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मऊगंज में यूरिया संकट: किसान बेहाल, व्यापारी मालामाल

मऊगंज में यूरिया संकट: किसान बेहाल, व्यापारी मालामाल

मऊगंज में यूरिया संकट: किसान बेहाल, व्यापारी मालामाल

मऊगंज में यूरिया संकट: मध्य प्रदेश के मऊगंज जिले में यूरिया की कमी अब गंभीर संकट का रूप ले चुकी है. प्राथमिक कृषि समितियों से खाली हाथ लौट रहे किसान अब सहकारी विपणन संघ मर्यादित भंडारण केंद्रों पर पहुंच रहे हैं. यहां भी हालात बेकाबू हो चुके हैं. सैकड़ों किसान धूप में घंटों कतार में खड़े होने के बावजूद खाली हाथ लौटने को मजबूर हैं.

लाइन में धक्का-मुक्की, तनाव की स्थिति

यूरिया की कमी के कारण भंडारण केंद्रों पर अफरा-तफरी की स्थिति बन गई है. लाइन में लगे किसानों के बीच धक्का-मुक्की और झड़प तक की नौबत आ गई. हालात को बिगड़ता देख प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा. तहसीलदार और डायल 100 की टीम मौके पर पहुंची और किसी तरह स्थिति को नियंत्रित किया गया.

मऊगंज में यूरिया संकट: किसान बेहाल, व्यापारी मालामाल
मऊगंज में यूरिया संकट: किसान बेहाल, व्यापारी मालामाल

बुआई का समय, खाद नहीं उपलब्ध

इस समय बारिश का मौसम है और धान की बुआई जोरों पर है. ऐसे समय में खाद की अनुपलब्धता ने किसानों को बुरी तरह प्रभावित किया है. उन्हें रोज़ प्राथमिक समितियों, भंडारण केंद्रों और खुले बाजारों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, लेकिन कहीं भी राहत नहीं मिल रही है.

व्यापारियों की खुली लूट, प्रशासन मौन

सरकारी गोदामों में उपलब्धता न के बराबर है, जबकि व्यापारी इस संकट का खुला फायदा उठा रहे हैं. बाजार में यूरिया एमआरपी से कहीं अधिक दरों पर बिक रहा है. खुलेआम कालाबाज़ारी हो रही है, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है. किसानों को मजबूरी में महंगे दामों पर खाद खरीदनी पड़ रही है.

प्रशासनिक नाकामी या सुनियोजित लापरवाही?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिले में यूरिया की इतनी भीषण किल्लत क्यों है? क्या यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है, या फिर कोई सुनियोजित साजिश? किसानों को बुआई के पीक टाइम पर खाद से वंचित रखना एक बड़ी विफलता की ओर इशारा करता है.

क्या खेती अब भी प्राथमिकता है?

यह संकट केवल खाद का नहीं, बल्कि एक बड़ी व्यवस्था के फेल हो जाने का प्रतीक है. अगर खेती प्राथमिकता होती, तो खाद जैसी बुनियादी जरूरत समय पर उपलब्ध कराई जाती. फिलहाल स्थिति यह है कि किसान अपने खेतों के साथ-साथ अपने भविष्य को भी भगवान भरोसे छोड़ चुके हैं.

मऊगंज में जो हालात हैं, वो केवल एक जिले की तस्वीर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर एक सवाल है. जब किसान सबसे ज्यादा जरूरतमंद हैं, तब उनकी अनदेखी करना केवल नीति की विफलता नहीं, नैतिक गिरावट भी है. अब वक्त है कि जिम्मेदार सामने आएं और इस कृत्रिम संकट को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं.

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