रातापानी वन्यजीव अभयारण्य को मध्य प्रदेश का आठवां बाघ अभयारण्य घोषित किया गया है. प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने टाइगर रिजर्व, रातापानी का उद्घाटन किया है. यह मध्य प्रदेश का 8वां और भारत का 57वां बाघ अभयारण्य है. यह अभयारण्य राज्य के माधव राष्ट्रीय उद्यान को 1 दिसंबर को बाघ अभयारण्य घोषित करने की मंजूरी मिलने के बाद स्थापित हुआ है. विंध्यांचल पर्वत के पास स्थित इस अभयारण्य में भीमबेटका रॉक शेल्टर भी शामिल हैं, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है. यह राजधानी भोपाल से 50 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित है.
बता दें कि मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित रातापानी टाइगर रिजर्व ,मध्य भारत के विंध्य रेंज में राज्य के बेहतरीन सागौन के जंगलों में से एक है. वैसे तो यह 1976 से एक वन्यजीव अभयारण्य है. लेकिन मार्च 2013 में, इसे बाघ अभयारण्य का दर्जा देने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) द्वारा सैद्धांतिक मंजूरी दी गई थी. इसके बाद 2 दिसंबर 2024 को, भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर इस क्षेत्र को बाघ अभयारण्य के रूप में घोषित किया. जिसके बाद भारत में बाघ अभयारण्यों की कुल संख्या 57 हो गई है, जिसमें से 8 मध्य प्रदेश में स्थित हैं.
1271.4 वर्ग किलोमीटर में है रातापानी टाइगर रिज़र्व
रातापानी टाइगर रिज़र्व का कुल क्षेत्रफल 1,271.4 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 763.8 वर्ग किलोमीटर का कोर क्षेत्र और 507.6 वर्ग किलोमीटर का बफर क्षेत्र शामिल है. इस अभयारण्य का क्षेत्र विश्व धरोहर स्थल, भीमबेटका रॉक शेल्टर के लिए प्रसिद्ध है. ये रॉक शेल्टर मानव सभ्यता के प्राचीनतम प्रमाणों में से एक हैं. यह लगभग 30,000 साल पुरानी रॉक पेंटिंग्स के लिए मशहूर हैं. रातापानी अभयारण्य में बाघ, तेंदुआ, भालू, हिरण, और कई प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं. सागौन के जंगलों के साथ-साथ यहां विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां भी मौजूद हैं. जो इस क्षेत्र की जैव विविधता को और समृद्ध बनाती हैं.
बाघ अभयारण्य की आवश्यकता
भारत में बाघों की संख्या और उनके संरक्षण के लिए बाघ अभयारण्यों का गठन एक महत्वपूर्ण कदम है. बाघ अभयारण्यों के गठन से बाघों के लिए एक सुरक्षित आवास मिलता है, जिससे उनकी संख्या बढ़ाने में मदद मिलती है. बाघों का संरक्षण पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित करने में मदद करता है. बाघ अन्य प्रजातियों की संख्या को नियंत्रित करते हैं और जंगल में विविधता बनाए रखते हैं. साथ ही बाघ अभयारण्यों में अन्य वन्यजीवों के लिए भी सुरक्षित आवास मिलते हैं, जिससे उनकी रक्षा होती है.
बाघ अभयारण्य घोषित करने के लिए क्या करना होता है?
किसी क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित करने के लिए, सरकार को उस क्षेत्र के बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने होते हैं. इसे सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र का विस्तार, जैव विविधता का संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए विभिन्न कदम उठाए जाते हैं. सबसे पहले, वन विभाग द्वारा उस क्षेत्र में बाघों की संख्या और उनके निवास स्थान का अध्ययन किया जाता है. साथ ही, वहां के जैविक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र का भी मूल्यांकन किया जाता है. उस क्षेत्र को बाघ अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने के लिए सरकारी अनुमोदन और कानूनी प्रक्रिया की जरुरत होती है. इसके साथ ही बाघों के संरक्षण के लिए एक संरक्षात्मक योजना बनाई जाती है, जिसमें बाघों की सुरक्षा, उनके शिकारियों से बचाव, और उनका प्राकृतिक आवास बनाए रखने की दिशा में कदम उठाए जाते हैं. बाघ अभयारण्यों में रहने वाले लोगों और बाघों के बीच संघर्ष को कम करने के लिए उपाय किए जाते हैं, जैसे कि आसपास के क्षेत्र में बाघों की आवाजाही को नियंत्रित करना और स्थानीय लोगों को जागरूक करना.
अभयारण्य के आने से लाभ
यह अभयारण्य न केवल बाघ संरक्षण के लिए एक बड़ा कदम है, बल्कि यह क्षेत्र के समग्र विकास और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में भी मददगार साबित होगा. वहीं भोपाल के नजदीक स्थित होने के कारण, यह क्षेत्र पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा. सागौन के जंगलों और समृद्ध जैव विविधता की सुरक्षा में इस क्षेत्र का महत्व और बढ़ जाएगा. यह निर्णय स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न करेगा.
भारत में बाघ
वर्तमान में भारत के मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, और असम में बाघ पाए जाते हैं. वहीं भारत में सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं. यहां कुल आठ बाघ अभयारण्य कान्हा, सतपुड़ा, बांधवगढ़, पेंच, संजय दुबरी, रातापानी, पन्ना और वीरांगना दुर्गावती हैं. कुल बाघों की बात करें, तो साल 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां कुल 785 बाघ हैं.
रातापानी टाइगर रिजर्व के बारे में पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो।।