेकर आई, तो जगजीत सिंह ने इन कानूनों के खिलाफ किसानों का नेतृत्व किया था. एक बार फिर किसानों की मांग को लेकर 70 वर्षीय जगजीत सिंह काफी समय से भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं. जगजीत सिंह कैंसर से पीड़ित हैं जिसके कारण उनकी हालत गंभीर होती जा रही है.

किसान क्यों कर रहे हैं आंदोलन?
साल 2020 में संसद में तीन कानून पेश किये गए. जिसे कृषि कानून के नाम से जाना जाता है. इन कानूनों का उद्देश्य भारतीय कृषि क्षेत्र में सुधार करना, कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ाना और उपज की कीमतों को बाजारी ताकतों के आधार पर निर्धारित करने की दिशा में कदम उठाना था. हालांकि किसानों कि भलाई के लिए लाए गए इस कानून का उल्टा असर देखने को मिला. देश भर के किसान इस कानून का विरोध करने लगे. भले ही सरकार के इन कानूनों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार लाना और किसानों की आय बढ़ाना था. लेकिन, किसानों का मानना है कि ये कानून बड़े कॉर्पोरेट्स के हित में हैं और छोटे किसानों को नुकसान पहुंचाएंगे.

कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ था आंदोलन
यह आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा 2020 में पारित किए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ था. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य अधिनियम (Farmers’ Produce Trade and Commerce Act, 2020) के तहत, किसानों को अपने उत्पाद को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मंडी से बाहर भी बेचने की अनुमति दी गई. किसानों को अपनी उपज सीधे थोक व्यापारियों और निर्यातकों को बेचने की स्वतंत्रता मिली.

इसके साथ ही कृषि समझौता और मूल्य आश्वासन अधिनियम, Farmers Agreement on Price Assurance and Farm Services Act, 2020 के तहत, किसानों को कृषि उत्पादों की खरीद के लिए कंपनियों या व्यापारी समूहों से अनुबंध करने की अनुमति दी गई. इसके तहत contract farming को बढ़ावा दिया गया. वहीं कृषि लागत और मूल्य आयोग अधिनियम Commission for Agricultural Costs and Prices Act के तहत किसान कृषि लागत और मूल्य आयोग अधिनियम कानून में संशोधन चाहते हैं. किसानों का कहना है की इस कानून में MSP की गारंटी का कोई प्रावधान नहीं है, जिससे की किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य न मिलने का डर है.

क्या हैं किसानों की प्रमुख मांग

  • MSP की गारंटी: किसानों की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानून द्वारा सुनिश्चित किया जाए.
  • स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करना: किसानों का मानना है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से उनकी आय दोगुनी होगी.
  • कर्ज माफी: किसानों का एक बड़ा वर्ग कर्ज के बोझ तले दबा है. वे सरकार से कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं.
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को बहाल करना: किसानों का मानना है कि इस अधिनियम को बहाल करने से उन्हें अपनी भूमि के लिए उचित मुआवजा मिलेगा.
  • विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करना: किसानों का मानना है कि यह विधेयक निजीकरण को बढ़ावा देगा और राज्य सरकारों की भूमिका को कम करेगा.

पहले भी हो चुके हैं किसान आंदोलन
बता दें कि देश के इतिहास में यह पहली बार नहीं है कि जब किसी आंदोलन के नेता या लोग अपनी मांगों के लिए आमरण अनशन कर रहे हों. इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जब लोग अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे हों. 1920 में हुए किसान आंदोलन में प्रजा मंडल आंदोलन के नेता सेवा सिंह ठीकरीवाला ने जेल में मरने तक भूख हड़ताल की थी.

किसान आंदोलन की पूरी कहानी जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।

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