Game of Thrones” में दिखने वाला डायर वुल्फ अब सिर्फ एक कल्पना नहीं रहा. टेक्सास की हाई-टेक बायोटेक कंपनी Colossal Biosciences ने जेनेटिक एडिटिंग के ज़रिए डायर वुल्फ के बेहद करीब तीन नए भेड़ियों को जन्म दिया है. Romulus, Remus और Khaleesi. ये सभी भेड़िये ग्रे वुल्फ से बड़े हैं, इनके बाल घने हैं और गर्दन पर शेर जैसी जुल्फ़ें हैं—कुछ ऐसा जो आज के किसी भी भेड़िये में नहीं मिलता.
कैसे हुआ संभव?
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत तब हुई जब वैज्ञानिकों ने 2021 में डायर वुल्फ की एक खोपड़ी और दांत से DNA के टुकड़े निकाले. इसके बाद नई तकनीकों की मदद से 13,000 से 72,000 साल पुरानी हड्डियों से पूरा जीनोम तैयार किया गया. Colossal की टीम ने डायर वुल्फ के 20 सबसे अहम जीन चुने—जिनसे उसका आकार, ताकत और फर की बनावट तय होती थी। इन जीन को ग्रे वुल्फ के DNA में डालकर एडिटेड भ्रूण बनाए गए, जिन्हें बड़ी नस्ल के कुत्तों में इम्प्लांट किया गया.
जिम्मेदारी और सावधानी
हर वैज्ञानिक प्रयोग के साथ एक जिम्मेदारी भी आती है. इनमें से कुछ जीन ऐसे थे जो अंधेपन और बहरेपन का कारण बन सकते थे. इसलिए वैज्ञानिकों ने ऐसे सुरक्षित म्यूटेशन चुने जो डायर वुल्फ की विशेषताएं दें, लेकिन स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाएं. चार शावकों का जन्म हुआ, जिनमें से एक की मृत्यु हुई, लेकिन जांच में पाया गया कि वह किसी जेनेटिक गड़बड़ी से नहीं हुई थी. बाकी तीन पूरी तरह स्वस्थ हैं.
क्या ये असली डायर वुल्फ हैं?
Colossal का दावा है कि ये “functional copy” हैं—यानि दिखने और चलने-फिरने में डायर वुल्फ जैसे, लेकिन असल में वो नहीं. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि असली डायर वुल्फ का व्यवहार, खानपान, माइक्रोबायोम और जीवनशैली भी मायने रखती है, जो इन आधुनिक वुल्फ्स से अलग है. Romulus, Remus और Khaleesi अब एक गुप्त फार्म में, निगरानी और सुविधाओं के साथ पाले जा रहे हैं.
भविष्य की योजनाएं और पर्यावरणीय सवाल
Colossal यहीं नहीं रुका है. कंपनी अब डोडो और मैमथ जैसे विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने की तैयारी में है. इसके अलावा, critically endangered रेड वुल्फ को बचाने के लिए कोयोट के साथ हाइब्रिड क्लोन भी तैयार किए गए हैं. पर वहीं दूसरी ओर, अमेरिका में ग्रे वुल्फ को Endangered Species List से हटाने की कोशिश की जा रही है, जिसका पर्यावरणविद विरोध कर रहे हैं.
संरक्षण या वैज्ञानिक शो?
कुछ मूलवासी समुदाय इस प्रयास का समर्थन करते हैं और इसे प्रकृति से जुड़ने का एक अवसर मानते हैं. लेकिन सवाल बना रहता है—क्या ये जानवर आज की बदलती दुनिया में ज़िंदा रह पाएंगे? या ये बस विज्ञान की एक हाई-प्रोफाइल उपलब्धि बनकर रह जाएंगे?