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सिंगरौली ट्रामा सेंटर में महिला डॉक्टर पर गंभीर आरोप: सेवा नहीं, व्यवहार बना सवाल

सिंगरौली ट्रामा सेंटर में महिला डॉक्टर पर गंभीर आरोप: सेवा नहीं, व्यवहार बना सवाल

सिंगरौली ट्रामा सेंटर में महिला डॉक्टर पर गंभीर आरोप: सेवा नहीं, व्यवहार बना सवाल

सिंगरौली ट्रामा सेंटर में महिला डॉक्टर पर गंभीर आरोप: मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने स्वास्थ्य सेवाओं पर एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है. सिंगरौली के ट्रामा सेंटर में तैनात महिला डॉक्टर सरिता शाह पर मरीजों और उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार के गंभीर आरोप लगे हैं. मरीजों का कहना है कि डॉक्टर न केवल अपमानजनक भाषा में बात करती हैं, बल्कि कई बार तो इलाज करने से भी इनकार कर देती हैं.


ट्रामा सेंटर में संवेदनशीलता नहीं, धौंस का माहौल

जहां ट्रामा सेंटर जैसे संस्थानों में संवेदनशीलता, सहानुभूति और तत्परता की आवश्यकता होती है, वहां यदि डॉक्टर खुद रौब और तानाशाही का व्यवहार दिखाने लगें, तो यह न केवल चिकित्सा पेशे की गरिमा को चोट पहुँचाता है, बल्कि पीड़ितों की मानसिक स्थिति को और खराब कर देता है.

मरीजों के परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर सरिता शाह सवाल पूछने पर चिढ़ जाती हैं और कभी-कभी मरीज़ों को चुप कराने के लिए उन्हें डांटने लगती हैं. यह व्यवहार उन लोगों के साथ हो रहा है जो पहले से ही शारीरिक और मानसिक तनाव में होते हैं.


इलाज से पहले अपमानित होना – क्या यही सेवा है?

स्वास्थ्य सेवा का उद्देश्य मरीज को राहत और सुरक्षा देना होता है. लेकिन अगर मरीज़ों को इलाज से पहले ही मानसिक रूप से तोड़ दिया जाए, तो चिकित्सा सेवा का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाता है. कई पीड़ितों का कहना है कि उन्हें डॉक्टर के निजी व्यवहार से गहरी चोट पहुंची है और वे इलाज को लेकर अब असहज महसूस करते हैं.


सिस्टम की चूक या व्यक्तिगत अहंकार?

यह मामला केवल एक डॉक्टर तक सीमित नहीं है. यह उस प्रशासनिक व्यवस्था की नाकामी को भी दर्शाता है, जो ऐसे व्यवहार को अनदेखा करती रही. डॉक्टरों पर जब किसी सरकारी संस्थान की गरिमा और भरोसे का भार होता है, तो उनसे उम्मीद होती है कि वे जिम्मेदारी और संवेदनशीलता के साथ पेश आएं. जब ऐसा न हो, तो यह पूरे सिस्टम की साख पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है.

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अब ज़रूरत है – जवाबदेही और बदलाव की

स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने डॉक्टर के इस व्यवहार पर नाराज़गी जताई है और लोगों से अपील की है कि जब तक डॉक्टर का रवैया नहीं बदले, उनके निजी क्लीनिक का बहिष्कार करें. यह बहिष्कार किसी एक डॉक्टर के खिलाफ नहीं, बल्कि बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जन-संकल्प है.


डॉक्टर सेवा का प्रतीक हैं, अहंकार का नहीं

डॉक्टरों को अक्सर ‘ईश्वर का रूप’ कहा जाता है. लेकिन जब वही रूप असहिष्णुता, तिरस्कार और क्रूरता में बदल जाए, तो नागरिकों को अपनी आवाज़ उठानी ही पड़ती है. अगर डॉक्टर नहीं बदलेंगे, तो सिस्टम भी नहीं सुधरेगा.

रिपोर्ट: लवकेश सिंह (सिंगरौली)