पिछले कुछ समय से रुपया की कीमत डॉलर के मुकाबले (Rupees VS Dollar) लगातार कम हो रही है. वर्तमान में 1 डॉलर की कीमत 86.58 यानी लगभग 87 रुपया है. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की सरकार बनने के बाद ये दावा किया जा रहा है की साल 2025 के अंत तक रुपया की कीमत में 9 से 10 प्रतिशत तक गिरावट आएगी. जिसके बाद एक डॉलर की कीमत 90 रुपया के बराबर होगी. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर दिन पर दिन रुपए की कीमत इतनी कमजोर क्यों हो रही है. साथ ही अमेरिका में सरकार बदलने से हमारे देश की करेंसी में बदलाव क्यों होता है.
बता दें कि देश की आजादी के समय साल 1947 में 1 रुपया बराबर 1 डॉलर होता था. लेकिन साल दर साल अब यह अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साल 2025 के अंत तक 1 डॉलर की कीमत 90 रुपया के बराबर पहुंच जाएगी. ऐसे में यह जानना जरूरी है की डॉलर की कीमत, कितने रुपया होगी ये कैसे निर्धारित होती है. दरअसल ये करेंसी की डिमांड और सप्लाई पर आधारित होती है. अगर किसी चीज की डिमांड ज्यादा होती है तो उनकी कीमत भी ज्यादा हो जाती है. और जिस चीज की डिमांड कम होती है उसकी कीमत भी कम हो जाती है. ठीक वैसे ही अगर डॉलर की डिमांड ज्यादा होती है तो उसकी वैल्यू भी बढ़ जाती है और अगर डॉलर की डिमांड कम होती है तो उसकी वैल्यू में कमी आ जाती है.
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दुनियाभर में डॉलर की डिमांड
फिलहाल दुनियाभर में डॉलर की डिमांड अभी काफी ज्यादा है. जिसकी वजह से डॉलर की वैल्यू भी अधिक है. वहीं रुपया की बात की जाये तो विदेशी बाज़ार में रुपए की मांग कम है जिसकी वजह से इसकी वैल्यू भी डॉलर के मुकाबले काफी कम है. दरअसल भारत, अमेरिका से कई चीजों का आयात करता है. आयात की गई वस्तुओं के भुगतान के लिए भारत को रुपए बेच कर डॉलर खरीदने पड़ते हैं. ऐसे में डॉलर खरीदने की वजह से देश में डॉलर की डिमांड ज्यादा है. हालांकि भारत कई चीजों को निर्यात भी करता है. लेकिन निर्यात की संख्या कम होने के चलते भारतीय मुद्रा की मांग विदेशों में काफी कम है. जिसके चलते रुपए की मांग कम होने के कारण उसकी वैल्यू भी कम है.
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ट्रंप का करेंसी कनेक्शन
अमेरिका के राष्ट्रपति ने चुनाव जीतने से पहले अमेरिका की जनता से कुछ वादे किये थे जो भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. जैसे डोनाल्ड ट्रंप ने आयात शुल्क में बढ़ोतरी का वादा किया था. आयात शुल्क में बढ़ोतरी होने से अमेरिका के लोगों के लिए इम्पोर्टेड सामान महंगे पड़ेंगे और जिसकी वजह से लोग अमेरिका की ही चीजें ज्यादा खरीदेंगे. ऐसे में भारत की चीजों की डिमांड अमेरिका में कम हो जाएगी. जिसकी वजह से इंडियन करेंसी की वैल्यू भी कम हो सकती है. इसके अलावा ट्रंप ने अमेरिका के लोगों का इनकम टैक्स कट करने की बात कही थी. जिससे लोगों के पास पहले से ज्यादा सैलरी आएगी. ऐसे में अगर लोगों के पास जायदा पैसे होंगे तो वो ज्यादा से ज्यादा चीजें खरीदेंगे. जिससे अमेरिका में इन्फ्लेशन यानी की महंगाई की स्थिति बनेगी. जिसके बाद देश से इन्फ्लेशन को कम करने के लिए बैंक्स इंटरेस्ट रेट को बढ़ाएंगी. ऐसे में लोग पैसे इन्वेस्ट करेंगे या फिर बैंक में सेव करेंगे. अगर ऐसा होता है तो अमेरिका में पैसे इन्वेस्ट करने के लिए एक बार फिर डॉलर की डिमांड ज्यादा होगी. इसका असर इंडियन करेंसी पर भी असर देखने को मिलेगा. इसके अलावा ट्रंप ने H1B VISA होल्डर्स का वीजा प्रोसेस को स्ट्रिक्ट करने कहा था. इससे नौकरी के लिए अमेरिका जाने वालों को वीजा लेने में और दिक्कतें होंगी. जिससे लोगों को अमेरिका में आसानी से जॉब नही मिलेगी और देश में डॉलर कम आएगा. इससे इंडियन करेंसी की वैल्यू और कम हो जाएगी.
