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ToggleAMCA: भारत का ‘घोस्ट फाइटर‘ जो दुश्मन के रडार में भी नहीं दिखेगा
AMCA: केंद्र सरकार ने भारत में बनने वाले 5वीं पीढ़ी के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बेट एयरक्राफ्ट (AMCA) के प्रोडक्शन मॉडल को मंजूरी दे दी है.
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना में सरकारी और निजी कंपनियों दोनों को भागीदारी का मौका मिलेगा. एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) जल्द ही एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EoI) जारी करेगी.
इस घोषणा के बाद डिफेंस सेक्टर से जुड़ी कंपनियों के शेयर्स में 6% की बढ़ोतरी हुई. निफ्टी इंडिया डिफेंस इंडेक्स भी 52 सप्ताह के नए हाई 8,674.05 पर पहुंच गया.
AMCA: 2024 में मिली CCS की मंजूरी
अप्रैल 2024 में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने AMCA के डिजाइन और विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपये की परियोजना को हरी झंडी दिखाई. यह स्वदेशी 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर जेट होगा, जिसे डीआरडीओ की एजेंसी ADA द्वारा विकसित किया जाएगा.
AMCA की खासियत: स्टील्थ टेक्नोलॉजी और बेहतर क्षमता
- यह विमान भारतीय वायुसेना के मौजूदा लड़ाकू विमानों से कहीं अधिक उन्नत होगा.
- इसमें हाईटेक स्टील्थ टेक्नोलॉजी होगी, जिससे दुश्मन के रडार पर यह कम दिखाई देगा.
- यह अंतरराष्ट्रीय स्तर के 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स जैसे F-35 और SU-57 के बराबर या बेहतर होगा.
- AMCA 2025 तक भारतीय वायुसेना और नौसेना में शामिल हो सकता है.
स्वदेशी फाइटर जेट्स में AMCA दूसरा प्रोजेक्ट
AMCA भारत में विकसित होने वाला दूसरा फाइटर जेट होगा. इससे पहले लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस और उसके उन्नत संस्करण तेजस मार्क-1 तैयार किए जा चुके हैं. तेजस मार्क-1A पर भी काम चल रहा है.

तेजस MK-1 की तैनाती से मिली मजबूती
30 जुलाई को भारतीय वायुसेना ने जम्मू-कश्मीर के अवंतीपोरा एयरबेस पर तेजस MK-1 को तैनात किया. यह कदम चीन और पाकिस्तान की सीमा के पास भारत की वायु सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाया गया.
तेजस MK-1 की 4 खास विशेषताएं
- स्वदेशी निर्माण: इसके 50% कलपुर्जे भारत में ही बने हैं.
- एडवांस्ड रडार: इजराइल के EL/M-2052 रडार से यह एक साथ 10 लक्ष्यों पर नजर रख सकता है.
- कम रनवे की जरूरत: सिर्फ 460 मीटर के रनवे पर टेकऑफ करने की क्षमता.
- हल्का और फुर्तीला: यह सुखोई, राफेल और मिग से हल्का है, जिसका वजन महज 6,500 किलो है.
आत्मनिर्भर भारत की ओर बड़ा कदम
AMCA प्रोजेक्ट भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा. यह न सिर्फ भारतीय वायुसेना को मजबूत करेगा, बल्कि निजी क्षेत्र को भी रक्षा उत्पादन में भागीदारी का अवसर देगा.