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थरूर ‘डेलिगेशन लीड’: क्या थरूर को लीड बनाकर सरकार ने खेला दांव? कांग्रेस क्यों है खफा?

थरूर 'डेलिगेशन लीड': क्या थरूर को लीड बनाकर सरकार ने खेला दांव? कांग्रेस क्यों है खफा?

थरूर ‘डेलिगेशन लीड‘: क्या थरूर को लीड बनाकर सरकार ने खेला दांव? कांग्रेस क्यों है खफा?

थरूर ‘डेलिगेशन लीड’: भारतीय प्रतिनिधिमंडल, जिसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भेजा जाना है, अपने गठन के बाद से ही विवादों में घिर गया है. इस विवाद का केंद्र बिंदु कांग्रेस सांसद शशि थरूर का नाम है, जिसे प्रतिनिधिमंडल के संभावित सदस्य के रूप में शामिल किया गया है.

कांग्रेस का खंडन

कांग्रेस पार्टी ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्होंने शशि थरूर का नाम किसी भी ऐसे प्रतिनिधिमंडल के लिए प्रस्तावित नहीं किया था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि थरूर की संभावित सदस्यता के बारे में उन्हें कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है और इस संबंध में सरकार की ओर से कोई संवाद नहीं किया गया है. कांग्रेस के इस बयान ने इस पूरे मामले को और भी उलझा दिया है.

सरकार का अप्रत्याशित कदम

वहीं, दूसरी ओर, सरकार ने शशि थरूर को प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंप दी है. यह कदम कई लोगों के लिए आश्चर्य का विषय रहा है, खासकर तब जब कांग्रेस ने थरूर के नाम पर अपनी असहमति जताई है. सरकार की ओर से इस अप्रत्याशित निर्णय के पीछे का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन इसने राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है.

थरूर 'डेलिगेशन लीड': क्या थरूर को लीड बनाकर सरकार ने खेला दांव? कांग्रेस क्यों है खफा?
थरूर ‘डेलिगेशन लीड’: क्या थरूर को लीड बनाकर सरकार ने खेला दांव? कांग्रेस क्यों है खफा?

सवाल और अटकलें

इस पूरे घटनाक्रम ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या सरकार ने जानबूझकर कांग्रेस के एक सांसद को नेतृत्व की भूमिका सौंपी है? क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति है? कांग्रेस का इनकार कितना सही है? और सबसे महत्वपूर्ण बात, इस विवाद का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के उद्देश्यों और कार्यान्वयन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

विभिन्न राजनीतिक विश्लेषक इस मामले पर अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं. कुछ इसे सरकार की ओर से विपक्ष को साधने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे आपसी समन्वय की कमी का परिणाम मान रहे हैं. थरूर की ओर से इस पूरे मामले पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जिससे स्थिति और भी अस्पष्ट बनी हुई है.

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए गठित भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शशि थरूर के नाम को लेकर जारी विवाद ने राजनीतिक परिदृश्य में एक नया मोड़ ला दिया है. कांग्रेस के इनकार और सरकार के नेतृत्व सौंपने के फैसले ने कई अनसुलझे सवाल खड़े कर दिए हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह विवाद किस दिशा में आगे बढ़ता है और इसका भारत की विदेश नीति और राजनीतिक समीकरणों पर क्या प्रभाव पड़ता है.

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