सिंगरौली (Singrauli) के मोरवा (Morwa) में कोयला कंपनी LNT आने के बाद वार्ड 10 के निवासियों की जिंदगी विस्थापन (Displacement) और पुनर्वास (Rehabilitation) के बीच फंसी है. यहां रहने वाले करीब 35 हज़ार से अधिक परिवार आज भी मुआवजे की उम्मीद लगाए हुए हैं. दरअसल, यहां जिन परिवारों के पास कई एकड़ जमीन हुआ करती थी आज उनके पास सर छुपाने तक की जगह नहीं बची है. ऐसी ही कहानी है रोहित कुमार की जिनके बाबा महादेव सालों पहले मेढौली ग्राम के सरपंच रहे हैं.
रोहित का परिवार आज टीना और टूटी हुई सीमेंट सीट के नीचे गुजर बसर कर रहा है. जिस मेढौली गांव में रोहित के पास 4 एकड़ ज़मीन थी. वो गांव अब पूरी तरह से खदान बन चुका है. उन खदानों से कोयला भी निकाला जा चुका है. लेकिन जिन आदिवासी परिवारों की जमीन से कोयला निकाला गया है उनको मुआवजा नहीं मिला है. ऐसे में रोहित कुमार जैसे परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. रोहित के साथ माता – पिता, 3 बहनें और छोटा भाई भी रहता है.
रोहित बताते हैं कि उनका घर पहले खदान के उस तरफ़ था. घर को मशीनों के सहारे धकेल कर इधर कर दिया गया. ऐसे में अब ये परिवार खदान के बीच रहने को मजबूर है. हैरान करने वाली बात यह है कि इस आदिवासी परिवार के पास यहां पहुंचने के लिए रास्ता नहीं है. पहाड़ी पगड़डियों पर पैदल चलकर ही यह अपने घर पहुंच सकते हैं. इन परिवारों को पीने के पानी के लिए भी एलएनटी की तरफ से कोई सुविधा नहीं मुहैया कराई गई है. जबकि शुरुआत में जब कोयला कंपनी इस क्षेत्र में आई थी तो उसने पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने का वादा भी किया था. लेकिन समय बीता और कोयला निकल जाने का बाद इन तमाम तरह की सुविधाओं को बंद कर दिया गया.
पहाड़ के झरने का पीते हैं पानी
स्थानीय लोगों के मुताबिक जब मोरवा का यह इलाका अपने पुराने स्वरूप में था. जब यहां पर लोगों के घरों में बोर हुआ करते थे. खदानें लगने के बाद आए दिन होने वाली ब्लास्टिंग से बोर सूख गए. अब यहां के लोग खरीद कर पानी पीने को मजबूर हैं. वहीं पानी से जुड़ी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग पहाड़ के झरने से पानी लेकर आते हैं. कई परिवार इसी पानी को पीते भी हैं. इतना ही नहीं बिजली कट जाने के कारण जिन बोर में पानी है भी वहां पर मोटर नहीं लगाई जा सकती है.
मोरवा में रोहित के परिवार की समस्या जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।