सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय जजों की बेंच ने बाल विवाह (Child Marriage) की रोकथाम को लेकर कई दिशानिर्देश जारी किए हैं. भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि जिन बच्चों की जबरन शादी की जाती है, वो अपने अधिकारों से वंचित हो जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बाल विवाह को समाज के लिए ‘चिंताजनक’ बताया और इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए केंद्र, राज्यों, जिला प्रशासन, पंचायतों और न्यायपालिका को कई निर्देश दिए. दरअसल, भारत जैसे देश में बाल विवाह अब भी भारतीय समाज के लिए एक चुनौती है.
बता दें कि यूनिसेफ़ ने साल 2021 में ‘बाल विवाह को ख़त्म करने के लिए वैश्विक कार्यक्रम’ पर रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरे दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां 23 करोड़ से ज़्यादा बाल वधू हैं. हर साल तकरीबन 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है. इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि दुनिया की तुलना में भारत ही एक ऐसा देश है जहां एक तिहाई यानी वन थर्ड चाइल्ड ब्राइड यानी बाल वधू हैं. रिपोर्ट के अनुसार साल 2009 में सबसे ज्यादा बाल विवाह वाले राज्य असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश थे. वहीं बांग्लादेश में हर तीन लोगों में से 2 की शादी 18 साल से कम की उम्र में कर दी जाती है. हैरान करने वाली बात यह है कि देश भर के 50 फीसदी बाल विवाह देश के सिर्फ 5 राज्यों में होते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश में 3.6 करोड़, बिहार और पश्चिम बंगाल में 2.2 करोड़, महाराष्ट्र में 2 करोड़ और मध्य प्रदेश में 1.6 करोड़ बाल विवाह होते हैं.
बाल विवाह से जुड़ी सभी बातों की जानकारी के लिए देखिए ये पूरा वीडियो।।