भारत में हर 10 साल में जनगणना होती है. देश में जनगणना एक अहम प्रक्रिया भी है. आखिरी बार साल 2011 में भारत में जनगणना कराई गई थी. इसके बाद साल 2021 में जनगणना होना तय था. लेकिन कोविड की वजह से ऐसा नहीं हो सका. ऐसे में अब 2020 से रुकी हुई 2021 की जनगणना की प्रक्रिया 2025 में शुरू हो सकती है. खास बात यह है कि जातिगत जनगणना की उठती मांग के बीच 14 सालों के बाद होने वाली इस जनगणना में बहुत कुछ बदल जाएगा. आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम जनगणना में शामिल होने वाली नई टेक्नोलॉजी के बारे में जानेंगे.
बता दें कि देश में होने वाली जनगणना की प्रक्रिया न केवल देश की जनसंख्या के आंकड़े बताती है, बल्कि अलग-अलग सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक फैसलों के लिए भी आधार तैयार करती है. मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2025 में नई जनगणना की शुरुआत होगी, एक साल बाद 2026 में यह जनगणना पूरी होगी. ऐसे में अगली जनगणना 2035 फिर 2045 और इसके बाद 2055 में होगी.
चुनावी सीटों का होगा परिसीमन
गौरतलब है कि जनगणना की प्रक्रिया पूरी होने के बाद लोकसभा सीटों और विधानसभा सीटों का परिसीमन किया जाएगा. परिसीमन का मतलब है कि, जनसंख्या के आधार पर चुनावी क्षेत्र की सीमा को नए सिरे से तय किया जाएगा. परिसीमन की प्रक्रिया साल 2028 तक पूरी होने की संभावना है. बता दें कि परिसीमन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि, हर क्षेत्र को उसकी जनसंख्या के हिसाब से सही प्रतिनिधित्व मिल सके. इससे चुनावी प्रक्रिया में न्याय और समानता सुनिश्चित होगी. इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को भी शामिल किया जाएगा.
परिसीमन पर लगी है रोक
भारत के संविधान के 84वें संशोधन ने 2026 तक संसदीय और विधानसभा सीटों के परिसीमन पर रोक लगा रखी है. ऐसे में 2026 के बाद नई जनगणना के आंकड़ों के आधार पर अगली परिसीमन प्रक्रिया पूरी की जाएगी. भारत के महापंजीयक कार्यालय (ORGI) के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक, जिलों, तहसीलों, गांवों आदि जैसी प्रशासनिक इकाइयों की सीमाओं को स्थिर करने की समय सीमा – जनगणना शुरू होने से पहले अप्रैल 2020 में शुरू होने वाली जनगणना 2021 की कवायद के बाद बार-बार बढ़ाई गई थी, जिसे कोविड महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था. हालांकि, 30 जून, 2024 के बाद कोई विस्तार आदेश जारी नहीं किया गया है.
जनगणना के तैयारी
आमतौर पर जनगणना की तैयारी की प्रक्रिया में मकानों की सूची बनाना शामिल होता है. इसे आमतौर पर 1 अप्रैल से 30 सितंबर के बीच किया जाता है. इसके बाद अगले साल फरवरी में जनसंख्या गणना का स्टेप शुरू होगा. जनगणना शुरू होने से पहले के साल में एक प्री-टेस्ट भी होगा. जनगणना 2021 के लिए यह प्री-टेस्ट अगस्त-सितंबर 2019 में आयोजित किया गया था.
जनगणना में होने वाले बदलाव
जनगणना की प्रक्रिया में तकनीकी रूप से बहुत बड़े बदलाव किए गए हैं. इस बार पहली बार डिजिटल जनगणना की जाएगी. आम नागरिक जनगणना पोर्टल पर अपनी जानकारी खुद अपलोड करेंगे. इसके लिए जनगणना पोर्टल अभी तैयार किया जा रहा है. एक पूर्व जनगणना अधिकारी ने बताया कि, चूंकि प्रक्रियाओं में तकनीकी बदलाव किया गया है, इसलिए नए प्री-टेस्ट की आवश्यकता पर विचार किया जा सकता है. भले ही ऐप और सॉफ़्टवेयर का आंतरिक रूप से परीक्षण किया जा रहा हो. गणना करने वालों को नई प्रक्रियाओं और जनगणना ऐप से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए.
डिजिटल जनगणना कैसे होगी
देश के अधिकांश नागरिकों के पास स्मार्टफोन है. वह अपने फ़ोन पर एक फॉर्म डाउनलोड करके उसमें सभी जानकारी भर देंगे. इसके बाद यह फॉर्म भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय (ORGI) में पहुंच जाएगा. ऐसे में इससे ना सिर्फ आंकड़े जल्दी आ जाएंगे, बल्कि उनको फिल्टर करने में भी आसानी होगी. हालांकि देश में अभी भी ऐसे कई इलाके हैं जहां इंटरनेट या तो नहीं है या फिर लो स्पीड है. इसके अलावा कई लोगों को स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना नहीं आता है. माना जा रहा है ऐसी जगहों पर 2011 की ही तरह जनगणना में लगे अधिकारी जाएंगे और आंकड़े इकट्ठा करेंगे.
नई जनगणना में हो सकते हैं ये सवाल
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस बार, जनगणना में लोगों से यह भी पूछा जा सकता है कि वे किस संप्रदाय के अनुयायी हैं. उदाहरण के लिए, कर्नाटक में सामान्य वर्ग में आने वाले लिंगायत स्वयं को एक अलग संप्रदाय मानते हैं. इसी तरह, अनुसूचित जाति में वाल्मीकि, रविदासी जैसे विभिन्न संप्रदाय हैं. इससे यह स्पष्ट होगा कि, किस धर्म और वर्ग के लोग किस संप्रदाय से संबंधित हैं. विशेषज्ञों का मानना है, इस तरह के प्रश्नों का समावेश न केवल जनगणना की प्रक्रिया को विस्तारित करेगा, बल्कि यह सामाजिक ढांचे को भी समझने में मदद करेगा.
जातिगत जनगणना की मांग
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जातिगत जनगणना कराने पर अभी तक कोई साफ स्थिति नहीं है. जेडीयू और टीडीपी जैसे सहयोगियों के साथ-साथ विपक्षी दलों द्वारा भी इसकी मांग की जाती रही है. जनवरी 2020 में अधिसूचित जनगणना 2021 की हाउसलिस्टिंग शेड्यूल में ‘जाति’ के बिना 31 फ़ील्ड शामिल हैं. जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज हैं. लेकिन सरकार ने अभी तक इस पर कोई औपचारिक फैसला नहीं लिया है.
जातिगत जनगणना के मायने
जातिगत जनगणना का मतलब है कि जनसंख्या को जाति के आधार पर बांटा जाए. जिससे यह पता चले कि अलग-अलग जातियों का क्या अनुपात है. माना जा रहा है कि इससे आरक्षण और अन्य सुविधाओं के लिए खास योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी. वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि, जनगणना की प्रक्रिया में बदलाव से न केवल जनसंख्या का सही आंकड़ा प्राप्त होगा, साथ ही यह विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को भी प्रभावित करेगा. जनगणना की प्रक्रिया में इस प्रकार के बदलाव, भारतीय समाज के लिए नए दृष्टिकोण और समझ के दरवाजे खोल सकते हैं.
जनगणना 2025 से जुड़े सभी सवालों के जवाब जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।