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Gender Wage Discrimination: लैंगिक समानता में पिछड़ रहा है भारत, जानिए क्या कहती है WEF रिपोर्ट

लैंगिक आधार पर मजदूरी भेदभाव एक ऐसी स्थिति है जिसमें महिलाओं और पुरुषों को समान कार्य और योग्यता के बावजूद अलग-अलग वेतन दिया जाता है. यह भेदभाव महिलाओं के खिलाफ होता है, जिनका वेतन पुरुषों की तुलना में कम होता है. Gender Pay Gap यानी लैंगिक वेतन अंतराल, देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच औसत वेतन के अंतर को दर्शाता है.

Gender Wage Discrimination यानी लिंग के आधार पर मजदूरी में भेदभाव भारत सहित दुनिया भर में बढ़ता जा रहा है. लैंगिक मजदूरी भेदभाव एक ऐसी स्थिति है जिसमें महिलाओं और पुरुषों को समान कार्य और योग्यता के बावजूद अलग-अलग वेतन दिया जाता है. यह भेदभाव महिलाओं के खिलाफ होता है, जिनका वेतन पुरुषों की तुलना में कम होता है. Gender Pay Gap यानी लैंगिक वेतन अंतराल, देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच औसत वेतन (average pay) के बीच के अंतर को दर्शाता है. ऐसे में आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानेंगे कि लिंग मजदूरी भेदभाव क्या है और ये किन-किन क्षेत्रों में देखने को मिलती है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले वेतन में असमानता का शिकार होना पड़ता है. लैंगिक आधार पर वेतन में भेदभाव का मामला केवल भारत जैसे विकासशील में ही नहीं है, विकसित यूरोपीय देश में भी है.लेकिन भारत की स्थिति तो दुनिया के उन देशों जैसी है जहां वेतन के मामले में सबसे अधिक गैर बराबरी है.

बता दें कि फिल्मी दुनिया में मेल एक्टर और फीमेल एक्ट्रेस की पेमेंट में भारी अंतर हैं. साल 2023 में रिलीज़ हुई प्रभास और कृति सैनन की फिल्म आदिपुरुष में प्रभास और कृति के चार्ज में भारी अंतर था. इस फिल्म के लिए प्रभास को 150 करोड़ मिले थे. जबकि कृति को सिर्फ 3 करोड़ ही दिए गए थे. इसी तरह बॉलीवुड में सबसे ज्यादा भुगतान लेने वाले अभिनेता शहरुख खान और साउथ के अल्लू अर्जुन हैं. इन्हें एक फिल्म का 100 से 200 करोड़ मिलता है. वहीं एक्ट्रेस की अगर बात करें तो दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा को एक मूवी का 30 से 40 करोड़ रुपये ही मिलता है.

लिंग मजदूरी भेदभाव क्या है
भारत एक पितृसत्तात्मक समाज है. ऐसे में यहां शुरुआत से ही महिलाओं के साथ भेदभाव होता रहा है. यहां लड़के के मुकाबले जब एक लड़की किसी कंपनी में काम करने जाती है तो उसे अक्सर लिंग मजदूरी भेदभाव का सामना करना पड़ता है और लड़के के मुकाबले उसे कम पैसा मिलता है. World Economic Forum (WEF) यानी विश्व आर्थिक मंच ने इसी साल 2024 में वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया कि वैश्विक स्तर पर लैंगिक अंतर 2024 में 68.5 फीसदी पर ठहर गया है जो की 2023 में 68.4 प्रतिशत था. वहीं 146 देशों की सूची में भारत 129वें स्थान पर है. जबकि 2023 में भारत 127वें स्थान पर था. वहीं साल 2022 में भारत का स्थान 135वें था. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने 2024 में अपने लैंगिक अंतर को कम कर लिया है, लेकिन पिछले साल की तुलना में भारत में लैंगिक असमानता बढ़ी है. रिपोर्ट के मुताबिक, यह मुख्य रूप से शिक्षा और राजनीतिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में आई हल्की कमी” की वजह से हुआ है.

पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन में असमानता
केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Union Ministry of Statistics and Programme Implementation) ने साल 2022 में Women and Men in India 2022 के नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले एक दशक में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन में असमानता बढ़ी है. यहां उच्च वेतन स्तर पर अंतराल और अधिक बढ़ गया है. इसी साल जारी किए गए World Inequality Report 2022 (विश्व असमानता रिपोर्ट 2022) के अनुसार भारत में पुरुष श्रम आय में 82% हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि महिलाएं सिर्फ 18% ही हिस्सेदारी रखती हैं.

ऑक्सफैम की रिपोर्ट
बता दें कि साल 2022 में Oxfam ने Gender Wage Discrimination रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में बताया गया था की भारत में महिलाओं के साथ-साथ दलित समुदाय के लोगों को भी नौकरी में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. इनमें जाति व्यवस्था के सबसे निचले तबके, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के सदस्य शामिल हैं. ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर के अनुसार, श्रम बाजार में भेदभाव तब होता है जब समान क्षमताओं वाले लोगों को उनकी पहचान या सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण अलग-अलग व्यवहार किया जाता है.

कारण और निदान
भारत देश में लिंग मजदूरी भेदभाव का प्रमुख कारण पितृसत्तात्मक मानसिकता का होना है. देश में आज भी पुरुषों को महिलाओं से आगे रखा जाता है. हमारे समाज में पुरुषों को मजबूत और और महिलाओं को कमज़ोर समझा जाता है. महिलाओं को घर संभालने और पुरुषों को कमाने की जिम्मेदारी दी जाती है. अगर समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा मिले तो लिंग आधारित मजदूरी भेदभाव को खत्म किया जा सकता है. गौर करने वाली बात यह भी है कि महिलाओं को काम के साथ-साथ घर और बच्चों की देखभाल के लिये भी टाइम निकालना पड़ता है. इस वजह से भी उन्हें पुरुषों के मुकाबले काम वेतन दिया जाता है. वहीं कई महिलाओं को इस बात का भी डर होता है की अगर वो ज्यादा सैलरी की मांग करेंगी तो उनके जगह किसी को अप्वॉइंट कर लिया जाएगा. इस रिजेक्शन के डर की वजह से महिलाएं सैलरी बढ़ाने की मांग कभी नहीं कर पाती हैं जबकि पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता है.

लिंग मजदूरी भेदभाव के अन्य कारण

  • महिलाओं की शिक्षा और प्रशिक्षण में असमानता
  • महिलाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में कम अवसर मिलना
  • महिलाओं को कम शिक्षा के कारण कम वेतन मिलना
  • महिलाओं को कम पदों पर नियुक्ति मिलना
  • महिलाओं को काम के घंटों में कमी का होना

लैंगिक वेतन अंतराल को खत्म करने वाले कानून
भारत का संविधान अनुच्छेद 39 (d) और अनुच्छेद 42 के तहत पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन की गारंटी देता है. यह अनुच्छेद 15 (1) और अनुच्छेद 15 (2) के तहत लैंगिक भेदभाव पर भी रोक लगाता है. इसके अलावा समान पारिश्रमिक अधिनियम (Equal Remuneration Act) पुरुषों और महिलाओं को समान कार्य के लिये समान वेतन देने का अधिकार देता है. यह अधिनियम सभी संगठनों पर लागू होता है, चाहे वे सार्वजनिक हों या निजी, और यह नियमित एवं अनियत दोनों तरह के कर्मचारियों को दायरे में लेता है. इसके साथ ही मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act) महिला कर्मचारियों के लिये मातृत्व अवकाश और अन्य लाभों का प्रावधान करता है.

लैंगिक असमानता से जुड़ी पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो।।