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रीवा की राजनीति को किस तरह प्रभावित करता है ब्राह्मणों का DMT फैक्टर!

मध्यप्रदेश की राजनीति में विंध्य ने हमेशा अहम भूमिका निभाई है. 30 विधानसभा सीटों वाले विंध्य क्षेत्र की राजनीति जातिगत समीकरण के इर्द-गिर्द घूमती है. यहां ब्राम्हण वोटर एक बड़ा वोट बैंक माने जाते हैं और इनका DMT फैक्टर किसी भी चुनाव में निर्णायक की भूमिका निभाता है. DMT यानी दुबे, मिश्रा और तिवारी. दुबे में आते हैं परौहा, मिश्रा में पड़रहा और तिवारी तो होते ही हैं तिवारी. एक जाति के अंदर पाति के रूप में संगठित DMT में तेरह घराने आते हैं. यहां पाति का मतलब ब्राह्मणों में शादियों के संबंध से होता है.

विंध्य के रीवा संभाग में भी DMT के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है. DMT चुनावी नतीजों को पूरी तरह प्रभावित करने की ताक़त रखता है यानी चुनाव में जीत-हार DMT के समर्थन से तय होती है. हर चुनाव में दलों और खासकर प्रत्याशियों पर इन वर्गों ने अपनी घुसपैठ करने की कोशिश की है.

 DMT के वर्गीकरण में D का मतलब है परौहा दुबे जिनमें टाड़, गगहरा, थर, उसरी आते हैं,  इनका गोत्र कश्यप होता है. M का मतलब है पड़रहा मिश्र जिसमें अजोरा और अमाप आते हैं, इनका भी गोत्र कश्यप ही होता है. तिवारी में मूलरूप से बकिया, बक्षेणा, तिउनी और हन्ना आते हैं और इनका गोत्र वशिष्ठ होता है.

इनके प्रकार और उपस्थति क्रमश: क्षेत्रवार में बहुतायत होते हैं. रीवा जिले की चार विधानसभा सीटें त्यौंथर, सिरमौर, देवतालाब और मऊगंज में इनका प्रभाव सबसे अधिक देखने को मिलता है. इसे यह भी कहा जा सकता है कि इन विधानसभा में दल नहीं जातिय़ां चुनाव लड़ती हैं.

DMT का सबसे बड़ा उदाहरण त्यौंथर से रमाकांत तिवारी हैं, जिन्होंने अलग-अगल दलों से कई बार विधानसभा चुनाव जीते और मंत्री भी बने. 1990 में कांग्रेस से रमाकांत तिवारी 37% वोट पाकर चुनाव जीते. फिर साल 1993 में दो ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े होने की वजह से रामलखन सिंह से चुनाव हार गए थे.

1998 विधानसभा चुनाव में एक बार फिर रमाकांत तिवारी BJP से 32% वोट पाकर चुनाव जीते. 2003 में फिर BJP से ही चुनाव जीत गए. 2008 में ब्राह्मण दो पार्टीयों में बट गए, जिससे DMT हार गया और BSP से रामगरीब कोल चुनाव जीत गए. 2013 में एक बार फिर बीजेपी से रमाकांत तिवारी चुनाव जीत गए. 2018 में भी BJP ने यहां से बाजी मारते हुए श्यामलाल द्विवेदी विजयी हुए.

DMT दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण सिरमौर में देखने को मिला. 2008 के चुनाव में BSP से राजकुमार उर्मलिया ने कांग्रेस प्रत्यासी श्रीनिवास तिवारी को 309 वोट से विधानसभा चुनाव हरा दिए. 2013 में BJP से दिव्यराज सिंह ने जीत हासिल की. क्योंकि ब्राह्मणों का वोट DMT के चलते 2 उम्मीदवारों में बट गया. जिसके चलते श्रीनिवास तिवारी के पौत्र डॉ. विवेक तिवारी बबला चुनाव हार गए. 2018 में एक बार फिर दिव्यराज सिंह BJP से चुनाव जीत गए और अरुणा विवेक तिवारी हार गई.  

मऊगंज में 2008 के विधानसभा चुनाव में लक्ष्मण तिवारी BJSH पार्टी से 26% वोट पाकर चुनाव में जीत हासिल की. फिर 2013 में कांग्रेस पार्टी के सुखेंद्र सिंह बन्ना से लगभग 10 हजार वोटों के लंबे अंतराल से लक्ष्मण तिवारी चुनाव हार गए. 2018 में निर्दलीय प्रत्याशी होते हुए भी लक्ष्मण तिवारी 10 हजार वोट अपने खेमें में दर्ज किए. हालांकि इस बार बीजेपी से प्रदीप पटेल विजयी रहे. 

ब्राह्मण बाहुल्य रीवा लोकसभा सीट का प्रभाव ऐसे भी समझा जा सकता है कि यहां से अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में 11 बार ब्राह्मण सांसद चुने गए.  ब्राह्मणों के इस वर्चस्व की वजह से यहां दूसरी जातियां भी मजबूत खेमेबंदी करने लगी हैं. बहुजन समाजवादी पार्टी का लोकसभा में पहला सांसद भेजने वाला क्षेत्र भी रीवा ही है. 1991 में रीवा से बीएसपी के टिकट पर भीम सिंह पटेल ने जीत दर्ज की. उसके बाद दो बार लगातार बीएसपी ने यहां से जीत दर्ज कर की.

DMT किस तरह से चुनावी नतीजे बदल देता है ये जानने के लिए देखिए पूरा वीडियो