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विंध्य को बनाएं शिक्षित, क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के 5 प्वाइंट्स

इंसान की जिंदगी में जितना जरूरी भोजन, कपड़ा, हवा और पानी है, उसी तरह आज शिक्षा के बिना स्वस्थ समाज और परिवार का निर्माण संभव नहीं है. इसीलिए कहा जाता है की शिक्षा ही वह माध्यम है जो मनुष्य को मनुष्य तार बनाती है.

मध्य प्रदेश राज्य शिक्षा पोर्टल 2.0 के अनुसार प्रदेश में स्थित 2621 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं हैं और राज्य के 47 जिलों में स्थित 7793 स्कूल केवल एक ही शिक्षक के भरोसे हैं.
वहीं विंध्य क्षेत्र के स्कूलों की हालत ऐसी है, जहां 1747 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे हैं वहीं 554 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं हैं.

भीमराव अंबेडकर ने कहा था की शिक्षा वह शेरनी का दूध है कि जो उसे पिएगा वो दहाड़ेगा. मगर इन हालातों में कैसे कोई शिक्षा प्राप्त कर सकता है. जहां स्कूल के नाम पर केवल उधड़े हुए घर हैं, शिक्षक के नाम पर खाली कुर्सियां हैं.

एक नज़र विंध्य में स्थित स्कूलों की तरफ़ डालें जिसमे शिक्षा की बदहाली में पहले नंबर पर सिंगरौली है.
भारत की ऊर्जाधानी कहे जाने वाले सिंगरौली में भी शिक्षा की हालत इतनी नाज़ुक होगी ये आश्चर्य करने वाले आंकड़े हैं.

प्रदेश भर में सिंगरौली 0 और 1 शिक्षक वाले स्कूलों में पहले स्थान पर है. यहां एक शिक्षक वाले 552 स्कूल हैं और 224 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं. बच्चे किसके भरोसे स्कूल जाएं और जाएं भी तो इन्हे कौन पढ़ाए? वहीं रीवा जिले में एक शिक्षक वाले 379 स्कूल हैं और 0 शिक्षक वाले 97 स्कूल मौजूद हैं. सीधी जिले में एक शिक्षक वाले 285 स्कूल हैं और 0 शिक्षक वाले 98 स्कूल हैं. सतना जिले में 1 शिक्षक वाले 381 स्कूल हैं.

पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा था कि,
‘ इल्म हासिल करो मां की गोद से लेकर कब्र के आगोश तक ‘

आज डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया के दौर में आजादी के बाद भी शिक्षा का स्तर नीचे ही गिरता जा रहा है. जहां एक ओर बड़े – बड़े संस्थान स्थापित हो रहे हैं, वहीं सरकार प्राइमरी और मिडिल एजुकेशन पर ध्यान नहीं दे पा रही है.

ये वो आंकड़े है जो क्षेत्र में शिक्षा की दशा बयां कर रहे हैं लेकिन हमे समाधान केंद्रित हो कर चीजों को देखना होगा इसके लिए हमने शिक्षा के क्षेत्र में लंबे समय से कार्यरत विशेषज्ञों से बात की और जाना की आखिर कैसे एक बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था क्षेत्र में लागू की जाए.

शिक्षा में हुई गुणवत्ता में कमी को दूर करने के लिए हमने रीवा जिले में पदस्थ शिक्षा अधिकारी गंगा प्रसाद उपाध्याय से बात की उन्होंने क्षेत्र में खराब शिक्षा स्तर के लिए शिक्षकों को दोषी ठहराया है, उनका कहना है, यदि शिक्षकों की आत्मशक्ति होगी तभी क्षेत्र में शिक्षा का प्रसार होगा. यदि शिक्षकों को अपने कर्तव्य का बोध हो जाए तो कोई बच्चा अशिक्षित न रहे. साथ ही उन्होंने कहा- शिक्षकों को रुचि लेकर पढ़ाना चाहिए जिससे बच्चों का शिक्षा की ओर रुझान हो. शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अभिभावकों को भी सुझाव दिया है कि, अभिभावकों को ज्यादातर अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है. बच्चे क्या पढ़ाई कर रहे हैं? स्कूल में उन्हें क्या होमवर्क मिला है? उन सभी पर अभिभावकों को ध्यान देना चाहिए.

साथ ही हमने शिक्षा के क्षेत्र में लंबे समय से कार्यरत अमित गौतम से बात की उन्होंने संवैधानिक रूप से केंद्र और राज्य स्तर पर पूरे देश में, एक देश और एक शिक्षा जैसे नियम का सुझाव दिया उनका कहना है कि, देश एक है तो सभी राज्यों में शिक्षा के स्तर को समान रखने के लिए एक ही सिलेबस की शिक्षा बच्चों को दी जाए. इससे बच्चों में इच्छा शक्ति बढ़ेगी. सभी राज्यों में समान शिक्षा होने के कारण मध्य प्रदेश के शिक्षा का स्तर दक्षिणी प्रदेशों की तरह प्रबल हो जाएगा.

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कार्यरत राकेश एंगल का कहना है कि, ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को नहीं मिल पाया है. कहीं बैठने के लिए कमरा नहीं है, तो कहीं पानी नहीं है, बिजली नहीं है. इस पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही शिक्षकों के लिए बच्चों की सुविधा अनुसार भाषा का चयन करना जरूरी बताया.

एक्सपर्ट से बात करने पर शिक्षा में हुई गुणवत्ता में कमी को दूर करने के 5 एक्शन प्वाइंट निकाल कर सामने आते हैं-

1 एक तरह का पाठ्यक्रम एक तरह की शिक्षा व्यवस्था एक देश एक शिक्षा होनी चाहिए.

2 बेसिक अंडरस्टैंडिंग और कॉन्सेप्ट बिल्डिंग बढ़िया ध्यान देने की जरूरत है.

3 भाषा का चयन छात्रों की समझ के अनुसार हो.

4 शिक्षकों में कर्तव्य बोध और नैतिकता का होना बहुत जरूरी है.

5 अभिभावकों को काउंसलिंग की जरूरत है खासकर जो कम शिक्षित या निरक्षर हैं.