Table of Contents
Toggleदीवाली की असली कहानी: राम से गुरु हरगोविंद तक
दीवाली: दीवाली सिर्फ़ अयोध्या की कहानी नहीं है — ये राम, कृष्ण, महावीर और गुरु हरगोविंद सिंह की रोशनी भरी कथाओं का संगम है. जानिए हर दीप की अपनी कहानी.
कभी सोचा है… कि एक ही रात में पूरा भारत क्यों जगमगा उठता है? हर गली, हर मंदिर, हर आँगन में दीप क्यों जलते हैं? क्या सब एक ही वजह से दीप जलाते हैं — या हर दीप के पीछे कोई अलग कहानी है?
आज हम एक ऐसी यात्रा पर चलेंगे जहाँ हर धर्म, हर क्षेत्र, हर आस्था दीवाली की रोशनी में अपनी कहानी कहता है.
राम के वनवास से लेकर महावीर के निर्वाण तक, गुरु हरगोविंद सिंह की कैद से अकालतख्त की रौशनी तक — आइए जानें, दीवाली सिर्फ “राम लौटे अयोध्या” की कथा नहीं, बल्कि कई कहानियों का संगम है.
अयोध्या की रोशनी – राम की वापसी की कथा
रामायण के अनुसार, भगवान राम ने 14 वर्षों का वनवास पूरा कर रावण पर विजय प्राप्त की.
जब राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे — तो पूरा नगर दीपों से जगमगा उठा.
यहीं से आया “दीपावली” शब्द — दीपों की अवली (पंक्ति).
यह कथा उत्तर भारत में प्रमुख रूप से मनाई जाती है — अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई, अज्ञान पर ज्ञान की जीत के प्रतीक रूप में.
कृष्ण और नरकासुर की हार – दक्षिण भारत की दीवाली
दक्षिण भारत में दीवाली “नरका चतुर्दशी” के नाम से प्रसिद्ध है.
कहते हैं, भगवान कृष्ण ने इस दिन नरकासुर नामक असुर का वध किया था.
रात का अंधकार मिटा, और प्रभात में प्रकाश फैला — इसलिए यहाँ दीप जलाने का अर्थ है बुराई के अंत का उत्सव.
महावीर का निर्वाण – जैन धर्म की आंतरिक रोशनी
जैन धर्म में दीवाली का मतलब है भगवान महावीर का मोक्ष दिवस
इस दिन बिहार के पावापुरी में विशेष पूजा, उपवास, ध्यान और आत्म-चिंतन होता है
यहाँ दीप सिर्फ़ बाहर नहीं जलते — बल्कि भीतर भी, आत्मज्ञान और मुक्ति के प्रतीक बनते हैं
बंदी छोड़ दिवस – सिख धर्म की आज़ादी की दीवाली
1619 ईस्वी में सिखों के छठे गुरु गुरु हरगोविंद सिंह जी को ग्वालियर के किले से रिहा किया गया
उन्होंने 52 हिंदू राजाओं को भी साथ लेकर बाहर निकाला — इसीलिए इसे “बंदी छोड़ दिवस” कहा गया
इस दिन अमृतसर का स्वर्ण मंदिर दीपों से जगमगा उठता है, और यह दीवाली सिखों के लिए धर्म, समानता और आज़ादी की याद बन जाती है
लोक परंपराएँ और क्षेत्रीय विविधता
भारत के हर कोने में दीवाली की अपनी परंपराएँ हैं
जैसे — मिथिला में “हुक्का-पाती” की रस्म होती है, जहाँ लोग धान की रंगीन मणियों और दीपों से पूर्वजों का सम्मान करते हैं
कहीं यमराज की पूजा होती है, तो कहीं लक्ष्मी-गणेश का स्वागत — हर जगह दीपों का अर्थ थोड़ा अलग, पर भाव एक ही: प्रकाश फैलाना
तथ्य और इतिहास की झलक
जैन धर्म में दीवाली कार्तिक अमावस्या पर मनाई जाती है .सिख परंपरा में गुरु हरगोविंद सिंह की रिहाई जहाँगीर के शासनकाल में हुई थी.पावापुरी महोत्सव में हजारों श्रद्धालु हर साल शामिल होते हैं, आंतरिक शांति और ध्यान के साथ.
तो बताइए… आपकी दीवाली कौन सी है?
जब इतनी सारी कहानियाँ हैं, तो आपकी दीवाली कौन सी है?
क्या वह राम की वापसी का उल्लास है?
कृष्ण की विजय का प्रकाश?
महावीर की आत्ममुक्ति का प्रतीक?
या गुरु हरगोविंद सिंह की आज़ादी की प्रेरणा?
शायद वह आपकी अपनी परंपरा से जुड़ी हो — जहाँ हर दीप एक याद, एक विश्वास, एक कहानी कहता है.
हर दीप की अपनी कहानी होती है
तो इस दीवाली, जब आप दीप जलाएँ, मिठाई बाँटें और घर सजाएँ —
थोड़ा सोचिए, आपके दीप की कहानी क्या है?
क्योंकि हर दीप अलग है, हर आस्था अनोखी है —
और हर दिल की अपनी दीवाली होती है.
 
				