गुजरात में 71 करोड़ MGNREGA घोटाला: फर्जी प्रोजेक्ट्स से आदिवासी के रोज़गार पर पड़ा डाका
गुजरात में 71 करोड़ MGNREGA घोटाला: गुजरात के दाहोद ज़िले में ₹71 करोड़ के MGNREGA घोटाले ने मंत्री के बेटों की गिरफ्तारी से सनसनी फैला दी. दाहोद जिले के दूरदराज़ आदिवासी इलाक़ों में जब स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि MGNREGA से सड़कें, तालाब और छोटे बांध बनेंगे, तभी एक बड़े घोटाले ने इन्हीं सपनों को कागज़ी बना दिया. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, जो हर ग्रामीण परिवार को साल में सौ दिन का काम देने का कानूनी वादा करती है, यहां अपने ही अफ़सरों-नेताओं की कारस्तानी की शिकार हो गई. राज्य सरकार ने जहां पूरे देश के लिए इस साल 86 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, वहीं दाहोद में कई “प्रोजेक्ट” बस फ़ाइलों में ही पूरे दिखाकर 71 करोड़ रुपये निकाल लिये गए.
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कौन खा गया गरीबों का हक ?
जांच से पता चला कि देवगढ़ बारिया और धनपुर तालुका के कुवा, रेढाना व सिम्मोई जैसे गांवों में जिन सड़कों और तालाबों की कम्प्लीशन रिपोर्ट लगाई गई, वह ज़मीन पर कहीं नहीं हैं. फ़र्जी चालान, जाली कम्प्लीशन सर्टिफ़िकेट और ग़लत माप-पेटियों के सहारे पैसे सीधे उन फ़र्मों को पहुंचे जो पंचायत-कृषि मंत्री बचुभाई खाबड़ के बेटों—बलवंत और किरण—से जुड़ी थीं.
विशेष जांच के SIT टीम का गठन
इस साज़िश का पर्दाफ़ाश होते ही बलवंत खाबड़ को पुलिस ने गिरफ़्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया, जबकि छोटे बेटे किरण को 20 मई को चार दिन की पुलिस कस्टडी मिली है. अब तक तदोत्तर विकास अधिकारी (TDO) दर्शन पटेल समेत 14 लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है, और पुलिस ने एक विशेष जांच दल (SIT) गठित किया है.
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प्रशासन की मिलीभगत
रोज़गार के आंकड़ों से खिलवाड़ का मतलब है कि दाहोद के दो लाख से ज़्यादा परिवारों को जिस मज़दूरी का इंतज़ार था, वह जेबों तक पहुंची ही नहीं. बारिश से पहले होने वाली छोटी सिंचाई परियोजनाएं लटक गईं, और हज़ारों मज़दूर शहर‐क़स्बों में पलायन को मजबूर हुए. सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जब तक ऊंची प्रशासनिक सतह पर मिलीभगत न हो, पांच साल तक चलने वाला इतना बड़ा घोटाला छुप नहीं सकता.
विपक्ष का बड़ा अरोप
विपक्ष के नेता अमित चावड़ा का कहना है कि असली रकम 160 से 250 करोड़ रुपये के बीच हो सकती है और उन्होंने मुख्यमंत्री से सार्वजनिक श्वेतपत्र जारी करने की माँग की है. सरकार ने फिलहाल आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी, पर SIT ने 2021-25 की सभी भुगतान फ़ाइलों को सीज़ कर डिजिटल ऑडिट शुरू कर दिया है. अग्रिम जमानत खारिज होने के बाद फ़रार अन्य आरोपियों पर लुकआउट नोटिस जारी है.
इस प्रकरण ने याद दिलाया है कि क़ानून लिख देने भर से पारदर्शिता नहीं आती; ज़मीनी निगरानी, सामाजिक ऑडिट और सूचना के अधिकार जैसे औज़ार ही ग्रामीण रोज़गार की रीढ़ बचा सकते हैं. दाहोद की लड़ाई महज़ 71 करोड़ की वसूली की नहीं, बल्कि उस भरोसे की है जो रोज़गार गारंटी कानून ने देश के सबसे हाशिए पर खड़े लोगों में जगाया था.