पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव रोचक रहे, चुनाव के नतीजे भी रोचक रहे. पांच राज्यों में से तीन राज्यों में भाजपा सत्ता पर आई.मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बात करें तो मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर पार्टी ने यकीनन हर किसी को चौंका दिया और साबित कर दिया कि अब राजनीति कयासों वाली नहीं रह गई है. बहरहाल राजनीतिक गलियारे में शुरू से ही कुछ ना कुछ चौंकाने वाला होता रहा. पहले रिजल्ट, फिर मुख्यमंत्री का चेहरा और उसके बाद अब उपमुख्यमंत्री पद को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
राजस्थान में उपमुख्यमंत्री को लेकर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी जनहित याचिका दायर कर दी गई है और तर्क दिया गया है कि उप मुख्यमंत्री का पद संवैधानिक नहीं है. मध्यप्रदेश में राजेन्द्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा, छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा और राजस्थान में दिया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को डिप्टी सीएम बनाया गया है.
दरअसल जयपुर के वकील ओमप्रकाश सोलंकी ने जनहित याचिका दायर करते हुए कहा कि संविधान में डिप्टी सीएम या उप मुख्यमंत्री जैसा कोई पद ही नहीं है. यह एक राजनीतिक पद है और यह असंवैधानिक भी है.
इस आर्टिकल में हम जिक्र करेंगे कि आखिर इसकी संवैधानिक स्थिति क्या है और किस तरह से उपमुख्यमंत्री का पद उपप्रधानमंत्री के पद जैसा है,साथ ही कुछ राजनीतिक गणित भी हम जानने की कोशिश करेंगे.
संविधान की बात करें तो इसके अनुच्छेद 163 (1) के मुताबिक मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रीपरिषद होगी जो अपने कार्यों के निष्पादन के लिए राज्यपाल को सलाह देगी.
164 में भी मुख्यंमत्री और उनकी मंत्रीपरिषद के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन उपमुख्यमंत्री नाम नहीं मिलता है.
पद के इतिहास की बात करें तो मुख्यमंत्री का पद भारत के प्रधानमंत्री के पद की तरह ही होता है लेकिन मुख्यमंत्री राज्य के स्तर का पद है. उसी तरह से उपमुख्यमंत्री पद भी भारत में उपप्रधानमंत्री पद की तरह होता. इस पद को संविधान लागू होने से पहले ही बना दिया गया था.
सरदार वल्ल्भ भाई पटेल 15 अगस्त 1947 को देश के उपप्रधानमंत्री बने जो 15 दिसंबर 1950 तक इस पद रहे थे. मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम ने भी उपप्रधानमंत्री का पद संभाला. साल 1989 में चौधरी देवीलाल के उपप्रधानमंत्री बनने के बाद राज्यों में उपमुख्यमंत्री के पद बनने लगे और साल 2023 में तो तीन राज्यों में दो-दो उपमुख्यमंत्री बने.
जब साल 1990 के दशक से जब गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ, तब राजैनितक संतुलन बनाए रखने के लिए उपमुख्यमंत्री चुना जाने लगा क्योंकि गठबंधन की सरकार में दोनों भले ही शक्तिशाली हों लेकिन मुख्यमंत्री किसी एक दल से ही बनता है. ऐसे में दूसरे दल से उपमुख्यमंत्री चुन लिया जाता है. इससे यह बात साफ होती है कि उपमुख्यमंत्री का पद पार्टी के भीतरी राजनीतिक समीकरण को संतुलित करने के लिए किया जाता है.भले ही इसकी संवैधानिक स्थिति सही नहीं है लेकिन राजनीतिक आयाम बड़े हैं.