क्या आपने कभी सोचा है कि भारत की राजनीतिक पार्टियों को आखिर इतना पैसा कौन देता है और क्यों? क्या यह दान सिर्फ विचारधारा से प्रेरित होता है या फिर इसके पीछे कोई और रणनीति होती है? हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा जारी एक रिपोर्ट ने इन सवालों के जवाब ढूंढने का मौका दिया है.
किस पार्टी को कितना मिला दान?
यह रिपोर्ट देश के छह राष्ट्रीय दलों द्वारा 2023-24 में घोषित दान की जानकारी देती है. कुल 2544.27 करोड़ रुपये के दान में से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अकेले 2243.95 करोड़ रुपये मिले, जो कि कुल दान का 88% है. वहीं कॉर्पोरेट दान की बात करें, तो BJP को 2064.58 करोड़ रुपये, यानी 91.2% हिस्सा मिला. यह आंकड़ा दिखाता है कि देश के बड़े कारोबारी घराने किस हद तक एक पार्टी को प्राथमिकता दे रहे हैं. दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 281.48 करोड़, आम आदमी पार्टी (AAP) को 11.06 करोड़, CPI(M) को 7.64 करोड़, और नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP) को केवल 14 लाख रुपये का दान मिला. बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने हमेशा की तरह इस बार भी 20,000 रुपये से अधिक के किसी भी दान का खुलासा नहीं किया.
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एक और बड़ा खुलासा यह है कि BJP को दान में साल दर साल 211% की बढ़ोतरी हुई है. 2022-23 में पार्टी को 719.85 करोड़ रुपये मिले थे, जो अब 2243.95 करोड़ हो गए हैं. कांग्रेस को 252% और AAP को 70.1% का इज़ाफा हुआ, लेकिन BJP की तुलना में यह रकम बहुत कम है.
क्या फर्क है इलेक्टोरल ट्रस्ट और इलेक्टोरल बॉन्ड में?
Prudent Electoral Trust, जो कॉर्पोरेट दान देने वाले ट्रस्ट्स में सबसे बड़ा है, उसने BJP को 723.67 करोड़ और कांग्रेस को 156.40 करोड़ रुपये दिए. इस ट्रस्ट के पीछे RP Sanjiv Goenka Group, Megha Engineering, Bharti Airtel, GMR, और DLF Group जैसे नाम हैं. यह जानना भी ज़रूरी है कि इलेक्टोरल ट्रस्ट और इलेक्टोरल बॉन्ड में क्या फर्क है. इलेक्टोरल बॉन्ड में दानकर्ता की पहचान गुप्त रहती है और ये सीमित समय में खरीदे जा सकते थे. वहीं, इलेक्टोरल ट्रस्ट्स सालभर दान लेते हैं और पारदर्शिता की शर्त होती है. BJP ने अकेले 857 करोड़ रुपये इलेक्टोरल ट्रस्ट्स के माध्यम से प्राप्त किए, जो कुल ट्रस्ट दान का 70% है. ये सभी आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि भारत में राजनीति अब विचारधारा से ज़्यादा पैसे की ताकत पर टिकती दिख रही है.
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अब सवाल ये है — क्या इतनी वित्तीय असमानता लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है? जब एक पार्टी को इतना ज़्यादा संसाधन मिलेगा, तो क्या बाकियों को बराबरी का मंच मिल पाएगा? इस रिपोर्ट से साफ है कि भारतीय राजनीति में पैसे का प्रभाव अब केवल सहायक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभा रहा है. ज़रूरत इस बात की है कि दान की प्रक्रिया को और पारदर्शी और संतुलित बनाया जाए, ताकि लोकतंत्र की नींव मजबूत बनी रहे.