Vindhya First

बघेली लोकगीतों में से एक खास गीत गैलहाई: एक मार्मिक लोकशैली व्यक्त करती हुई

बघेली लोकगीत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बघेलखंड क्षेत्र में गाए जाने वाले पारंपरिक गीत हैं. ये गीत ग्रामीण संस्कृति, प्रेम, विरह, प्रकृति और सामाजिक जीवन को दर्शाते हैं. बघेली लोकगीतों की सबसे बड़ी खासियत इनकी सरलता और भावनात्मक गहराई होती है. इनमें प्रेम और विरह के साथ-साथ धार्मिक और ऐतिहासिक घटनाओं का भी वर्णन किया जाता है.

बघेली लोकगीतों में “गैलहाई” एक खास शैली है, जो मुख्य रूप से विरह और बिछड़न की पीड़ा को व्यक्त करती है. “गैलहाई” शब्द का अर्थ ही होता है “मार्मिक पुकार”. जब किसी स्त्री का पति, प्रेमी, या कोई परिजन दूर चला जाता है, तो उसकी वेदना को व्यक्त करने के लिए गैलहाई गीत गाए जाते हैं. इन गीतों में नायिका अपने प्रियजन को याद करते हुए उसे वापस बुलाने की प्रार्थना करती है. गैलहाई गीतों की धुन और शब्द इतने भावुक होते हैं कि, सुनने वालों की आँखें नम हो जाती हैं.

इस लोकगीत के बोल हैं. “छूटी गै नैहर की गलियां हो, कब अउबै लौटि के”

यह एक प्रसिद्ध गैलहाई गीत है, जिसमें नायिका अपने प्रिय के बिछड़ने के दर्द को व्यक्त कर रही है. गीत के बोल इस प्रकार हैं:

छूटी गै नैहर की गलियां हो, कब अउबै लौटि के।
कैसे बीतें दिन रतियां हो, कब अउबै लौटि के।
आंगन सूना, मनवा रीता, नैना नीर बहावत हो।
चिट्ठी पाती पंछी पूछे, कब अउबै लौटि के।

गीत का अर्थ

इस गीत में नायिका अपने प्रियजन के जाने के बाद सूनेपन को व्यक्त कर रही है. वह कहती है कि नैहर (मायका) की गलियां छूट गई हैं, और अब मन विरह की वेदना से भर गया है. उसे नहीं पता कि प्रियजन कब लौटेंगे. उसका आंगन सूना है, मन उदास है, और आंखों से निरंतर आंसू बह रहे हैं. यहां तक कि पक्षी भी मानो यह पूछ रहे हैं कि प्रियजन कब वापस आएंगे.

गैलहाई शैली का यह गीत बघेली लोकसंगीत की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है और इसे सुनकर हर कोई नायिका की पीड़ा को महसूस कर सकता है.