सरकार गिराती है मुद्रा की कीमत
बता दें कि किसी भी मुद्रा की कीमत सिर्फ उसके डिमांड और सप्लाई पर निर्भर नहीं करती. कई बार सरकार खुद मुद्रा की कीमत गिरा देती हैं. जैसे निर्यात को बढ़ाने के लिए कोई भी देश अपनी मुद्रा की कीमत गिराता है, तो इसके उत्पादों की कीमतें विदेशी बाजारों में कम हो जाती हैं. इससे निर्यात बढ़ता है. दूसरा विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए भी सरकार मुद्रा की कीमत गिराती हैं इससे विदेशी निवेशकों को उस देश में कम पैसे में मजदूर और संसाधन मिल जाते हैं. इससे निवेश करने में सुविधा होती है और वहां के लोगों को रोजगार भी आसानी से मिल जाता है. इसके अलावा आर्थिक संकट से निपटने के लिए भी कभी-कभी सरकारें मुद्रा की कीमत गिरा देती हैं, ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकें. साथ ही व्यापार संतुलन में सुधार करने के लिए सरकार मुद्रा की कीमत गिरा सकती है, जिससे आयात महंगा हो जाए और निर्यात बढ़ जाए.
भारत के पास क्या रास्ता है
इम्पोर्ट में कमी करके भारत रूपए की कीमत में मजबूती ला सकता है. जैसे, भारत अपनी कुल तेल आवश्यकता का लगभग 85% आयात करता है. अब ऐसे में भारत को चीन से सीख लेनी चाहिए और अपनी इम्पोर्ट डिपेंडेंसी को कम करना होगा. इसके साथ भारत को रुपए की वैल्यू बढ़ाने के लिए इम्पोर्ट के साथ साथ मैन्युफैक्चरिंग फील्ड में भी काम करना होगा ताकि देश ज्यादा से ज्यादा चीजें एक्सपोर्ट करें न की इम्पोर्ट. इससे देश की करेंसी की वैल्यू बढ़ेगी और देश विकसित होगा.
एक्सचेंज रेट क्या है
किसी भी देश की करेंसी की वैल्यू एक्सचेंज रेट से तय होती है. एक्सचेंज रेट को विनिमय दर कहते हैं. बता दें कि एक्सचेंज रेट दो देशों की करेंसी का वह अनुपात (ratio) होता है. जो दूसरे देश की करेंसी लेने के बदले में अपने देश की उतनी ही करेंसी देता है. जैसे अगर आप अमेरिका में घूमने जाते हैं तो वहां पर आपको हर जगह डॉलर में पेमेंट करनी होगी. क्योंकि वहां पर रुपया नहीं चलता है. ऐसे में आपको पहले मनी एक्सचेंज के रूप में रुपया से डॉलर खरीदना होता है. अब इन्हीं डॉलर का इस्तेमाल अमेरिका में चीजों को खरीदने में किया जा सकता है. इस तरह रुपया से डॉलर खरीदना ही एक्सचेंज रेट कहलाता है.
आसान भाषा में रुपया की गिरती कीमतों की वजह जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।
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